सर्वशक्तिमान् श्रीराम और महाशक्ति सीताजी एक ही ब्रह्म के दो रूप हैं । लीला हेतु ये दोनों पति-पत्नी के रूप में पृथक् हुए हैं; इसलिए सीताजी को आदिशक्ति कहा गया है । सीताजी की स्तुति करते हुए गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं—
उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम् ।
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम् ।।
अर्थात्—श्रीरामवल्लभा सीताजी संसार की उत्पत्ति, पालन व संहार करने वाली, समस्त क्लेशों को दूर करने वाली और सभी मंगल करने वाली हैं, उन्हें मैं प्रणाम करता हूँ ।
सीताजी ही लक्ष्मी हैं, वे प्रलयावस्था में भगवान के दक्षिण वक्ष:स्थल में श्रीवत्सरूप में निवास करती हैं । इसलिए वे सभी देवताओं से वन्दित हैं । अणिमादिक सिद्धियां सदा इनकी सेवा में उपस्थित रहती हैं, कामधेनु इनकी स्तुति करती रहती है, वेद और नारदादि ऋषि इनका गुणगान करते रहते हैं, अप्सराएं इनकी टहल बजाती रहती हैं, सूर्य और चन्द्रमा दीपकरूप में वहां जलते रहते हैं । तारिकाएं इनके ऊपर छत्र लगाए रहती हैं, माया इनका चंवर डुलाती है, स्वाहा और स्वधा पंखा झलती हैं तथा भृगु आदि ऋषि इनके पूजन में रत रहते हैं । ऐसी हैं श्रीराम की शक्ति सीताजी ।
सीता-उपासना के लिए ‘सीता-गायत्री मन्त्र’ और उनके 10 नाम
मनुष्य को श्रीराम के साथ सीताजी की उपासना अवश्य करनी चाहिए । इनकी उपासना के लिए ‘सीता-गायत्री मन्त्र’ और इनके नामों का पाठ बहुत पुण्य-फल देने वाला है । ‘सीता-गायत्री’ मन्त्र इस प्रकार है—
‘ॐ जनकनन्दिन्यै विद्महे रामवल्लभायै धीमहि । तन्न: सीता प्रचोदयात् ।।
‘सीता-गायत्री’ जप की महिमा
‘सीता-गायत्री’ की उपासना सभी को करनी चाहिए क्योंकि इससे आत्मबल में तुरन्त वृद्धि होती है । नित्य कम-से-कम 108 बार ‘सीता-गायत्री’ का जप अवश्य करना चाहिए ।
स्त्रियों को भी ‘सीता-गायत्री’ का जप अवश्य करना चाहिए क्योंकि यह एक तप-शक्ति है, इससे पातिव्रत्य, मधुरता, सात्विकता, शीलता, नम्रता, और निर्विकारता आदि सद्गुणों की प्राप्ति होती है ।
सीताजी के अनेक नाम हैं जिनका सम्बन्ध किसी-न-किसी कथानक से जुड़ा है । सीताजी के अत्यन्त पुण्यदायी 10 नाम इस प्रकार हैं—
- फल से निकलने के कारण—मातुलुंगी
- अग्नि में वास करने के कारण—अग्निगर्भा
- रत्नों में निवास करने से—रत्नावली
- धरती से उत्पन्न होने के कारण—धरणिजा, भूमिसुता
- राजा जनक द्वारा पालित होने से—जानकी, वैदेही
- हल के फल से निकलने के कारण—सीता
- राजा पद्माक्ष की कन्या होने के कारण—पद्मा
- मिथिला में जन्म लेने के कारण—मैथिली
- अमानवीय होने के कारण—अयोनिजा
- श्रीराम की पत्नी होने के कारण—रामवल्लभा
श्रीरामवल्लभा सीताजी जीवों के लिए सभी प्रकार के श्रेय को देने वाली हैं । उन की कृपा से जीव भौतिक सुख और साधन पाकर इस संसार में सभी प्रकार की समृद्धियों का उपभोग करता है और लौकिक आनंद से आह्लादित होता है । यही सीताजी की महिमा है ।
श्रीरामशक्ति सीता, निज भक्त शोकहारी ।
हे सृष्टिमूल माता, मिथिलेश की दुलारी ।।
भवरोग कष्ट त्राता, श्रीराम-प्राणप्यारी ।
हे सृष्टिमूल माता, मिथिलेश की दुलारी ।। (श्रीगोपालजी भारतीय ‘कवि’)