कलिसंतरणोपनिषद् के अनुसार द्वापर के अंत में नारद जी ब्रह्मा जी के पास जाकर बोले—‘भगवन् ! मैं पृथ्वीलोक में किस प्रकार कलि के दोषों से बच सकता हूँ ।’
ब्रह्मा जी ने कहा—‘भगवान आदिनारायण के नामों का उच्चारण करने से मनुष्य कलि के दोषों से बच सकता है ।’
नारद जी ने पूछा—‘वह कौन-सा नाम है ?’
ब्रह्मा जी ने कहा—
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।। (कलिसंतरणोपनिषद्)
यह सोलह नाम-बत्तीस अक्षर का महामन्त्र है । इसे ‘तारकब्रह्म’ भी कहते हैं; क्योंकि यह मन्त्र परब्रह्म का वह रूप है जिसके जपने या उच्चारण करने मात्र से ही मनुष्य संसार-सागर से पार हो जाता है ।
श्रीराधा-भाव में विह्वल रहने वाले श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने इस महामन्त्र को अपनाया और संसार में इसका सभी जगह प्रचार इस प्रकार किया—
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।
‘हरे राम हरे कृष्ण’ मंत्र का अर्थ
हरे, कृष्ण और राम—ये तीन शब्द इस महामंत्र के तीन दिव्य बीज-मंत्र हैं । ‘राम’ और ‘कृष्ण’ स्वयं भगवान के नाम है और ‘हरे’ शब्द भगवान की आनंदमयी शक्ति के लिए है, जो जीव को भगवान से मिलाने में सहायक होती है ।
‘हरे’ शब्द का अर्थ
हरति श्रीकृष्णमन: कृष्णाह्लादस्वरूपिणी ।
अतो हरेत्यनेनैव राधिका परिकीर्तिता ।।
अर्थात्—जो श्रीकृष्ण के मन का हरण करती हैं, वे हरा हैं अर्थात् वे ‘श्रीकृष्णमनो-हरा’ हैं । अत: श्रीकृष्ण की आह्लादिनी शक्ति श्रीराधा ही ‘हरे’ नाम से जानी जाती हैं ।
‘कृष्ण’ शब्द का अर्थ
आनन्दैकसुखस्वामी श्याम: कमललोचन: ।
गोकुलानन्दनो नन्द: कृष्ण इत्यभिधीयते ।।
अर्थात्—जो आनन्द एवं सुख के एकमात्र स्वामी हैं, स्वयं आनन्दरूप हैं और गोकुल को आनन्द देने वाले हैं, वे कमललोचन श्यामसुंदर ही ‘कृष्ण’ नाम से जाने जाते हैं ।
‘राम’ शब्द के दो अर्थ हैं
पहला अर्थ है—
‘रा’कार: श्रीमती राधा ‘म’कारो मधुसूदन: ।
द्वयोर्विग्रहसंयोगाद् ‘राम’ नाम भवेत् किल ।।
अर्थात्—‘रा’कार श्रीमती राधा का और ‘म’कार श्रीमधुसूदन का वाचक है । इन दोनों स्वरूपों के संयोग से ‘राम’ नाम बनता है ।
दूसरा अर्थ है—
रमते सर्वभूतेषु स्थावरेषु चरेषु च ।
अन्तरात्मस्वरूपेण यच्च रामेति कथ्यते ।।
अर्थात्—जो अंतरात्मा के रूप में सभी प्राणियों में रम रहे हैं, वे ही ‘राम’ कहलाते हैं ।
इस प्रकार ‘हरे कृष्ण हरे राम’ मंत्र का जप करने से श्रीराधामाधव नाम का जप हो जाता है । इस षोडश नाम मंत्र में ‘हरे’, ‘राम’, ‘कृष्ण’ शब्द आठ-आठ बार आए हैं । स्पष्ट है कि राधाकृष्ण में कोई किसी से कम नहीं है।
श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के अनुयायी इस नाममन्त्र में श्रीराधाकृष्ण की युगल नाममाधुरी का रसपान करते हैं । वे ‘राम’ को कृष्णनाम और ‘हरे’ नाम को श्रीराधानाम के रूप में मानते हैं ।
कोई भी साधक अपनी श्रद्धानुसार जिस भी अर्थ को चाहे, मान कर इस षोडश नाम माला का जप कर सकता है । इससे हर प्रकार से कल्याण होता है । पद्मपुराण में वर्णन आता है कि जो वैष्णव नित्य बत्तीस अक्षरों तथा सोलह नामों वाले महामन्त्र का जप तथा कीर्तन करते हैं, उन्हें श्रीराधाकृष्ण के दिव्यधाम गोलोक की प्राप्ति होती है |
यह महामन्त्र समस्त शक्तियों से सम्पन्न है, आधि-व्याधि का नाशक और कलियुग के पापों का नाश करने वाला हैं । इससे श्रेष्ठ उपाय किसी वेद में भी नहीं मिलता है ।