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देवी भुवनेश्वरी का अद्भुत रूप : माता भ्रामरी
माता भ्रामरी ने अपने हाथ के और चारों तरफ के भ्रमरों को प्रेरित किया और वे असंख्य भ्रमर ‘ह्रीं-ह्रीं’ करते हुए अरुण दानव की ओर उड़ चले । उन काले-काले भ्रमरों से सूर्य छिप गया और चारों तरफ अंधकार छा गया । वे भ्रमर अरुण दानव और उसकी दैत्य सेना के शरीर से चिपक कर उसे काटने लगे । दानव असीम वेदना से छटपटाने लगे और जो जहां था, वहीं गिरकर मर गया ।
देवी दुर्गा के सोलह नाम और उनका अर्थ
सबसे पहले परमात्मा श्रीकृष्ण ने सृष्टि के आदिकाल में गोलोक स्थित वृन्दावन के रासमण्डल में देवी की पूजा की थी । दूसरी बार भगवान विष्णु के सो जाने पर मधु और कैटभ से भय होने पर ब्रह्माजी ने उनकी पूजा की। तीसरी बार त्रिपुर दैत्य से युद्ध के समय महादेवजी ने देवी की पूजा की । चौथी बार दुर्वासा के शाप से जब देवराज इन्द्र राजलक्ष्मी से वंचित हो गए तब उन्होंने देवी की आराधना की थी । तब से मुनियों, सिद्धों, देवताओं तथा महर्षियों द्वारा संसार में सब जगह देवी की पूजा होने लगी।
क्या है देवी दुर्गा के विभिन्न प्रतीकों का रहस्य ?
जब-जब लोक में दानवी बाधा उपस्थित हो जाती है, चारों ओर अनीति, अत्याचार फैल जाता है, तब-तब देवी पराम्बा विभिन्न नाम व रूप धारण कर प्रकट होती हैं और समाज विरोधी तत्वों का नाश करती हैं ।
मां दुर्गा का नवार्ण मन्त्र : आनन्ददायक एवं क्लेशनिवारक
मां दुर्गा के तीन चरित्रों से बीज वर्णों को चुनकर नवार्ण मन्त्र का निर्माण हुआ है। नवार्ण मन्त्र मनुष्य के लिए कल्पवृक्ष के समान है। यह मन्त्र उपासकों को आनन्द और ब्रह्मसायुज्य देने वाला है। दुर्गा के तीन चरित्रों में महाकाली की आराधना से माया-मोह एवं वितृष्णा का नाश होता है। महालक्ष्मी सभी प्रकार के वैभवों से परिपूर्ण कर बुराई से लड़ने की शक्ति देती हैं तथा महासरस्वती किसी भी संकट से जूझकर पार उतरने वाली बुद्धि और विद्या प्रदान करती हैं। अत: नवार्ण मन्त्र के जाप करने से ही दुर्गा के तीनों स्वरूपों को प्रसन्न कर मनोवांछित फल प्राप्त किए जा सकते हैं।