श्रीचैतन्यमहाप्रभु के अनुयायी और ‘गौड़ीय सम्प्रदाय’ के आचार्य श्रीजीवगोस्वामी श्रीरूप और श्रीसनातनगोस्वामी के छोटे भाई अनूपगोस्वामी के पुत्र थे । इन्होंने पैंसठ वर्षों तक अखण्ड वृन्दावन वास किया । श्रीप्रिया-प्रियतम युगलसरकार के चरणों में इनका परम अनुराग था । रामरस अर्थात् श्रृंगाररस के आप उपासक थे । सन् 1542 में माघ शुक्ल दशमी को जब श्रीजीवगोस्वामी नित्य की ठाकुर सेवा कर रहे थे, तब ‘श्रीराधादामोदरजी’ का विग्रह स्वयं प्रकट हुआ । इसी दिन इस विग्रह को सर्वप्रथम ‘श्रीराधादामोदर मन्दिर’ के सिंहासन पर विराजित किया गया था ।
परम वैरागी श्रीजीवगोस्वामी की भक्ति-भावना का कोई पार नहीं है । इनकी सेवा में चारों ओर से अपार धन आता किन्तु वे उस धन को यमुना में फेंक देते थे । श्रीजीवगोस्वामी मूर्धन्य विद्वान समझे जाते थे । उस समय के सभी लेखक इनके पास अपने ग्रन्थों पर हस्ताक्षर कराने के लिए आया करते थे । श्रीजीवगोस्वामी ने अपने शिष्यों और सेवकों को यही शिक्षा दी कि तुम लोग सुबह से लेकर शाम तक मधुर बोला करो इसलिए श्रीप्रिया-प्रियतम श्रीयुगलसरकार की स्तुति-भक्ति के लिए उन्होंने प्रेम और मधुर रस में पगे ‘युगलाष्टकम्’ की रचना की ।
श्रीजीवगोस्वामी विरचित ‘युगलाष्टकम्’ हिन्दी अर्थ सहित
कृष्णप्रेममयी राधा राधाप्रेममयो हरि: ।
जीवने निधने नित्यं राधाकृष्णौ गतिर्मम ।। १ ।।
अर्थात्—राधाजी कृष्णप्रेममयी हैं और श्रीकृष्ण राधाप्रेममय हैं—ऐसे वे राधा और कृष्ण मेरे जीवन में तथा जीवन के बाद भी सदा-सर्वदा मेरा एकमात्र आश्रय हैं ।
कृष्णस्य द्रविणं राधा राधाया द्रविणं हरि: ।
जीवने निधने नित्यं राधाकृष्णौ गतिर्मम ।। २ ।।
अर्थात्—श्रीकृष्ण का सर्वस्व श्रीराधा हैं और श्रीराधा का सर्वस्व श्रीकृष्ण हैं—ऐसे वे राधा और कृष्ण मेरे जीवन में तथा जीवन के बाद भी सदा-सर्वदा मेरा एकमात्र आश्रय हैं ।
कृष्णप्राणमयी राधा राधाप्राणमयो हरि: ।
जीवने निधने नित्यं राधाकृष्णौ गतिर्मम ।। ३ ।।
अर्थात्—श्रीकृष्ण की प्राणरूपा श्रीराधा हैं और श्रीराधा के प्राणस्वरूप श्रीकृष्ण हैं—ऐसे वे राधा और कृष्ण मेरे जीवन में तथा जीवन के बाद भी सदा-सर्वदा मेरा एकमात्र आश्रय हैं ।
कृष्णद्रवमयी राधा राधाद्रवमयो हरि: ।
जीवने निधने नित्यं राधाकृष्णौ गतिर्मम ।। ४।।
अर्थात्—श्रीकृष्ण के प्रेमरस से आप्लावित श्रीराधा हैं और श्रीराधा के प्रेमरस से आप्लावित श्रीकृष्ण हैं—ऐसे वे राधा और कृष्ण मेरे जीवन में तथा जीवन के बाद भी सदा-सर्वदा मेरा एकमात्र आश्रय हैं ।
कृष्णगेहे स्थिता राधा राधागेहे स्थितो हरि: ।
जीवने निधने नित्यं राधाकृष्णौ गतिर्मम ।। ५ ।।
अर्थात्—श्रीकृष्ण के हृदयरूप मन्दिर में श्रीराधा स्थित हैं और श्रीराधा के हृदयरूप मन्दिर में श्रीकृष्ण विराजमान हैं—ऐसे वे राधा और कृष्ण मेरे जीवन में तथा जीवन के बाद भी सदा-सर्वदा मेरा एकमात्र आश्रय हैं ।
कृष्णचित्तस्थिता राधा राधाचित्तस्थितो हरि: ।
जीवने निधने नित्यं राधाकृष्णौ गतिर्मम ।। ६ ।।
अर्थात्—श्रीकृष्ण के चित्त में श्रीराधा शोभायमान हैं और श्रीराधा के चित्त में श्रीकृष्ण विराज रहे हैं—ऐसे वे राधा और कृष्ण मेरे जीवन में तथा जीवन के बाद भी सदा-सर्वदा मेरा एकमात्र आश्रय हैं ।
नीलाम्बरधरा राधा पीताम्बरधरो हरि: ।
जीवने निधने नित्यं राधाकृष्णौ गतिर्मम ।। ७ ।।
अर्थात्—श्रीराधा ने नीलाम्बर (नीली साड़ी) धारण कर रखा है और श्रीकृष्ण पीताम्बर से शोभा पा रहे हैं—ऐसे वे राधा और कृष्ण मेरे जीवन में तथा जीवन के बाद भी सदा-सर्वदा मेरा एकमात्र आश्रय हैं ।
वृन्दावनेश्वरी राधा कृष्णो वृन्दावनेश्वर: ।
जीवने निधने नित्यं राधाकृष्णौ गतिर्मम ।। ८ ।।
अर्थात्—श्रीराधा वृन्दावन की अधीश्वरी हैं और श्रीकृष्ण वृन्दावन के अधीश्वर हैं—ऐसे वे राधा और कृष्ण मेरे जीवन में तथा जीवन के बाद भी सदा-सर्वदा मेरा एकमात्र आश्रय हैं ।
।।इति श्रीजीवगोस्वामीविरचितं युगलाष्टकम् सम्पूर्णम्।।
इस मधुर स्तोत्र का जो कोई भी मनुष्य श्रद्धापूर्वक पाठ करेगा, उसके मनोरथ को श्रीयुगलसरकार अवश्य पूर्ण करेंगे ।