yamraj dhanteras puja vidhi

कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी धनतेरस कहलाती है । इसे मनाने के तीन उद्देश्य हैं—

१. पांच दिवसीय ज्योति पर्व का प्रथम दिन धनत्रयोदशी या धनतेरस भी दीपावली की तरह समृद्धि की कामना को समर्पित रहता है । इसी दिन से लक्ष्मीजी का आवाहन शुरु हो जाता है और शाम को नये मिट्टी के दीयों में तेल भर कर उन्हें प्रकाशित कर खील से पूजा जाता है । फिर ये दीये घर के आंगन में, रसोई में, तिजोरी के पास, तुलसी के चौबारे में और मुख्य द्वार पर रखे जाते हैं । इस दिन घरों में लक्ष्मी-गणेश की नयी मूर्तियां लायी जाती हैं । घर में स्थिर लक्ष्मी के संग्रह के लिए नये सोने के आभूषण खरीदे जाते हैं और लक्ष्मी-गणेश चित्रित चांदी का सिक्का, चांदी के बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है । इस दिन लोग महंगे इलेक्ट्रॉनिक आइटम भी खरीदते हैं ।

२. इस दिन देवता और दानवों द्वारा समुद्र-मंथन करते समय भगवान धन्वन्तरि संसार के समस्त रोगों की औषधियों को कलश में भरकर ‘भव-भेषजावतार’ (सांसारिक रोगों के वैद्य) के रूप में प्रकट हुए थे । इसलिए यह तिथि आयुर्वेद के प्रवर्तक भगवान धन्वन्तरि के जयन्ती-दिवस के रूप में मनाया जाता है । धन्वन्तरिजी श्रीहरि के अवतार माने जाते हैं । इस दिन भगवान धन्वन्तरि का पूजन कर लोगों के दीर्घ जीवन और आरोग्य की मंगलकामना की जाती है ।  चूंकि भगवान धन्वन्तरि चांदी का कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए इस दिन नया बर्तन (हो सके तो चांदी का) खरीदना शुभ माना जाता है ।

३. इस तिथि का एक सम्बन्ध यमराज से है । यमुनाजी यमराज की बहन हैं इसलिए इस दिन यमुना-स्नान का भी विशेष महत्व है और प्रदोषकाल में यमराज के निमित्त दीपदान किया जाता है । 

धनतेरस के सम्बन्ध में एक कथा है—

अकाल (असामयिक) मृत्यु से मुक्ति का पर्व है धनतेरस

एक बार यमराज ने अपने दूतों से पूछा—‘तुम लोग मेरी आज्ञा से मृत्युलोक के प्राणियों के प्राण हरण करते हो, क्या तुम्हें ऐसा करते समय कभी दु:ख हुआ है या कभी दया भी आयी है ?

इस पर यमदूतों ने कहा—‘महाराज ! हम लोगों का कर्म अत्यन्त क्रूर है लेकिन किसी युवा प्राणी की असमय मृत्यु होने पर उसका प्राण हरण करते समय वहां सम्बन्धियों का करुण-क्रंदन सुनकर हम लोगों का पत्थर-दिल भी पिघल जाता है । एक बार हम लोगों को एक राजकुमार के प्राण उसके विवाह के चौथे दिन ही हरण करने पड़े । उस समय वहां का हाहाकार, करुण-क्रंदन और चीत्कार देख-सुनकर हमें अपने कार्य से बहुत अधिक घृणा हो गयी और हम लोगों का हृदय भी अत्यन्त दु:खी हो गया ।

दूतों की बात सुनकर यमराज ने कहा—‘तुम्हारी इस कारुणिक कथा से मैं स्वयं विचलित हो गया हूँ पर करुं क्या ? विधि के विधान की रक्षा के लिए ही परमात्मा ने मुझे और तुम्हें यह कार्य सौंपा है ।’

यमदूतों ने यमराज से कहा—‘धर्मराज ! कृपा करके कोई ऐसी युक्ति बताइये जिससे किसी भी प्राणी की अकाल मृत्यु न हो ।’

इसके उत्तर में यमराज बोले—‘जो मनुष्य धनतेरस के पर्व पर मेरे निमित्त दीपदान करेगा, उसकी अकाल मृत्यु नहीं होगी । यही नहीं जिस घर में यह पूजन किया जाएगा उस घर में भी कोई अकाल मृत्यु नहीं होगी ।’

कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां निशामुखे ।
यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनश्यति ।।

तभी से धनतेरस के दिन यमराज के निमित्त दीप दान की प्रथा चली आ रही है ।

धनतेरस पर यमराज के लिए दीप दान की विधि

कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी—धनतेरस को सायंकाल मिट्टी के दीपक में नई रूई की बत्ती बनाकर तिल या सरसों के तेल से भर दें । फिर उन्हें प्रकाशित करके खील से पूज दें । दक्षिण दिशा की ओर मुख करके अपने घर के द्वार पर एक पात्र में अन्न की ढेरी पर रखकर उसके ऊपर यमराज के निमित्त दीप और नैवेद्य दान करें, इससे यमराज प्रसन्न होते हैं और अकाल मृत्यु और अपमृत्यु का नाश होता है । दीप दान का मन्त्र है—

मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सह ।
त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यज: प्रीयतां मम ।।

अर्थात्—त्रयोदशी को दीप दान करने से मृत्यु, पाश, दण्ड, काल और लक्ष्मी के साथ यम प्रसन्न हों ।

कई घरों में स्त्रियां रात्रि को खाना खाने के बाद यमदीप की पूजा करती हैं । इसके लिए वे एक मिट्टी के चौमुखा दीये में तेल का दीपक बनाकर उसमें एक कौड़ी छेद करके डाल देती हैं । फिर दीपक प्रकाशित करके उस पर जल का छींटा लगाकर रोली चावल से पूजती हैं । ४ पूरी, गुड़, फूल व दक्षिणा रखकर धूप दिखाकर दीप की चार परिक्रमा करके दीपक को घर के बाहर रख देती हैं । सुबह उस दीपक में से कौड़ी निकाल कर रख लेती हैं ।

यमराज ने वचन दिया है कि जिस घर में यह पूजन-विधान किया जायगा, उस घर में कोई अकाल मृत्यु नहीं होगी ।

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