समुद्र-मंथन से उत्पन्न कालकूट विष की ज्वाला से दग्ध संसार की रक्षा के लिए भगवान शिव ने स्वयं ही उस महाविष का हथेली पर रखकर आचमन कर लिया और नीलकण्ठ कहलाए । उस विष की अग्नि को शांत करने के लिए भगवान शिव का शीतल वस्तुओं से अभिषेक किया जाता है । जैसे–कच्चा दूध, गंगाजल, पंचामृत, गुलाबजल, इक्षु रस (गन्ने का रस), चंदन मिश्रित जल, कुश-पुष्पयुक्त जल, सुवर्ण एवं रत्नयुक्त जल (रत्नोदक), नारियल का जल आदि ।
भोले-भण्डारी भगवान सदाशिव को अभिषेक अत्यन्त प्रिय है; इसीलिए कहा जाता है—अभिषेक प्रिय: शिव:’ । श्रावणमास में तो इसका महत्त्व बहुत ज्यादा है ।
विभिन्न पुराणों में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न वस्तुओं से उनके स्नान व विभिन्न प्रकार के फूलों से पूजा बताई गयी है ।
वामनपुराण में वर्णित भगवान शिव के विभिन्न स्नान
वामन पुराण में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए विविध वस्तुओं से स्नान और विभिन्न पुष्पों से पूजा करने के साथ ही उनके विभिन्न नामों का उच्चारण करने की विधि इस प्रकार बताई गयी है—
▪️गन्ने के रस से स्नान व कमलपुष्पों से पूजन करने पर विरुपाक्ष (त्रिनेत्र) शिव प्रसन्न हों ।
▪️दूध से स्नान और कनेर के फूलों से पूजा करने पर शिव प्रसन्न हों ।
▪️दधि से स्नान व कनेर के फूलों से पूजा से शर्व प्रसन्न हों ।
▪️घृत से स्नान व तगर के फूलों से पूजा से त्र्यम्बक प्रसन्न हों ।
▪️कुश के जल से स्नान व कस्तूरी से पूजा करने पर महादेव उमापति प्रसन्न हों ।
▪️पंचगव्य से स्नान और कुन्द के फूलों से पूजा करने पर रुद्र प्रसन्न हों ।
▪️गूलर के फल के जल से स्नान व मदार के फूलों से पूजा से नाट्येश्वर शिव प्रसन्न हों ।
▪️सुगन्धित फूलों के जल से स्नान व आम की मंजरियों से पूजा करने पर कालघ्न शिव प्रसन्न हों ।
▪️आंवले के जल से स्नान व मदार के फूलों से पूजा से पूषा के दांत तोड़ने वाले भगनेत्रघ्न शिव प्रसन्न हों ।
▪️बिल्व के जल से स्नान व धतूरे के उजले फूलों से पूजा करने से दक्ष-यज्ञ का विनाश करने वाले शिव प्रसन्न हों ।
▪️जटामासी के जल से स्नान व बिल्वपत्र व फल सहित पूजा से गंगाधर प्रसन्न हों ।
▪️धतूरे के पुष्पों से शंकर की पूजा करने से विरुपाक्ष (त्रिनेत्र) प्रसन्न हों ।
नारद-विष्णु पुराण में वर्णित शिव के विभिन्न स्नान
नारद-विष्णु पुराण के अनुसार—
▪️जो मनुष्य कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी और सोमवार के दिन भगवान शंकर को दूध से नहलाता है, वह शिव सायुज्य प्राप्त कर लेता है ।
▪️अष्टमी अथवा सोमवार को जो मनुष्य नारियल के जल से भगवान शिव को स्नान कराता है, वह शिव-सायुज्य प्राप्त करता है ।
▪️शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी अथवा अष्टमी को घी और शहद से भगवान शिव को स्नान कराने से मनुष्य उनका सारुप्य प्राप्त कर लेता है ।
▪️तिल के तेल से भगवान शिव को स्नान कराकर मनुष्य सात पीढ़ियों के साथ उनका सारुप्य प्राप्त कर लेता है ।
▪️जो मनुष्य भगवान शिव को ईख के रस के स्नान कराता है, वह सात पीढ़ियों तक शिव लोक में निवास करता है ।
▪️साथ ही आक के फूलों से शिव पूजन करके मनुष्य उनका सालोक्य प्राप्त करता है और गुग्गुल धूप दिखाने से पापों से छूट जाता है ।
▪️भगवान शिव के समक्ष तिल के तेल से दीपदान करने पर मनुष्य की समस्त कामनाओं की पूर्ति होती है । घी के दीपदान करने से मनुष्य पापों से मुक्त होकर गंगास्नान का फल प्राप्त करता है ।
भगवान शिव सबके एकमात्र मूल हैं, उनकी पूजा ही सबसे बढ़कर है; क्योंकि मूल के सींचे जाने पर शाखा रूपी समस्त देवता स्वत: तृप्त हो जाते हैं । भगवान शिव के विधिवत् पूजन से जीवन में कभी दु:ख की अनुभूति नहीं होती है । अनिष्टकारक दुर्योगों में शिवलिंग के अभिषेक से भगवान आशुतोष की प्रसन्नता प्राप्त हो जाती है, सभी ग्रहजन्य बाधाएं शान्त हो जाती हैं, अपमृत्यु भाग जाती है और सभी प्रकार के सुखभोग प्राप्त हो जाते हैं । शिवलिंग के अर्चन से मनुष्य को भूमि, विद्या, पुत्र, बान्धव, श्रेष्ठता, ज्ञान एवं मुक्ति सब कुछ प्राप्त हो जाता है ।