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चंदन, हरिचंदन और गोपीचंदन

चंदन भगवान को बहुत प्रिय है । इसे महाभागवत और सर्वश्रेष्ठ वैष्णव माना जाता है; क्योंकि वह अपने शरीर का क्षय (घिस) कर भगवान के लिए सुगन्धित व शीतलता देने वाला लेप तैयार करता है और एक दिन इसी तरह क्षय होते-होते उसका अंत हो जाता है । उसके इसी त्याग पर रीझ कर भगवान उसे अपने मस्तक व श्रीअंग में धारण करते हैं ।

तुलसीदास चंदन घिसें, तिलक देत रघुबीर

तुलसीदासजी को जब होश आया तो बिन-पानी की मछली की तरह भगवान की विरह-वेदना में तड़फड़ाने लगे । सारा दिन बीत गया, पर उन्हें पता ही नहीं चला । रात्रि में आकर हनुमानजी ने उन्हें दर्शन दिए और उनकी दशा सुधारी ।