भक्तों की मुक्ति किस प्रकार की होती है ?

वैष्णव मुक्ति इसलिए स्वीकार नहीं करते; क्योंकि उन्हें भगवान की सेवा में आनंद, रस आता है । वैष्णवों को जो मुक्ति मिलती है, उसे ‘भागवती मुक्ति’ कहते हैं, जिसमें भगवान के धाम में वे अति दिव्य, अप्राकृत रूप धारण कर नित्य भगवान की सेवा करते हैं, उनकी लीलाओं में सम्मिलित होते हैं । स्वयं मुक्ति भी अपनी मुक्ति (मोक्ष) के लिए उस ब्रज की रज को जहां गोपीजन निवास करते थे, अपने मस्तक पर धारण करने के लिए लालायित रहती है ।

राम जी की चरण-पादुकाएं

वन में राम जी के तपस्वी जीवन की तुलना में भरत जी का तपस्वी जीवन अधिक श्रेष्ठ है; क्योंकि वन में रह कर तप करना बहुत कठिन नहीं है । राजमहल में रह कर तप करने वाला सच्चा ब्रह्मनिष्ठ साधु है । सब प्रकार की अनुकूलता हो, विषयभोग के साधन हों फिर मन विषयों में न लगे; यही सच्ची साधुता है, सच्चा वैराग्य है । भिखारी को खाने को न मिले और फिर वह उपवास करे तो उसका कोई विशेष अर्थ नहीं है । सब कुछ होने पर भी मन किसी विषय में न जाए, यही सच्चा वैराग्य है ।

भूमि दोष का मनुष्य के विचारों पर प्रभाव

श्रीराम ने लक्ष्मण जी से कहा—‘यह वही भूमि है, जहां सुन्द और उपसुन्द आपस में युद्ध करके मरे थे; इसलिए इस भूमि में वैर के संस्कार है । भूमि दोष का असर मनुष्य के मन पर होता है ।’ अशुद्ध भूमि के कारण भी मनुष्य का मन भक्ति में नहीं लगता । जो भूमि पवित्र होती है, वहां भक्ति फलती-फूलती है ।

रावण ने श्रीराम से ही नहीं कौसल्या से भी निभाया वैर

संसार में सभी भयों में मृत्य का भय सबसे बड़ा माना गया है । सांसारिक विषयी पुरुष के लिए शरीर ही सब कुछ होता है; इसीलिए मृत्यु निकट जान कर मनुष्य अपना विवेक और धैर्य खो देता है । न तो उसे अच्छे-बुरे का ज्ञान रहता है, न ही उसे भूख-प्यास लगती है; साथ ही रात-दिन का चैन भी समाप्त हो जाता है ।

शिवलिंग के पूजन से श्रीकृष्ण और अर्जुन को अजेयता की प्राप्ति

‘जयद्रथ को यदि सूर्यास्त के पहले न मार सकूं तो मैं चिता-प्रवेश’ करुंगा’—ऐसी प्रतिज्ञा जब अर्जुन ने की, तब सारी रात भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को शिवलिंग-पूजन में लगा कर उसे पाशुपतास्त्र पुन: प्राप्त कराया । ‘मेरे रथ के आगे यह त्रिशूलधर कौन हैं ?’ युद्धभूमि में जब अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से इस प्रकार पूछा, तब श्रीकृष्ण ने कहा—‘जिसकी तू आराधना करता है, वही तेरी रक्षा के लिए यहां उपस्थित हैं और उन्हीं की कृपा से सब जगह तेरी विजय होती है ।’

कैवल्य मुक्ति किसे कहते हैं ?

एक चीनी की गुड़िया थी । एक बार उसके मन में समुद्र को नापने की इच्छा हुई; इसलिए उसने अपने भाई-बहिनों को इकट्ठा किया और कहा कि मैं समुद्र की गहराई नापने जा रही हूँ । जब मैं नाप लेकर बाहर आऊंगी तब आप लोगों को समझाऊंगी कि समुद्र कितना गहरा है ? ऐसा कह कर वह समुद्र में कूद गई । लेकिन इसके बाद वह कभी बाहर न आ सकी और समुद्र में ही मिल गई । इसी तरह प्राणी बिन्दु है और परमात्मा सिंधु है । जब बिंदु सिंधु में समा जाए तो वह परमात्मा से एकरूप हो जाता है, उसी को कैवल्य मुक्ति कहते है ।

लक्ष्मण-गीता : लक्ष्मण और निषादराज गुह संवाद

कैकेयी ने श्रीराम को वनवास दिया, उस समय माता कौसल्या को अत्यंत दु:ख हुआ । लेकिन श्रीराम ने माता को समझाते हुए कहा—‘मां ! यह मेरे कर्मों का फल है । मैंने पूर्वजन्म में माता कैकेयी को दु:ख दिया था, उसके फलस्वरूप मुझे वनवास मिला है । मैंने परशुराम अवतार में जो किया, उसका फल रामावतार में मुझे भोगना ही है ।

भगवान श्रीराम का सौ नामों का (शतनाम) स्तोत्र

त्रिलोकी में यदि श्रीराम का कोई सबसे बड़ा भक्त या उपासक है तो वे हैं भगवान शिव जो ‘राम-नाम’ महामन्त्र का निरन्तर जप करते रहते हैं । भगवान शिव ने प्रभु श्रीराम की सौ नामों का द्वारा स्तुति की है, जिसे ‘श्रीराम शतनाम स्तोत्र’ कहते हैं । यह स्तोत्र आनन्द रामायण, पूर्वकाण्ड (६।३२-५१) में दिया गया है ।

निर्जला एकादशी : विशेष पूजा विधि एवं कथा

ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी ‘निर्जला एकादशी’ के नाम से जानी जाती है । अन्य महीनों की एकादशी को फलाहार किया जाता है; परंतु जैसा कि इस एकादशी के नाम से स्पष्ट है, इसमें फल तो क्या जल भी ग्रहण नहीं किया जाता है । इसलिए गर्मी के मौसम में यह एकादशी बड़े तप व कष्ट से की जाती है । यही कारण है कि इसका सभी एकादशियों से अधिक महत्व है ।

अष्ट सिद्धि के दाता हनुमानजी

हनुमानजी जन्मजात महान सिद्ध योगी हैं । उनके पिता केसरी ने हनुमानजी को प्राणायाम या प्राण-विद्या की साधना गर्भ में ही करा दी थी जिस तरह अभिमन्यु को गर्भ में ही चक्रव्यूह-भेदन का ज्ञान हो गया था । हनुमानजी का चरित्र उस योगी का है जिसने प्राणशक्ति को वशीभूत करके मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली है ।