मधुराष्टक की मधुरता का वर्णन कर पाना संभव नहीं है, संभवतः श्रीकृष्ण स्तुति में इस पृथ्वी पर लिखा गया यह सबसे मधुर अष्टक है। मधुराष्टक में महाप्रभु श्रीवल्लभाचार्यजी ने बालरूप श्रीकृष्ण की मधुरता का मधुरतम वर्णन किया है।
जब भगवान प्रिय लगें तो उनका नाम, धाम, सब कुछ प्रिय लगता है। मधुराष्टक में सारा मधुर-ही-मधुर है, ये मधुर क्यों है? इसका उत्तर है–भगवान के माधुर्य का जब प्राकट्य होता है तो सारे जगत में मधुरता भर जाती है। भगवान के रस का प्रादुर्भाव होता है तो जगत सरस बन जाता है। भगवान के प्रकाश का प्राकट्य होता है तो जगत् प्रकाशमय बन जाता है।
श्रीकृष्ण की मधुर मुसकान के कणमात्र से ही जगत में माधुर्य का विस्तार होता है। इनका मन्दस्मित हास्य ही जगत में आनन्द की वर्षा करता है। श्रीकृष्ण का प्रत्येक अंग एवं गतिविधि मधुर है और उनके संयोग से अन्य सजीव और निर्जीव वस्तुएं भी मधुरता को प्राप्त कर लेती हैं। इस सृष्टि में जो कुछ भी मधुरता है उसको श्रीकृष्ण की मधुरता का एक अंश समझते हुए भक्तों को निरंतर श्रीबालकृष्ण का स्मरण करना चाहिए।
मधुराष्टक पुष्टिमार्गीय वैष्णवों के नित्य पठनीय ग्रंथों में अपूर्व स्थान रखता है, इसके नित्य पठन से व्यक्ति सब का प्रिय हो जाता है और भगवान श्रीकृष्ण की पराभक्ति प्राप्त कर लेता है।
मधुराष्टक (अर्थ सहित)
अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरम्।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥१॥
आपके होंठ मधुर हैं, आपका मुख मधुर है, आपकी ऑंखें मधुर हैं, आपकी मुस्कान मधुर है, आपका हृदय मधुर है, आपकी चाल मधुर है, मधुरता के ईश हे श्रीकृष्ण! आपका सब कुछ मधुर है।।१।।
वचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं मधुरम्।
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥२॥
आपका बोलना मधुर है, आपके चरित्र मधुर हैं, आपके वस्त्र मधुर हैं, आपका तिरछा खड़ा होना (अंगभंगी) मधुर है, आपका चलना मधुर है, आपका घूमना मधुर है, मधुरता के ईश हे श्रीकृष्ण! आपका सब कुछ मधुर है।।२।
वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ।
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥३॥
आपकी बांसुरी मधुर है, आपके लगाये हुए पुष्प मधुर हैं, आपके हाथ (करकमल) मधुर हैं, आपके चरण मधुर हैं, आपका नृत्य मधुर है, आपकी मित्रता मधुर है, मधुरता के ईश हे श्रीकृष्ण! आपका सब कुछ मधुर है ।।३॥
गीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम् ।
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥४॥
आपके गीत मधुर हैं, आपका पीना मधुर है, आपका भोजन मधुर है, आपका शयन मधुर है, आपका रूप मधुर है, आपका टीका (तिलक) मधुर है, मधुरता के ईश हे श्रीकृष्ण! आपका सब कुछ मधुर है ॥४।।
करणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं रमणं मधुरम्।
वमितं मधुरं शमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥५॥
आपके कार्य मधुर हैं, आपका तैरना मधुर है, आपका चोरी करना मधुर है, आपका प्यार करना मधुर है, आपके शब्द मधुर हैं, आपका शांत रहना मधुर है, मधुरता के ईश हे श्रीकृष्ण! आपका सब कुछ मधुर है॥५॥
गुंजा मधुरा माला मधुरा यमुना मधुरा वीची मधुरा।
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥६॥
आपकी घुंघची मधुर है, आपकी माला मधुर है, आपकी यमुना मधुर है, उसकी लहरें (तरंगें) मधुर हैं, उसका जल मधुर है, उसके कमल मधुर हैं, मधुरता के ईश हे श्रीकृष्ण! आपका सब कुछ मधुर है ॥६॥
गोपी मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरम् ।
दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥७॥
आपकी गोपियाँ मधुर हैं, आपकी लीला मधुर है, आप उनके साथ मधुर हैं, आप उनके बिना मधुर हैं, आपका देखना मधुर है, आपकी शिष्टता मधुर है, मधुरता के ईश हे श्रीकृष्ण! आपका सब कुछ मधुर है ॥७॥
गोपा मधुरा गावो मधुरा यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा।
दलितं मधुरं फलितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥८॥
आपके गोप मधुर हैं, आपकी गायें मधुर हैं, आपकी लकुटि (छड़ी) मधुर है, आपकी सृष्टि (रचना) मधुर है, आपका विनाश करना मधुर है, आपका वर देना मधुर है, मधुरता के ईश हे श्रीकृष्ण! आपका सब कुछ मधुर है॥८॥
Jai sree Radhe
Archanaji radhe radhe…oottam vichar…sadhu
धन्यवाद!
Thanks
जय जय श्री राधे!
Thanks for reading post!
Radhey Radhey
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अति सुन्दर
धन्यवाद!
Madhuradhipaterakhilam madhuram
Jai Shree Krishna,ati Uttam. Thanks
जय जय श्री राधे राधे
Ssneh vinmr nivedn me aaradika se Bhut empres kitne q. Srltase milte he. Radha ashtmi ki bdhaei …….thanks Good bless you.
‘आराधिका’ के सभी पाठकों को मैं अर्चना अग्रवाल का सप्रेम नमस्कार!
very nice side for Dharmic Bhagwan.
Very Nice and Useful, God Bless You. Thankyou very much.