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सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:

मानव जीवन की दो प्रधान भावनाएं हैं—स्वार्थ भावना और परहित भावना । स्वार्थ भावना मनुष्य के हृदय को संकीर्ण और निम्न स्तर का बना देती है; लेकिन परहित की भावना मनुष्य के हृदय को उज्ज्वल कर विशाल बना देती है । दूसरों के दु:ख दूर करने से स्वयं में आनन्द का आभास होता है । परमात्मा को भी ऐसे ही मनुष्य अत्यंत प्रिय होते हैं । इस प्रकार की प्रार्थना करने वाले मनुष्यों की रक्षा स्वयं भगवान करते हैं ।

सुबह उठ कर भूमि-वंदन क्यों करना चाहिए ?

वाराहकल्प में जब हिरण्याक्ष दैत्य पृथ्वी को चुराकर रसातल में ले गया, तब भगवान श्रीहरि हिरण्याक्ष को मार कर रसातल से पृथ्वी को ले आए और उसे जल पर इस प्रकार रख दिया, मानो तालाब में कमल का पत्ता हो । इसके बाद ब्रह्मा जी ने उसी पृथ्वी पर सृष्टि रचना की । उस समय वाराहरूपधारी भगवान श्रीहरि ने सुंदर देवी के रूप में उपस्थित भूदेवी का वेदमंत्रों से पूजन किया और उन्हें ‘जगत्पूज्य’ होने का वरदान दिया ।

प्रात:काल स्मरण किए जाने वाले कल्याणकारी श्लोक

प्रात:काल की अमृतबेला परमात्मा से बातचीत करने का समय है । इस समय सोकर उठते समय यदि परमपिता परमात्मा का नाम-स्मरण कर लिया जाए तो वह मनुष्य के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होता है ।