चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन, पुनर्वसु नक्षत्र व कर्क लग्न में जब सूर्य अन्य पांच ग्रहों की शुभ दृष्टि के साथ मेष राशि पर विराजमान थे, तभी भगवान श्रीहरि का ‘रामावतार’ हुआ; इसलिए यह तिथि ‘श्रीरामनवमी’ कहलाती है ।
श्रीरामनवमी व्रत व पूजन की महिमा
मध्याह्न में पुनर्वसु नक्षत्र से युक्त नवमी तिथि में श्रीराम जन्म-महोत्सव मनाने, उपवास और रात्रि जागरण कर भगवान की पूजा करने तथा अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार दान-पुण्य करने से मनुष्य की सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं ।
रामनवमी का व्रत करने से मनुष्य की जन्म-जन्मान्तर की पाप-राशि भस्मीभूत हो जाती है और मनुष्य भगवान सीताराम को ही प्राप्त कर लेता है । रामनवमी का व्रत भोग और मोक्ष दोनों को देने वाला है लेकिन यह पूर्ण श्रद्धा-भक्ति, पवित्र मन व निष्ठा के साथ करना चाहिए व फलाहार करना चाहिए ।
श्रीरामनवमी पूजन विधि
▪️ प्रात:काल स्नान आदि कर शुद्ध वस्त्र धारण करें । फिर इस प्रकार संकल्प करके भगवान का पूजन करना चाहिए कि ‘सब पापों के क्षय की कामना से व श्रीराम की प्रसन्नता के लिए मैं श्रीरामनवमी व्रत करुंगा ।’ (‘सकल पापक्षय कामोऽहं श्रीरामप्रीतये श्रीरामनवमी व्रतं करिष्ये ।’)
▪️ इस दिन व्रत रख कर भगवान श्रीराम की मूर्ति को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद व शक्कर) में तुलसी के पत्ते डालकर स्नान कराना चाहिए ।
▪️ फिर शुद्ध जल से स्नान करा कर उन्हें सुगन्धित तेल (इत्र) लगाएं और सुन्दर वस्त्र और आभूषण पहनाएं । ▪️इसके बाद भगवान को चन्दन, रोली लगा कर अक्षत चढ़ाएं ।
▪️ सुन्दर पुष्प और माला पहनाएं।
विशेष पूजा
माला अर्पण करने के बाद श्रीराम की विभिन्न अंगों की पूजा इस प्रकार करनी चाहिए, मन्त्र बोलते समय जिस अंग का नाम आए, उस अंग पर पुष्प चढ़ाते जाएं—
▪️ॐ श्रीरामचन्द्राय नम: पादौ पूजयामि । (चरणों पर)
▪️ॐ श्रीराजीवलोचनाय नम: गुल्फौ पूजयामि । (टखनों पर)
▪️ॐ श्रीरावणान्तकाय नम: जानुनी पूजयामि । (घुटनों पर)
▪️ॐ श्रीवाचस्पतये नम: उरु पूजयामि । (जांघों पर)
▪️ॐ श्रीविश्वरूपाय नम: जंघे पूजयामि । (पिंडलियों पर)
▪️ॐ श्रीलक्ष्मणाग्रजाय नम: कटिं पूजयामि । (कमर पर)
▪️ॐ श्रीविश्वामित्रप्रियाय नम: नाभिं पूजयामि । (नाभि पर)
▪️ॐ श्रीपरमात्मने नम: हृदयं पूजयामि । (हृदय पर)
▪️ॐ श्रीकण्ठाय नम: कण्ठं पूजयामि । (कण्ठ पर)
▪️ॐ श्रीसर्वास्त्रधारिणे नम: बाहु पूजयामि । (भुजाओं पर)
▪️ॐ श्रीरघुद्वहाय नम: मुखं पूजयामि । (मुख पर)
▪️ॐ श्रीपद्मनाभाय नम: जिह्वां पूजयामि । (जिह्वा पर)
▪️ॐ श्रीदामोदराय नम: दन्तान् पूजयामि । (दांतों पर)
▪️ॐ श्रीसीतापतये नम: ललाटं पूजयामि । (ललाट पर)
▪️ॐ श्रीज्ञानगम्याय नम: शिर: पूजयामि । (सिर पर)
▪️ॐ श्रीसर्वात्मने नम: सर्वांगे पूजयामि । (सारे अंगों पर)
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▪️ इसके बाद धूप-दीप दिखा कर नैवेद्य और ऋतुफल अर्पित करें ।
▪️ द्रव्य दक्षिणा चढ़ाएं और कर्पूर सहित आरती करें ।
▪️ सके बाद हाथ में पुष्प लेकर श्रीरामचरितमानस की भगवान श्रीराम की जन्म स्तुति गाएं—
प्रभु श्रीराम की जन्म स्तुति
भए प्रकट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी ।
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी ।।
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी ।
भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिंधु खरारी ।।
कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता ।
माया गुन ग्यानातीत अमाना बेद पुरान भनंता ।।
करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता ।
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रगट श्रीकंता ।।
ब्रह्माण्ड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै ।
मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै ।।
उपजा जब ग्याना प्रभु मुसुकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै ।
कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ।।
माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा ।
कीजै सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा ।।
सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा ।
यह चरित जे गावहिं हरिपद पावहिं ते न परहिं भवकूपा ।।
▪️ हाथ के पुष्पों को भगवान के चरणों में चढ़ा दें ।
▪️ प्रदक्षिणा कर साष्टांग दण्डवत् प्रणाम करें । प्रणाम मन्त्र है—
नमो देवाधिदेवाय रघुनाथाय शांर्गिणे ।
चिन्मयानन्तरूपाय सीताया: पतये नम: ।।
(देवों के देव, शांर्ग धनुषधारी, चिन्मय, अनन्त रूप धारण करने वाले, सीतापति भगवान श्रीरघुनाथजी को बारम्बार प्रणाम है ।)
▪️ पूजन में जो कुछ भी न्यूनता या अधिकता हो गयी हो उसके लिए भगवान से क्षमा-प्रार्थना करे ।
▪️ हो सके तो ब्राह्मण को भोजन कराकर दक्षिणा दें ।
▪️ पंचामृत व प्रसाद का वितरण करें ।
मन्दिरों में भी भगवान श्रीराम को पंचामृत स्नान, पूजन तथा पंजीरी और फल का भोग लगा कर मध्याह्नकाल में (बारह बजे) विशेष आरती और पुष्पांजलि आदि की जाती है । इसके बाद भक्तों को पंचामृत और पंजीरी का प्रसाद वितरित किया जाता है ।
श्रीराम की प्रसन्नता के लिए करें ये उपाय
▪️ विशेष रूप से इस दिन प्रत्येक मनुष्य को अपनी रुचि और सामर्थ्य के अनुसार श्रीराम के दो अक्षर ‘राम’, पंक्षाक्षर ‘रामाय नम:’ या चार अक्षर ‘सीताराम’ मन्त्र का जप अवश्य करना चाहिए ।
▪️ वाल्मीकि, अध्यात्म या गोस्वामीजीकृत श्रीरामचरितमानस का पाठ कर सकते हैं । अखण्ड दीप जला कर जप या पाठ करना बहुत पुण्य देने वाला है ।
▪️ साथ ही इस दिन संकल्प करें कि मैं आज से प्रतिदिन श्रीरामचरितमानस की कुछ चौपाइयों का पाठ अवश्य करुंगा और उनके आदर्श गुणों का अपने जीवन में अनुकरण करुंगा । ‘श्रीराम नाम’ का अभ्यास कुछ इस तरह करुंगा कि—
रग रग बोले रामजी रोम रोम रकार ।
सहजे ही धुनि होत है सोई सुमिरन सार ।।
▪️ इस दिन भगवान श्रीराम की प्रतिमा के दान का बहुत अधिक माहात्म्य है । प्रतिमा अपनी श्रद्धा व सामर्थ्यानुसार अलग-अलग धातु की हो सकती है ।
श्रीराम सर्वात्मा व विश्वमूर्ति हैं । उनका जीवन-मंत्र था—‘बहुतों के साथ चलने में ही सच्चा सुख है, अल्प में नहीं । अपने को शुद्ध करो, ज्ञान का विस्तार करो, सद्भाव व समभाव से जीवन को राममय बनाओ, स्वयं आनन्दित रहो और दूसरों को भी आनन्दित करते रहो—यही सच्चा रामत्व है ।’