tirupati balaji brahmoutsav

भगवान उत्सव प्रिय हैं; इसलिए उनका एक नाम ‘नित्योत्सव’ है । भगवान के मंदिरों में नित्य नये उत्सव होते रहते हैं ।

भगवान वेंकटेश्वर (तिरुपति बालाजी) का मुख्य उत्सव है ब्रह्मोत्सव

तिरुपति बालाजी में होने वाले उत्सवों में सबसे प्रमुख उत्सव है—ब्रह्मोत्सव । यह महान दिव्य उत्सव है; इसलिए इसे ‘महोत्सव’ कहते हैं और यह हर साल मनाया जाता है ।

जब भगवान श्रीनिवास (वेंकटेश्वर) ने अपनी शक्तियों—श्रीदेवी और पद्मावतीजी के साथ वेंकटाचल पर अपना निवास बनाया, उस समय सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी ने भगवान वेंकटेश्वर बालाजी की महिमा का प्रचार करने के लिए तिरुमाला पर्वत पर एक दिव्य उत्सव का आयोजन किया । ब्रह्माजी ने देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा को बुलाकर महोत्सव के लिए आवश्यक रथ, वाहन, छत्र, चामर, तोरण, मोतियों की चांदनी, शेर, हंस, गरुड़, हाथी, सूर्य प्रभा, कल्पवृक्ष, घोड़ा और हनुमान आदि बनवाये । दस दिन तक रात-दिन महावैभव के साथ ब्रह्मोत्सव मनाया गया और अब भी मनाया जाता है । इस उत्सव में देवता, यक्ष, गंधर्व नाग, सिद्ध, अप्सराएं, ऋषि-मुनि आदि उपस्थित हुए । 

परमात्मा की प्रेरणा से मनुष्यों के कल्याण के लिए यह उत्सव ब्रह्माजी द्वारा शुरु किया गया; इसलिए यह ‘ब्रह्मोत्सव’ कहलाया । तब से लेकर आज तक इस उत्सव को मनाने की परम्परा चली आ रही है । यह उत्सव साल में एक बार आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारम्भ होकर नौ दिनों तक बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है । इस उत्सव में भगवान वेंकटेश्वर ‘मलयप्प स्वामी’ के रूप में भक्तों पर अपनी कृपा बरसाने के लिए श्रीदेवी और पद्मावतीजी के साथ विभिन्न वाहनों पर सवार होकर अपने दिव्य निलय (मंदिर) तथा उससे लगी स्वामिपुष्करिणी के चारों ओर की वीथियों में भ्रमण करते हैं । ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मा आदि देवता और नारद आदि ऋषि भी अप्रत्यक्ष रूप से इस उत्सव का आनंद लेने आते हैं ।

ब्रह्मोत्सव के दौरान होने वाले प्रमुख कार्यक्रम

(main activities during Brahmotsavam) 

▪️ब्रह्मोत्सव में सबसे पहले भगवान वेंकटेश्वर के मंदिर, रसोईघर आदि की दीवारों को अच्छी तरह धोया जाता है । इसके बाद मंदिर व नगर को आम के पत्तों, केले के खंभों, फूलों, तोरणों और कलशों से सजाया जाता है । इस कार्य को ‘आलय शुद्धि और अलंकरण’ (Aalaya Shuddhi and Alankaram) कहा जाता है ।

▪️इसके बाद पुजारीगण नये वस्त्र धारण कर श्रीआण्डाल, श्रीविष्वक्सेन और गरुड़ आदि की पूजा कर एक निश्चित स्थान पर जाकर पृथ्वी (भूदेवी) की पूजा करते हैं और वहां से मिट्टी लाकर आनन्दनिलय के मुख्य प्रांगण में बिछा देते हैं । फिर इसमें विधिपूर्वक धान्य बोये जाते हैं । इस क्रिया को ‘मृत्तिका संग्रह’ (Mrit sangrahanam) और ‘अंकुरार्पण’ (Ankurarpanam) कहते हैं ।

▪️आश्विन शुक्ल द्वितीया को भगवान वेंकटेश्वर के मंदिर के सामने स्थित ध्वज-स्थान पर भगवान की ध्वजा फहराई जाती है । इस क्रिया को ‘ध्वजारोहण’ (Dwajarohanam) कहते हैं । इसी के साथ ब्रह्मोत्सव का मुख्य उत्सव प्रारम्भ हो जाता है ।

▪️ब्रह्मोत्सव में उपस्थित होने के लिए मनुष्यों के अलावा समस्त देवताओं व ऋषियों का आवाहन किया जाता है । जब यह ब्रह्मोत्सव ब्रह्माजी द्वारा शुरु किया गया तब गरुड़जी ने सबको निमंत्रित किया था; इसलिए आज भी यह कार्य गरुड़जी की भावना से होता है । इस क्रिया को ‘देवता आवाहन’ (Devatavanam) कहते हैं ।

▪️आश्विन शुक्ल द्वितीया से एकादशी तक नित्य सुबह-शाम ‘वाहन सेवा’ (vahana seva)  नाम का यह मुख्य उत्सव मनाया जाता है । इसमें भगवान वेंकटेश्वर श्रीदेवी और पद्मावतीजी के साथ विभिन्न वाहनों पर सवार होते हैं और विशाल शोभायात्रा के रूप में आनंदनिलय के चारों ओर की विथियों में भ्रमण करते हैं । सोने-चांदी की पालकियों, शेष, हंस, गरुड़, हनुमान, गज और अश्व आदि के वाहन पर भगवान सवार होकर भक्तों को दर्शन-सुख देते हैं ।

इनमें भगवान की रथोत्सव यात्रा सबसे लोकप्रिय है, जिसमें चंदन की लकड़ी से बने दिव्य रथ को दो घोड़े खीचते हैं । भगवान और उनकी पत्नियों की रक्षा के लिए आठ दिक्पाल रथ के साथ नियुक्त रहते हैं । साथ में भक्तों का अपार समूह भगवान की जय-जयकार करता हुआ चलता है ।

उत्सव के पहले दिन भगवान वेंकटेश्वर अपनी शक्तियों श्रीदेवी और पद्मावतीजी के साथ शेष वाहन पर भ्रमण करते हैं

दूसरे दिन भगवान हंस वाहन पर विराजित होते हैं

तीसरे दिन भगवान वेंकटेश सिंह वाहन पर विराजमान होकर और मुक्ताओं का चंदोबा लगा कर भ्रमण करते हैं।

चौथे दिन भगवान का कल्पवृक्ष वाहन होता है ।

पांचवे दिन भगवान का मोहिनी अवतार श्रृंगार होता है और वे गरुड़ वाहन पर विराजित होते हैं ।

छठे दिन प्रात:काल भगवान की शोभा यात्रा हनुमंत वाहन पर निकलती है और रात्रि में गज वाहन पर विराजमान होकर भ्रमण करते हैं ।

सातवें दिन प्रात: सूर्य प्रभा वाहन और रात्रि में चंद्रप्रभा नामक वाहन पर भगवान विराजमान होते हैं ।

आठवे दिन रथोत्सव होता है और रात्रि में वे अश्व वाहन पर विराजमान होकर दिव्य निलय (मंदिर) तथा उससे लगी स्वामिपुष्करिणी के चारों ओर की वीथियों में भ्रमण करते हैं ।

नौवें दिन पालकी उत्सव होता है और भगवान को स्वामिपुष्करिणी में अवभृथ स्नान कराया जाता है । 

▪️ वाहन की सवारी के बाद ब्रह्मोत्सव में प्रतिदिन भगवान बालाजी अपने आलय में मण्डप में विराजमान होते हैं । वहां उनकी अर्चना करके नैवेद्य अर्पित करते हैं । इसे ‘बालाजी का दरबार’ (Srivari koluvu) कहते हैं ।

▪️ वाहन में भ्रमण करने से भगवान थक जाते हैं; अत: श्रीदेवी व भूदेवी सहित उन्हें पंचामृत से स्नान कराया जाता है । इस क्रिया को ‘स्नपन’ (Snapanam) कहते हैं ।

▪️ भगवान की सवारी निकालने से पहले उनका श्रीदेवी और पद्मावतीजी सहित चावल के आटे से उबटन किया जाता है । उस चूर्ण को श्रद्धालुओं में बांटा जाता है । ऐसा माना जाता है कि यह चूर्ण प्रसाद मनुष्य के सभी पाप-ताप दूर करने वाला है । इस क्रिया को ‘चूर्णाभिषेक’ (choornabhishekam) कहते हैं ।

▪️ ब्रह्मोत्सव के अंतिम दिन भगवान को श्रीदेवी और पद्मावतीजी के साथ स्वामिपुष्कपिणी में अपने सुदर्शन चक्र के साथ मंत्रों व मंगल वाद्यों की ध्वनि के साथ स्नान कराया जाता है । इसे भगवान का ‘जल विहार’ भी कहते हैं । इस क्रिया को ‘चक्रस्नान’ (Chakrasnanam) कहते हैं । यह एक प्रकार से यज्ञ की पूर्णाहुति पर होने वाले ‘अवभृथ स्नान’ के समान है । स्नान के बाद भगवान को पुन: उनके आनन्द निलय में प्रतिष्ठित कराया जाता है ।

▪️ ब्रह्मोत्सव के पूर्व जिन देवताओं तथा ऋषि-मुनियों का ब्रह्मोत्सव में शामिल होने के लिए आवाहन किया जाता है, उनका अगले ब्रह्मोत्सव में पुन: पधारने के लिए प्रार्थना के साथ विसर्जन किया जाता है । इसे ‘देवतोद्वासन’ (Devatodwasanam) कहते हैं ।

▪️ ब्रह्मोत्सव के प्रारम्भ मे जिस ध्वज को मंदिर के प्रांगण में फहराया गया था, उसे ब्रह्मोत्सव के समापन पर विधि-विधान के साथ उतार दिया जाता है । इसे ‘ध्वजावरोहण’ (Dwajavarohanam) कहते हैं ।

इस प्रकार भगवान वेंकटेश्वर बालाजी का ब्रह्मोत्सव बड़ी धूमधाम से संपन्न होता है ।

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