गोपियां प्रेमभक्ति की साक्षात् मूर्तियां
भगवान श्रीकृष्ण साक्षात् लीलावतार हैं । उन्होंने अपनी अनन्त दिव्य लीलाओं के माध्यम से अनेक प्रणियों का उद्धार किया । गोपियां श्रीकृष्ण प्रेम की पराकाष्ठा हैं । गोपियों का हृदय प्रेममय है, श्रीकृष्णमय है, अमृतमय है । गोपियों के मन, प्राण और नेत्र श्रीकृष्ण में ही तल्लीन रहते थे । गोपियों को सुबह जागने के बाद कन्हैया की याद आती थी । गोपियों का ऐसा नियम था कि वे मंगला के दर्शन (ब्राह्ममुहुर्त में भगवान के सोकर उठने के बाद के पहले दर्शन) करने के लिए नन्दभवन जाती थीं । मंगला के दर्शन का अर्थ है कि सुबह सबसे पहिले भगवान का दर्शन करना । गोपियां नन्हे श्यामसुन्दर के दर्शन कर, उनकी मधुर किलकारी सुनकर आनन्द-विभोर हो जातीं और कन्हैया को हृदय से लगाने पर उनको ऐसा लगता मानो कोई अमूल्य निधि मिल गयी हो । श्यामसुन्दर के नित्य दर्शन कर गोपियां अपने को बहुत भाग्यशाली मानती थीं ।
चलो री सखि ! श्याम दरश करि आवें ।
निरखत श्याम, नयन नहिं थाकत, केतिक घड़ी बितावें,
किलकारी की मधुर ध्वनि सुनि, आनन्द हिय भरि जावें ।
बालक श्याम इतौ मनुहारी, गोद लेन ललचावें,
पल दो पल को अंक लेइ कै, मनो अमित धन पावें ।
मन ना भरत निरखि कान्हा छवि, निज गृह क्योंकर जावें ।
बड़ो भाग्य हम गोकुल ग्वारिन, श्याम दरस नित पावें ।। (श्रीद्वारकानाथजी अग्रवाल)
यशोदा माता कहती–अरी सखियों ! अभी तो अँधेरा है। तुम इस समय आई हो ? गोपियां कहतीं–’कन्हैया के दर्शन के बिना हमें चैन नहीं पड़ता, इससे लाला के दर्शन करने आईं हैं ।’
प्रात: समय घरघर तें देखनकों आई हैं सब गोकुलनारी ।
अपनोरी कृष्ण जगाय यसोदा मोहन मंगलकारी ।।
सब व्रजकुल के प्रान जीवनधन या सुत की बलिहारी ।
आसकरन प्रभु मोहननागर गिरिगोवर्धनधारी ।।
गोपियां मात्र ग्वालिन नहीं हैं; वे भक्ति-सम्प्रदाय की आचार्या हैं । गोपियाँ जगत को समझा रही हैं कि भक्ति कैसे की जाती है । भगवान के स्वरूप में आसक्ति को भक्ति कहते हैं। संसार में आसक्ति माया है ।
गोपियाँ बालकृष्ण के पालने के चारों ओर खड़ी होकर श्रीकृष्ण के एक-एक अंग में आंखें स्थिर करती हैं । एक गोपी श्रीकृष्ण के चरणों की प्रशंसा करते हुए दूसरी गोपी से कहती है–’अरी सखी ! लाला के चरण कितने सुन्दर हैं, उनके तलवे कितने लाल हैं, नाखून तो रत्न से हैं । इनके चरणों में कमल व स्वस्तिक का चिह्न है ।’ इस तरह दास्य भाव में गोपी भगवान के चरणों में ही दृष्टि रखती है । एक दूसरी गोपी को श्रीकृष्ण का रंग बहुत पसन्द है । वह कहती है–’लाला का श्रीअंग मेघ-सा है । इनके नेत्र कमल से हैं। बाल भी कितने सुन्दर हैं ।’ इस गोपी का सख्य व वात्सल्यभाव है, उसे श्रीकृष्ण का मुख देखे बिना चैन नहीं आता है ।
सूरदासजी कहते हैं–गोपियां श्रीकृष्ण का दर्शन करते हुए विनती करती हैं–
जागिए, व्रजराज-कुँवर, कमल-कुसुम फूले ।
कुमुद-बृंद सकुचित भए, भृंग लता भूले ।।
तमचुर खग रोर सुनहु, बोलत बनराई ।
राँभति गो खरकनि मैं, बछरा हित धाई ।।
बिधु मलीन रबि-प्रकास, गावत नर-नारी ।
सूर स्याम प्रात उठौ, अंबुज-कर-धारी ।।
अर्थात्–व्रजराजकुमार, जागो ! देखो, कमलपुष्प विकसित हो गये, कुमुदनियों का समूह संकुचित हो गया, भौंरें लताओं को भूल गये (उन्हें छोड़कर कमलों पर मँडराने लगे) । मुर्गे और दूसरे पक्षियों का शब्द सुनो, जो वनों में बोल रहे हैं; गोष्ठों में गायें रँभाने लगी हैं और बछड़ों के लिए दौड़ रही हैं । चन्द्रमा मलिन हो गया, सूर्य का प्रकाश फैल गया, स्त्री-पुरुष प्रात:कालीन स्तुति का गान कर रहे हैं । कमल-समान हाथों वाले श्यामसुन्दर ! प्रात:काल हो गया, अब उठो ।
कटि-परिवर्तन उत्सव
गोपियाँ बालकृष्ण के दर्शन में तन्मय हैं, तभी लाला ने करवट बदलना शुरु किया । इसे देखकर गोपियों को बहुत आनंद हुआ । वे दौड़कर माता यशोदा के पास जाकर बोलीं कि बालकृष्ण ने आज करवट ली है । यशोदा माता को बहुत प्रसन्नता हुई कि लाला अभी तीन महीनों का है और करवट बदल रहा है । यशोदा माता ने कहा कि आज मैं लाला का कटि-परिवर्तन उत्सव करूंगी ।
करवट लई प्रथम नंदनन्दन ।
ताको महरि महोत्सव मानत भवन लिपायो चंदन ।।
बोली सकल घोष की नारी तिनको कीयो वंदन ।
मंगल गीत गवावत हरखत हँसत कछू मुख मंदन ।। (परमानंदजी)
उत्सव प्रिय हैं श्रीकृष्ण
घर में ठाकुरजी को प्रतिष्ठित करने के बाद रोज ही उत्सव किए जाते हैं, क्योंकि ठाकुरजी के नाम हैं–नित्योसव, नित्यश्री । उत्सव भगवत-स्मरण में तन्मय होने और जगत को भुलाने के लिए हैं । उत्सव के दिन भूख-प्यास भुलाई जाती है, शारीरिक-सुख भुलाया जाता है। उत्सव में धन गौण है, मन मुख्य है। श्रीकृष्ण के लिए माता यशोदा नित्य ही उत्सव मनाती हैं ।
बालकृष्ण ने जब पहली बार करवट ली तो उस दिन उनका जन्म-नक्षत्र भी था । मैया ने कटि-परिवर्तन-उत्सव मनाया है । यशोदा माता ने निश्चय किया कि मुझे आज ग्वालवालों व गोपियों की पूजा करनी है । सभी का आशीर्वाद और शुभेच्छा पाना है । मैया ने आज समस्त गोप समुदाय को बुलाया है । सारे घर को चंदन के जल से धोया गया है । ब्राह्मण वेद-पाठ कर रहे हैं । हवन-पूजन हो रहा है । गोपियां गाती हुईं झुंड-की-झुंड आ रही हैं और मंगलगान कर रही हैं । बहुत भीड़-भाड़ है । यशोदाजी मन-ही-मन बहुत ही प्रसन्न हैं ।
यशोदा माता ने अपने पुत्र का अभिषेक किया और स्वस्तिवाचन करवाकर ब्राह्मणों को खूब खिलाया-पिलाया । अन्न-वस्त्र और सोने की माला, गाय और मुँहमांगी वस्तुओं का दान किया । गरीब ग्वालों और गोपियों की पूजाकर उन्हें दान दिया है । नंदबाबा लक्ष्मी का सदुपयोग कर उदारता से दान दे रहे हैं ।
अब वहां धीरे से निद्रादेवी आयीं । उन्होंने मन में कहा जब भी कोई उत्सव होता है लोग मुझे भगा देते है (अर्थात् उत्सव के समय लोगों की नींद उड़ जाती है) पर आज इस उत्सव को मैं अपनी आँखों से देखूंगी । इसलिए ब्रह्म जोकि बालक के रूप में नंदजी के यहां आया है, इसी की आँखों में मैं बैठूँगी । भगवान ने भी उन्हें स्वीकार कर लिया । बालकृष्ण की आँखें नींद से बोझिल होने लगीं । इतनी भीड़ में शिशु निर्विघ्न सो सके, इस विचार से यशोदामाता ने दूध-दही, मक्खन, गोरस आदि से लदे एक शकट (छकड़ा, बैलगाड़ी) के नीचे पलना बिछाकर श्रीकृष्ण को सुला दिया । कुछ बालकों को वहीं खेलने को कह दिया और स्वयं अतिथियों की सेवा में लग गईं ।
अतिथियों की सेवा धर्म है परन्तु जहां भगवान हों वहां इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि भगवान की सेवा में कोई कमी न रह जाए। भगवान की उपस्थिति में भगवान को ही देखना चाहिए।
भगवान की लीला बड़ी विचित्र है । वे कब कौन-सा काम किस हेतु करेंगे, इसे कोई नहीं जानता । भगवान की प्रत्येक लीला ऐसे ही रहस्यों से भरी होती है । उनकी लीला और महिमा का कोई पार नहीं पा सकता । श्रीकृष्ण की बाललीलाओं का मूल उद्देश्य अपने भक्तों को आनन्द देना और उन्हें भवबन्धन से मुक्त करना है ।
बेमिसाल!! अदभूत प्रसंग! अभिव्यक्ति और ह्रदयग्राही लेख!! बधाईयाँ जी!!! जय श्री राधे कृष्णा!!!! प्यार ही प्यार बेशूमार”!!!
बेमिसाल!! अदभूत प्रसंग! अभिव्यक्ति और ह्रदयग्राही लेख!! बधाईयाँ जी!!! जय श्री राधे कृष्णा!!!! प्यार ही प्यार बेशूमार”!!!”प्रकृति पर्यावरण रक्षक!! गौ पालक!! दुष्ट हन्ता! योगीराज सुदर्शनधारी!! सखाओ के सखा प्रेमिका के प्रेमी !! प्रेम का अथाह सागर!!! नटवर नागर बारम्बार नमन!!!!!
[…] बालकृष्ण का कटि-परिवर्तन (करवट बदलने का) उत्सव व शकट-भंजन https://aaradhika.com/2016/01/12/shri-krishna-changing-sides-while-sleeping/ […]
jai sri krishna