भगवान श्रीकृष्ण की इस लीला का वर्णन श्रीरघुनाथ गोस्वामीजी ने अपने ग्रन्थ ‘मुक्ताचरित’ में किया है । इस दिव्य लीला का स्थल गोवर्धन में श्रीराधाकुण्ड के पास पश्चिम दिशा में स्थित ‘माल्याहरि कुण्ड’ है । व्रजवासी इसे ‘मलिहारी कुण्ड’ या ‘मल्हैरी कुण्ड’ कहते हैं । यहां श्रीराधाकृष्ण की माल्याहरण लीला हुई थी ।
श्रीकृष्ण की खेत में मोती उपजाने की लीला
एक बार दीपावली पर्व पर दीप-महोत्सव मनाने के लिए सब ब्रजवासी माल्याहरि कुण्ड पर सजधज कर एकत्रित हुए । उन्होंने लाल-पीली रेशमी बगलबन्दी और सिर पर मोरपंखी लगी गोटेदार रंग-बिरंगी पगड़ियां पहन रखी थीं । उन्होंने माथे पर तिलक और गालों पर चंदन से पत्ररचना कर रखी थी और कानों में कर्णफूल, गले में गुंजामाला, हाथों में लकुटिया व घुटनों तक ऊंची धोती पहन रखी थी । इनके साथ आयीं व्रजबालाओं ने रंग-बिरंगे लहंगा-फरिया पहन रखे थे ।
सभी ब्रजबालाएं अपनी प्यारी श्रीराधा का श्रृंगार करने के लिए मलिहारी कुण्ड के पास चबूतरे पर बैठ गयीं । मणियों और मुक्ताओं (मोतियों) की मालाएं गूंथी जाने लगीं । सखियां अपनी प्यारी राधाजू के लिए बाजूबंद, पौंची, कठुला, पैंजनिया, रुनझुनियां, कंकण आदि तरह-तरह के आभूषणों को तैयार कर रही थीं । किसी सखी ने श्रीराधा के लिए सुन्दर कर्णफूल बनाए तो किसी ने करधनी ।
श्रीकृष्ण को उनके प्रिय तोते ने दी सखियों की जानकारी
उस समय पास ही कदम्ब के वृक्ष पर श्रीकृष्ण का प्रिय तोता विचक्षण बैठा हुआ था । उसने श्रीराधा की सखियों की सारी बात सुन लीं और तुरन्त ही जाकर श्रीकृष्ण को सारा वृतान्त कह सुनाया । अपनी प्रियतमा श्रीराधा को देखने के लिए श्रीकृष्ण तो पहले से ही व्याकुल थे । विचक्षण की बातें सुनकर तो उन्हें पलकान्तर (एक क्षण) भी कल्पान्तर (कल्प) के समान लगने लगा—
मेरी सर्वस्व घन स्वामिनी मोहि और न कछु सुहावै री ।
पलकान्तर अवलोके बिनु मोहि कल्पान्तर हि बिहावै री ।।
श्रीराधाजी से मिलने की तीव्र इच्छा के कारण लीलाबिहारी श्रीकृष्ण को एक लीला सूझी । कोई भी लीला करना तो उनके दांये हाथ का खेल है । शीघ्र ही वह मलिहारी कुण्ड पर उस स्थान पर आ गए जहां श्रीराधाजी की सखियां आभूषण बना रही थीं । श्रीकृष्ण ने बड़े ही विनम्र होकर सखियों से पूछा—
‘अरी सखियो ! ये मुक्ता कहां से लाई हो ? बड़े अच्छे हैं । कुछ मुक्ता हमें दे दो । हम अपनी गायों का इनसे श्रृंगार करेंगे ।’
एक गोपी ने श्रीकृष्ण से चुहुलबाजी करते हुए कहा—‘अजी ! अपनी राह चलो, वन में जाकर गैया चराओं, ग्वारियाओं को मुक्ता-मोतियों की क्या समझ ?’
दूसरी गोपी ने हाथ नचाते हुए कहा—‘हमारी प्यारी वृषभानुदुलारी श्रीराधा की श्रृंगार की वस्तुएं क्या तुम्हारी गैयाओं के लिए हैं ? कुएं का मेंढक और बात करते हो सागर की ! आखिर गंवार ग्वारिया जो ठहरे ।’
ऊपर से तो श्रीकृष्ण याचक बनकर गोपियों से मुक्ता मांग रहे थे परन्तु कनखियों से गोपियों से किए गए मधुर भाषण का रस उनके हृदय में उतरता जा रहा था । श्रीराधा की सखियों और श्रीकृष्ण में तर्क-वितर्क होने लगा । सभी को इस चुहुलबाजी में बड़ा आनन्द आ रहा था । लेकिन उन वाचाल सखियों के आगे बेचारे कन्हैया की एक न चली और वे अपना-सा मुंह लेकर माता यशोदा के पास आए । अपने प्राणधन कन्हैया को गोपियां द्वारा मोती न देने से दुखी जानकर माता यशोदा ने उन्हें बहुत से मोती दिए ।
भगवान श्रीकृष्ण द्वारा मोतियों की खेती
लीलाबिहारी श्रीकृष्ण का मोतियों से कोई प्रयोजन नहीं था उन्हें तो लीला करनी थी । उन्होंने माता द्वारा दिए गए सभी मोतियों को यमुनातट पर बिखेर दिया । फिर श्रीकृष्ण ने अपनी प्रिय गायों—‘कारी-गौरी, धौरी-धूमर’ के दुग्ध से उस भूमि को सींच दिया । भगवान की लीला के प्रभाव से कुछ ही समय में मुक्ताफल के सैंकड़ों सुन्दर वृक्ष दिखाई देने लगे जो विशाल आकार के थे और अनगिनत रंगों के मोतियों से भरे हुए थे । जैसे आकाश में झुंड-के-झुंड तारे शोभा पाते हैं, उसी प्रकार उन वृक्षों में करोड़ों मुक्ताफलों के गुच्छे लटके हुए थे । असंख्य रंगों के असंख्य मोती—ऐसा पहले न कभी किसी ने देखा न सुना ।
थोड़ी देर में ही बात पूरे व्रजमण्डल में फैल गयी । श्रीराधा की सखियों ने भी इस चमत्कारी घटना को सुना । उन्होंने भी सुन्दर मोती प्राप्त करने के लिए मोतियों की खेती की और वृषभानुपुर की सभी गायों के दूध से उस खेती को सींचा परन्तु वहां तो सभी जगह खरपतवार ही उग आया । अब तो उनके पास जो मुक्ता थे वे भी खेती करने में नष्ट हो गए ।
मुक्ताओं के धनी श्रीकृष्ण
हार मान कर सखियों ने श्रीकृष्ण की शरण लेने की सोची । उनको विश्वास था कि श्रीकृष्ण उनके नुकसान की भरपाई अवश्य कर देंगे क्योंकि वे तो मुक्ताओं के धनी थे । यह सोचकर वह प्रियाजू श्रीराधा को साथ लेकर श्रीकृष्ण के पास जा पहुंचीं ।
लीलाबिहारी श्रीकृष्ण प्रिया श्रीराधा सहित गोपियों को देखकर उनके मन में उठ रही मुक्ता पाने की मूक याचना को भांप गए । श्रीराधा के नैन से उनके नैन मिले और मिलन की साध पूरी हो गयी ।
दोउ चकोर, दोउ चन्द्रमा, दोउ अलि, पंकज दोउ ।
दोउ चातक, दोउ मेघ प्रिय, दोउ मछली, जल दोउ ।।
आश्रय-आलंबन दोउ, विषयालम्बन दोउ ।
प्रेमी-प्रेमास्पद दोउ, तत्सुख-सुखिया दोउ ।। (पद-रत्नाकर)
आपस में मूक प्रेम का आदान-प्रदान हुआ—
दोनों आप्यायित भए, मिले दिव्य रस-रीति ।
महाभाव-रसराज की अतुल अकल यह प्रीति ।। (पद-रत्नाकर)
श्रीगर्गसंहिता में भगवान श्रीकृष्ण की खेतों में मोती बिखेरने की कथा थोड़ी अलग प्रकार की है । श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाए जाने पर सभी गोप बहुत आश्चर्यचकित हुए । तब वृषभानुजी ने गर्गमुनि द्वारा बतायी गयी बात गोपों को बताते हुए कहा—‘परब्रह्म परमात्मा श्रीकृष्ण नन्द के घर अवतरित हुए हैं और गोलोक में श्रीराधा नाम की उनकी पटरानी मेरे घर कन्या के रूप में अवतीर्ण हुई है ।’
श्रीकृष्ण की भगवत्ता का परीक्षण
गोपों ने कहा—‘यदि नंद के पुत्र साक्षात् परमात्मा हैं तो हम सबको नन्दरायजी के वैभव की परीक्षा कराइए ।’ तब वृषभानुजी के नंदरायजी के वैभव की परीक्षा लेने के लिए मोतियों के करोड़ों हार स्वर्णपात्र में रखकर नंदरायजी के यहां भेजे और कहलवाया कि—
‘मैं अपनी विवाह योग्य पुत्री राधा के लिए आपके पुत्र कृष्ण को योग्य वर जानकर वर की गोद भरने के लिए ये मोतियों की राशि भेज रहा हूँ, इसे आप स्वीकार कीजिए ।’
उस दिव्य मुक्ता-राशि को देखकर नंदराय और यशोदाजी बहुत विस्मित हुए किन्तु उनके पास कन्या के लिए भेजने को इतना कुछ नहीं था । माता-पिता को चिन्तित देखकर श्रीकृष्ण ने उन मुक्ताहारों से सौ हार उठाए और एक-एक मोती अलग कर अपने घर के बाहर खेत में बिखेर दिए । उसके बाद उन्होंने नंदरायजी को खेतों में ले जाकर वहां अलौकिक रूप से उपजे मुक्ताफलों के सैंकड़ों वृक्षों को दिखाया और उनकी चिन्ता दूर की । अब तो हर्षित होकर नंदरायजी ने श्रीकृष्ण को साक्षात् परमात्मा जाना और करोड़ों दिव्य मुक्ताहार गाड़ियों में भरवाकर श्रीराधा की गोद भरने के लिए वृषभानुपुर भिजवा दिए ।
मुक्ताओं की इतनी विपुल राशि देखकर वृषभानुजी सहित सभी गोपों को बड़ा आश्चर्य हुआ और श्रीकृष्ण को परमात्मा जानकर उनका सारा संदेह दूर हो गया ।
मुक्ता-सरोवर
जहां नंदनन्दन श्रीकृष्ण ने मोती बिखेरे थे, वहां ‘मुक्ता-सरोवर’ प्रकट हो गया । उसे तीर्थों का राजा माना जाता है । जो मनुष्य वहां एक मोती का भी दान करता है, वह लाख मोतियों के दान का फल प्राप्त करता है ।