मूरख ! छाँड़ि वृथा अभिमान ।
औसर बीति चल्यौ है तेरौ, दो दिन कौ मेहमान ।।
भूप अनेक भये पृथ्वी पर रूप तेज बलवान ।
कौन वच्यौ या काल ब्याल ते मिटि गये नाम-निसान ।।
धवल धाम, धन, गज, रथ, सेना, नारी चंद्र समान ।
अंत समै सबही कौं तजि कै, जाय वसे समसान ।। (नारायन स्वामी)
अभिमान समस्त दु:खों और पापों की जड़ है । जब तक अभिमान रहता है, तब तक मनुष्य का स्वभाव बिगड़ा रहता है, सुधरता नहीं है ।
अभिमान सबको दु:ख देता है
भगवान श्रीकृष्ण की आठ पटरानियों में सबसे सुन्दर जाम्बवती थीं । जाम्बवती के पुत्र साम्ब बलवान होने के साथ ही अत्यन्त रूपवान भी थे । इस कारण साम्ब बहुत अभिमानी हो गए । अपनी सुन्दरता का अभिमान ही उनके पतन का कारण बना ।
एक बार रुद्रावतार दुर्वासा मुनि द्वारका पुरी में आए । तप से अत्यन्त क्षीण हुए दुर्वासा को देखकर साम्ब ने उनका उपहास किया । यहां तक कि देवर्षि नारद का आदर-सत्कार करने के बजाय साम्ब ने उनका मजाक उड़ाया ।
नारद जी ने साम्ब को समझाने की बहुत कोशिश की पर साम्ब के स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं आया । इसलिए नारदजी ने साम्ब को दण्ड देने का एक उपाय सोचा ।
नारद जी श्रीकृष्ण के पास गये और कहा कि उनकी सोलह सौ गोपियों के साथ साम्ब का लौकिक प्रेम है, जिससे गोपियां भी साम्ब के लौकिक प्रेम में पागल हैं ।
श्रीकृष्ण को नारद जी की इस बात पर विश्वास नहीं हुआ । इस बात को सिद्ध करने के लिए नारदजी ने श्रीकृष्ण को प्रत्यक्ष प्रमाण देने के लिए कहा ।
एक दिन श्रीकृष्ण रैवतक पर्वत पर गए थे । अवसर देखकर नारद जी ने साम्ब से कहा कि श्रीकृष्ण रैवतक पर्वत पर तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं, इसलिए तुम मेरे साथ तुरन्त चलो ।
नारद जी के कहने पर साम्ब उनके साथ रैवतक पर्वत पर चले गए । वहां गोपियां जलक्रीड़ा कर रही थीं । वे साम्ब को देखकर मोहित हो गयीं । श्रीकृष्णने साम्ब को गोपियों के बीच देख लिया और उनका संदेह सच में बदल गया ।
श्रीकृष्ण ने क्रोध में साम्ब को कोढ़ की बीमारी से उसका सौंदर्य नष्ट होने का शाप दे दिया । इस शाप से मुक्ति के लिए नारद जी ने साम्ब को मैत्रेय वन में बारह वर्ष तक सूर्य की उपासना करने का उपदेश किया ।
सूर्य की उपासना से कोढ़ के रोग से मुक्ति
चन्द्रभागा नदी के तट पर मैत्रेय वन में साम्ब निराहार रहकर १२ वर्ष कर सूर्य की उपासना करते रहे । एक दिन सूर्य देव ने स्वप्न में प्रकट होकर साम्ब को अपने २१ नाम जपने का आदेश दिया । सूर्य के एकविंशति (२१) नामों का स्मरण करते हुए साम्ब ने १२ साल तक तपस्या की । सूर्यदेव ने प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा ।
साम्ब मे पहले वर में भगवान सूर्य में अटूट भक्ति होने का और दूसरे वर में रोग से मुक्ति की प्रार्थना की । सूर्य देव की कृपा से साम्ब का शरीर पहले जैसा रूपवान हो गया ।
सूर्य देव ने कहा—‘जो व्यक्ति मृत्यु लोक में मेरे मन्दिर का निर्माण कराएगा वह सनातन लोक गामी होगा ।’
दूसरे दिन साम्ब को चन्द्रभागा नदी में स्नान करते समय सूर्य की मूर्ति पानी पर तैरती मिली । उन्होंने एक सुन्दर मन्दिर का निर्माण कराकर उसमें मूर्ति की स्थापना की ।
उड़ीसा में ‘साम्ब दशमी’ के दिन लोग इस प्रसंग का स्मरण करके अपनी संतानों के आरोग्य की कामना करते हैं ।
श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने अभिमान से बचने का बहुत ही सुंदर उपाय अपने ग्रंथ शिक्षाष्टक में लिखा है–
‘तृण से भी अधिक नम्र होकर, वृक्ष से भी अधिक सहिष्णु बनकर, स्वयं मान की अभिलाषा से रहित होकर तथा दूसरों को मान देते हुए सदा श्रीहरि के कीर्तन में रत रहें ।’