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भगवान श्रीकृष्ण का चतुर्भुज रूप
भगवान ने अपने चतुर्भुज दिव्य रूप के दर्शन की दुर्लभता और उसकी महत्ता बताते हुए अर्जुन से कहा—‘मेरे इस रूप के दर्शन बड़े दुर्लभ हैं; मेरे इस रूप के दर्शन की इच्छा देवता भी करते हैं । मेरा यह चतुर्भुजरूप न वेद के अध्ययन से, न यज्ञ से, न दान से, न क्रिया से और न ही उग्र तपस्या से देखा जा सकता है । इस रूप के दर्शन उसी को हो सकते हैं जो मेरा अनन्य भक्त है और जिस पर मेरी पूर्ण कृपा है ।
भगवान श्रीकृष्ण की अर्जुन का गर्व-हरण लीला
भगवान श्रीकृष्ण ने अपने प्रिय सखा अर्जुन का गर्व-हरण कैसे किया ?
शिवलिंग के पूजन से श्रीकृष्ण और अर्जुन को अजेयता की प्राप्ति
‘जयद्रथ को यदि सूर्यास्त के पहले न मार सकूं तो मैं चिता-प्रवेश’ करुंगा’—ऐसी प्रतिज्ञा जब अर्जुन ने की, तब सारी रात भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को शिवलिंग-पूजन में लगा कर उसे पाशुपतास्त्र पुन: प्राप्त कराया ।
‘मेरे रथ के आगे यह त्रिशूलधर कौन हैं ?’ युद्धभूमि में जब अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से इस प्रकार पूछा, तब श्रीकृष्ण ने कहा—‘जिसकी तू आराधना करता है, वही तेरी रक्षा के लिए यहां उपस्थित हैं और उन्हीं की कृपा से सब जगह तेरी विजय होती है ।’
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत
स्वामी रामकृष्ण परमहंसजी ‘टाका माटी’ के खेल का अभ्यास किया करते थे । वे एक हाथ में ‘टाका’ यानी सिक्का और दूसरे में मिट्टी का ढेला लेते और ‘टाका माटी’, ‘टाका माटी’ कहते हुए उन्हें दूर फेंक देते थे । ऐसा अभ्यास वे पैसे के प्रलोभन से बचने के लिए अर्थात् पैसा और मिट्टी एक बराबर समझने के लिए करते थे ।
विश्व-रंगमंच के सूत्रधार श्रीकृष्ण
गांधारी की तेजदृष्टि से वज्र-सी देह होने पर भी क्यों मारा गया दुर्योधन?
क्यों भक्त की चोट भी सहते हैं भगवान
महाभारत-युद्ध में किसको छूते ही वैष्णवास्त्र बन गया वैजयन्तीमाला