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भगवान का वामन अवतार
भगवान का कोई भी अवतार किसी साधु-संन्यासी के मठ या आश्रम में नहीं हुआ; बल्कि भगवान के सभी अवतार गृहस्थ के घर में हुए हैं । गृहस्थाश्रम में ऐसी शक्ति है कि वह परमात्मा (ब्रह्म) को भी बालक बना लेता है । आज भी किसी का गृहस्थाश्रम यदि कश्यप ऋषि और उनकी पत्नी अदिति जैसा हो तो भगवान प्रकट होने के लिए तैयार हैं ।
जग में सुंदर हैं दो नाम, चाहे कृष्ण कहो या राम
परमात्मा के सभी अवतारों की अपनी अलग विशेषता होती है । किसी अवतार में धर्म ही विशेंष रूप से प्रधान रहता है तो किसी में प्रेम और आनंद । कोई परमात्मा का मर्यादा पुरुषोत्तम अवतार है तो कोई लीला पुरुषोत्तम अवतार कहलाता है ।
गजेन्द्न-मोक्ष के लिए भगवान का श्रीहरि अवतार
तृतीय मन्वन्तर में भगवान का ‘श्रीहरि’ अवतार हुआ । भगवान ने हरिमेधस ऋषि की पत्नी हरिणी में अवतार धारण किया और ‘श्रीहरि’ कहलाये । भगवान का यह अवतार अपने आर्त भक्त गजेन्द्र की ग्राह से रक्षा के लिए हुआ था । भगवान अपने पुकारने वालों की कैसे रक्षा करते हैं और उनके रक्षण में उनकी कैसी तत्परता रहती है—श्रीमद्भागवत का ‘गजेन्द्र-मोक्ष’ का प्रसंग यही बताता है ।
भगवान विष्णु का हंस अवतार
भगवान विष्णु के चौबीस अवतारों में बीसवां ‘हंस अवतार’ है । श्रीमद्भागवत के एकादश स्कन्ध के तेरहवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने उद्धवजी को अपने ‘हंसावतार’ की कथा सुनाई है । भगवान के हंसावतार की सम्पूर्ण जानकारी ।
श्रीकृष्णावतार के समय देवी-देवताओं का पृथ्वी पर विभिन्न रूपों में जन्म
इस प्रकार लीला-मंच तैयार हो गया, मंच-लीला की व्यवस्था करने वाले रचनाकार, निर्देशक एवं समेटने वाले भी तैयार हो गए। इस मंच पर पधारकर, विभिन्न रूपों में उपस्थित होकर अपनी-अपनी भूमिका निभाने वाले पात्र भी तैयार हो गए। काल, कर्म, गुण एवं स्वभाव आदि की रस्सी में पिरोकर भगवान श्रीकृष्ण ने इन सबकी नकेल अपने हाथ में रखी। यह नटवर नागर श्रीकृष्ण एक विचित्र खिलाड़ी हैं। कभी तो मात्र दर्शक बनकर देखते हैं, कभी स्वयं भी वह लीला में कूद पड़ते हैं और खेलने लगते हैं।