चंदन भगवान को बहुत प्रिय है । इसे महाभागवत और सर्वश्रेष्ठ वैष्णव माना जाता है; क्योंकि वह अपने शरीर का क्षय (घिस) कर भगवान के लिए सुगन्धित व शीतलता देने वाला लेप तैयार करता है और एक दिन इसी तरह क्षय होते-होते उसका अंत हो जाता है । उसके इसी त्याग पर रीझ कर भगवान उसे अपने मस्तक व श्रीअंग में धारण करते हैं ।
भगवान श्रीकृष्ण की पूजा बिना चंदन के अधूरी
भगवान श्रीकृष्ण की पूजा तो बिना चंदन के अधूरी मानी जाती है; क्योंकि ‘सर्वांगे हरिचंदनं सुललितं कण्ठे चा मुक्तावली’—उनके श्रीअंग में चंदन और कण्ठ में मोतियों की माला सदैव सुशोभित रहते हैं । ग्रीष्म ऋतु में भगवान के सम्पूर्ण शरीर पर चंदन से सुन्दर रचना की जाती है; इस पर अष्टछाप के कवियों ने बहुत सुन्दर पद लिखे हैं—
आज बने गिरधारी दूल्हे चंदन कों तन लेप किये ।
सकल सिंगार बने मोतिन के विविध कुसुम की माल हिये ।। (सूरदासजी)
अक्षय तृतीया पर वृन्दावन में भगवान को इतना चंदन लगाया जाता है कि उनका श्रृंगार, वस्त्र, खिलौने सभी चंदन के बनाए जाते हैं । इसका भी सूरदासजी ने अपने पद में बहुत सुन्दर वर्णन किया है—
चंदन को बागो पहेरे चंदन की खोर किये चंदन के रुख तरे ठाडे पिय प्यारी ।
चंदन की पाग सिर चंदन को फेंटा कटि चंदन की चोली तन चंदन की सारी ।।
चंदन की आरसी ले निरखत दोऊ जन हँस गिर जात भरत अंक वारी ।
सूरदास मदनमोहन चंदन भवन में बैठे सारंग राग रंग रह्यो भारी ।।
भगवान को अर्पित किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के चंदन
चंदन का तिलक भगवान की पूजा का सबसे महत्वपूर्ण उपचार है । भगवान को कई प्रकार का चंदन अर्पित किया जाता है । जैसे—तुलसीकाष्ठ का चंदन, हरिचंदन, गोपीचंदन आदि । यहां इस पोस्ट में तीन प्रकार के चंदनों के बारे में बताया गया है—
तुलसीकाष्ठ का चंदन और उसकी महिमा
स्कन्दपुराण में भगवान कहते हैं ‘जो तुलसीकाष्ठ का घिसा हुआ चन्दन मुझे अर्पण करता है, उसके सौ जन्मों के समस्त पातकों को मैं भस्म कर देता हूँ ।’
मार्गशीर्षमास में तुलसीकाष्ठ का घिसा हुआ चन्दन भगवान को निवेदित करने की महिमा बताते हुए कहा गया है—जो मार्गशीर्षमास में तुलसीकाष्ठ का घिसा हुआ चन्दन मेरे अंगों में लगाता है, उसके ऊपर मैं विशेष प्रेम करता हूँ ।
हरिचंदन और उसकी महिमा
श्रीमद्भागवत के श्लोक ‘बर्हापीडं नटवरवपु’ में एक शब्द है सर्वांगे हरिचन्दनं । ये ‘हरिचन्दन’ क्या है जिसे श्रीकृष्ण अपने सम्पूर्ण शरीर पर धारण करते हैं ? हरिचन्दन इस प्रकार बनता है—
तुलसी की लकड़ी या चंदन की लकड़ी को कपूर और केसर मिलाकर जब घिसा जाता है तो जो लेप तैयार होता है उसे ‘हरिचंदन’ कहते हैं । इस तरह तैयार किया गया चंदन भगवान को बहुत संतोष देता है ।
गोपीचंदन और उसकी महिमा
गोपीचंदन किसे कहते हैं ? गोपीचंदन का सम्बन्ध भगवान श्रीकृष्ण की द्वारका लीला और गोपियों से है । इसकी कथा इस प्रकार है—
कंस को मारने के बाद भगवान श्रीकृष्ण द्वारका चले गए । एक बार श्रीकृष्ण की आज्ञा से उनका समाचार लेकर जब उद्धवजी व्रज में गए, तो गोपियां उद्धवजी से मिलने आईं; लेकिन श्रीकृष्ण को न देखकर विलाप करती हुईं बोलीं—‘हे उद्धव ! क्या हमारे श्रीकृष्ण इस गोकुल का शोक-समुद्र से उद्धार करेंगे ? आप हमें गोविन्द का दर्शन करा दें, जहां श्रीकृष्ण रहते हैं, वहीं हमें ले चलें ।’
गोपियों के ऐसे वचन सुनकर उद्धवजी ने कहा—‘गोपियो ! भगवान श्रीकृष्ण की भी यही दशा है, वे भी दिन-रात तुम्हारी ही याद करके दु:खी रहते हैं । मैं आप लोगों को बुलाने के लिए ही आया हूँ ।’
यह सुनकर गोपियां बहुत प्रसन्न हुईं और उद्धवजी के साथ द्वारका के लिए चल पड़ी । द्वारका के पास मय सरोवर के तट पर आकर उद्धवजी ने गोपियों से कहा—‘आप सब यहीं ठहरें, मैं भगवान श्रीकृष्ण को सूचना देता हूँ । वे स्वयं यहां पधार कर आपके मनोरथ पूर्ण करेंगे ।’
उद्धवजी द्वारा गोपियों के आगमन की सूचना पाकर भगवान श्रीकृष्ण गोपियों के पास आए । अपने प्रियतम श्रीकृष्ण को दीर्घकाल के बाद देख कर गोपियां विलाप करने लगीं—
‘हा नाथ ! हे प्राणबल्लभ ! भक्तजनों का परित्याग सब शास्त्रों में निन्दित बताया गया है । हमें छोड़ते समय तुमने उन शास्त्रों के वचनों पर विचार नहीं किया ?’
तब भगवान ने कहा—‘गोपियो ! तुमसे वियोग हमको कभी नहीं हुआ, न होगा और न ही इस समय है; क्योंकि मैं सभी समय सभी प्राणियों के हृदय में निवास करता हूँ । सब प्राणियों के भीतर मुझे स्थित जानकर सदा ही तुम लोग मेरा अंतर्यामी रूप से चिन्तन करो । इससे तुम सभी पाप-ताप से मुक्त हो जाओगी । इस सरोवर पर मेरे साथ तुम्हारा मिलन हुआ है, अत: यहां मेरे ही साथ तुम्हें नियम-पूर्वक स्नान करना चाहिए ।’
श्रीकृष्ण के दर्शन करने व मय सरोवर में स्नान करने से गोपियों का अंत:करण निर्मल हो गया और वे खुश होकर कहने लगीं—‘नाथ ! इस मय सरोवर में आप देवताओं के साथ प्रत्येक वर्ष स्नान के लिए पधारेंगे, लेकिन अगर आप हम पर प्रसन्न हैं तो हमारे नाम पर भी एक सुन्दर तालाब बनवाइए ।’
भगवान ने कहा—‘गोपियों मैं तुम्हारे मनोरथ पूर्ण करुंगा ।’
भगवान ने देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा से कमल और कमलनियों से भरे एक अत्यंत सुन्दर सरोवर का निर्माण करा कर गोपियों को दिखाया और उसका नाम ‘गोपी तालाब’ रखा ।
गोपियों ने भगवान से कहा—‘भगवन् ! हमारी एक प्रार्थना है कि इस तालाब में देवताओं के साथ आपको भी स्नान के लिए पधारना होगा ।’
तब भगवान ने कहा—‘इस तालाब में जो मनुष्य स्नान, दान, अर्घ्य, तर्पण और श्राद्ध करेगा, उसको इस लोक में कीर्ति और परलोक में मोक्ष मिलेगा ।’
इसके बाद भगवान से आज्ञा लेकर गोपियां व्रज में चली गईं । इस प्रकार द्वारका में जहां गोपियों ने निवास किया था, उस स्थान को ‘गोपी भूमि’ कहते हैं । वहां ‘गोपी तालाब’ नामक कच्चे सरोवर में पीले रंग की मिट्टी है, जो गोपियों के अंगराग (उबटन) से उत्पन्न मिट्टी है; इसलिए बहुत ही पवित्र मानी गयी है । उसे ‘गोपी चंदन’ कहते हैं ।
गोपीचंदन की महिमा
गंगा की मिट्टी से दुगुना पुण्य चित्रकूट की रज का है, उससे भी दस गुना पुण्य पंचवटी की रज का है, उससे सौगुना पुण्य गोपीचंदन की रज का है । प्रतिदिन ललाट में गोपीचंदन का तिलक लगाने का पुण्य बताते हुए भगवान श्रीकृष्ण का कथन है—
▪️ जो प्रतिदिन अपने शरीर में गोपीचंदन का तिलक करता है, वह सैंकड़ों पापो से मुक्त होकर श्रीहरि के गोलोकधाम में जाता है ।
▪️ ललाट में गोपीचंदन का तिलक करने से मनुष्य ‘नर’ से ‘नारायण’ हो जाता है । साथ ही वह मेरे धाम में स्थित होता है और मैं लक्ष्मीजी के साथ उस घर में सदैव निवास करता हूँ ।
▪️ मृत्यु के समय जिसकी भुजाओं में, ललाट में, हृदय में और मस्तक में गोपीचंदन लगा होता है, वह मुझ लक्ष्मीपति के लोक में जाता है ।
▪️ गोपीचंदन को धारण करने वाले को ग्रह, राक्षस, पिशाच, यक्ष, नाग और भूत आदि पीड़ा नहीं देते हैं । मनुष्य इससे अपने कर्मों का अक्षय फल पाता है ।
▪️ उसे प्रतिदिन महानदियों में स्नान का फल व सभी तीर्थों में स्नान, दान व व्रत का फल मिलता है ।