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भगवान शिव ने ‘राम-नाम’ कण्ठ में क्यों धारण किया है ?

शिवजी ने देवता, दैत्य और ऋषि-मुनियों—प्रत्येक को दस-दस अक्षर दे दिए । तीस अक्षर बंट गए और दो अक्षर शेष रह गए । तब भगवान शिव ने देवता, दैत्य और ऋषियों से कहा कि मैं ये दो अक्षर किसी को भी नहीं दूंगा । इन्हें में अपने कण्ठ में रखूंगा । ये दो अक्षर ‘रा’ और ‘म’ अर्थात् ‘राम-नाम’ हैं ।

केदारनाथ जहां आज भी इन्द्र नित्य शिवपूजन के लिए आते हैं

इन्द्र ने कहा—‘भगवन् ! मैं प्रतिदिन स्वर्ग से यहां आकर आपकी पूजा करुंगा और इस कुण्ड का जल भी पीऊंगा । आपने महिष के रूप में यहां आकर ‘के दारयामि’ कहा है, इसलिए आप केदार नाम से प्रसिद्ध होंगे ।’

किस कामना के लिए करें कौन से पुष्प से शिव पूजा

भगवान शिव की पूजा के पुष्प भगवान शिव पर फूल चढ़ाने का विशेष महत्व है । बिल्व पत्र और...

अमृत पर्व ‘कुम्भ’

कुम्भ पर्व मनाने का यही रहस्य है कि मनुष्य तीर्थ में आकर पवित्र नदियों के जल में स्नान करे, संतों के उपदेश से ज्ञान रूपी अमृत को प्राप्त करे, और सत्य, दान, तप और यज्ञ के द्वारा शुभ कर्म करे जिससे मृत्यु के बाद उसकी सद्गति हो, अधम गति या दुर्गति बिल्कुल न हो ।

ब्रह्मा के गर्वहरण के लिए शंकरजी का भैरव अवतार

देवी के 51 शक्तिपीठों की रक्षा कालभैरव भिन्न-भिन्न नाम व रूप धारण करके करते हैं और भक्तों की प्रार्थना मां दुर्गा तक पहुंचाते हैं ।

शिव को अतिप्रिय रुद्राभिषेक और रुद्राष्टाध्यायी

भगवान शिव के मनभावन श्रावणमास में और शिवरात्रि पर प्राय: सभी शिवमन्दिरों में रुद्राभिषेक या रुद्री पाठ की बहार देखने को मिलती...

प्रदोष में शिव आराधना है महाफलदायी

प्रदोषकाल में भक्तिपूर्वक भगवान सदाशिव की पूजा करते हैं, उन्हें धन-धान्य, स्त्री-पुत्र व सुख-सौभाग्य की प्राप्ति और हर प्रकार की अभिवृद्धि होती है ।

दु:खनाश के लिए भगवान शिव के ग्यारह रुद्ररूप

आध्यात्मिक दृष्टि से दस इन्द्रियां और मन—ये ग्यारह प्राण ही एकादश रुद्र हैं । ये निकलने पर प्राणियों को रुलाते हैं, इसलिए ‘रुद्र’ कहे जाते हैं।

पंचमुखी हनुमान में है भगवान के पांच अवतारों की शक्ति

पंचमुखी हनुमानजी में भगवान के पांच अवतारों की शक्ति समायी है, इसलिए महानतम ऊर्जा के धनी हनुमानजी कठिन-से-कठिनतम किसी भी कार्य या समस्या को चुटकी बजाते हुए हल कर देते है ।

भगवान विष्णु के चरणों से निकला अमृत है गंगा

गंगा ने ब्रह्मा के कमण्डलु में रहकर, विष्णु के चरण से उत्पन्न होकर और शिवजी के मस्तक पर विराजमान होकर इन तीनों की महिमा बढ़ा रखी है । यदि मां गंगा न होतीं तो कलियुग न जाने क्या-क्या अनर्थ करता और कलयुगी मनुष्य अपार संसार-सागर से कैसे तरता ?