laddu gopal bhagwan - ashtdhaatu and peetal
श्रीलड्डूगोपाल

चंदन पहरि नाव हरि बैठे संग वृषभानु दुलारी हो।
यमुनापुलिन शोभित सुन्दर तहां खेलत लालबिहारी हो।।
त्रिविध पवन बहुत सुखदायक शीतल मंद सुगंधा हो।
कमल प्रकाश कुसुम बहु फूले जहां राजत नंदनंदा हो।।
अक्षयतृतीया अक्षयलीला संग राधिका प्यारी हो।
करत विहार सब सखीनसो नंददास बलहारी हो।।

वृन्दावन के मन्दिरों में चंदन-यात्रा उत्सव

भगवान के शरीर पर चन्दन एवं अन्य लेप लगाना भी भक्ति का ही एक अंग है। वृंदावन के प्रमुख मंदिरों में अक्षय तृतीया के दिन भगवान के विग्रहों को (दोनों नेत्र छोड़कर) चन्दन के लेप से पूरा ढक दिया जाता है और श्रीअंगों को चंदनचित्रों से सजाया जाता है।

अक्षय तृतीया को बांकेबिहारीजी के चरणदर्शन

वृन्दावन में अक्षय तृतीया को सायंकाल में श्रीबिहारीजी के चरणदर्शन के साथ ही सर्वांगदर्शन भी होते हैं। इस दिन बिहारीजी के श्रीअंग में मलयगिरी चंदन को केसर के साथ घिसकर लगाया जाता है। श्रीराधाजी को पीत वस्त्र धारण कराये जाते हैं। अकुलाहट भरी ग्रीष्म ऋतु में ठाकुरजी को शीतलता प्रदान करने के लिए उनके श्रीचरणों में केसरयुक्त चंदन का गोला रखा जाता है और सत्‍तू के लड्डू, शरबत, ठण्डाई आदि का विशेष भोग लगाया जाता है।

श्रीकृष्णभावनामृत संघ (इस्कॉन) में चंदन-यात्रा महोत्सव

अन्तर्राष्ट्रीय श्रीकृष्णभावनामृत संघ (इस्कॉन) के सभी मंदिरों में यह उत्सव मनाया जाता है जो प्रायः 21 दिनों तक चलता है। चन्दन का लेप वस्तुतः मई/जून के महीने में भगवान् को गर्मी से शीतलता प्रदान करने लिए भक्त का भगवान के प्रति प्रेम भाव है।


गौर निताई, इस्कॉन मन्दिर, वृन्दावन


श्रीकृष्ण बलराम, इस्कॉन मन्दिर,  वृन्दावन


श्रीराधा श्यामसुन्दर, इस्कॉन मन्दिर,  वृन्दावन

लगातार 21 दिन भगवान के विग्रहों को भक्त अपने हाथों से घिसे हुए चंदन का लेप लगाते हैं और मन्दिरों में चंदन दान करते हैं।


श्रीराधा दामोदर मन्दिर, वृन्दावन चंदन-यात्रा दर्शन


श्रीराधा गोकुलनन्दनजी मन्दिर, वृन्दावन चंदन-यात्रा दर्शन

भगवान श्रीजगन्नाथजी का चन्दन-यात्रा उत्सव

भगवान् जगन्नाथजी ने स्वयं राजा इन्द्रद्युम्न को आदेश दिया था कि वैशाख-ज्येष्ठ के महीने में चंदन-यात्रा का उत्सव मनाया जाना चाहिए। एक साधारण मानव की तरह भगवान भी वैशाख और ज्येष्ठ मास की भीषण गर्मी से परेशान होकर जलक्रीड़ा और नौका विहार करना चाहते हैं। चंदन-यात्रा जगन्नाथजी की इसी मानवीय लीला का एक जीवन्त रूप है।

वैशाख शुक्ल तृतीया (अक्षय तृतीया) से शुरु होकर 21 दिनों तक श्रीजगन्नाथजी का चन्दनचर्चित वेश होता है। श्रीजगन्नाथजी के प्रतिनिधिस्वरूप श्रीराम-कृष्ण, मदनमोहन, श्रीदेवी और भूदेवी, बलराम और पंचपांडव जलक्रीडा के लिए नरेन्द्रसरोवर (चन्दनसरोवर) की यात्रा करते हैं। पुरी क्षेत्र के ही पंचमहादेव (यमेश्वर, लोकनाथ, मार्कण्डेश्वर, नीलकण्ठ और कपालमोचन) अपने-अपने विमानों से जलक्रीडा में सम्मिलित होते हैं। देवी-देवताओं को चाप (नाव) में बैठाकर सरोवर के एक छोर से दूसरे छोर तक घुमाया जाता है। बाद में सभी देव-देवियों को सरोवर के बीच स्थित चन्दनघर में लाकर वहां सुगन्धित जल में कुछ समय तक रखा जाता है। भगवान के विग्रहों को लगातार 21 दिनों तक नरेन्द्रसरोवर में ले जाकर नौका विहार करवाया जाता है। इसे बाह्यचन्दन-यात्रा कहते हैं। बाकी के 21 दिन मन्दिर में ही अन्तश्चन्दन-यात्रा के रूप में मनाए जाते हैं।

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