किसी भी धार्मिक अनुष्ठान को सम्पन्न करते समय विभिन्न क्रियाएं की जाती हैं, जैसे—स्वस्तिवाचन या मंगलाचरण, आचमन, पवित्री धारण, शिखाबंधन, प्राणायाम, न्यास, पृथ्वी-पूजन, रक्षादीप प्रज्ज्वलित करना, सर्वदेव नमस्कार, संकल्प, चंदन धारण, रक्षा सूत्र, कलश-पूजन आदि । जानतें हैं इन सबका क्या है आध्यात्मिक अर्थ और महत्व ।
मंगलाचरण
किसी भी धार्मिक अनुष्ठान को सम्पन्न करने वाले यजमान के आसन पर बैठते समय उसके कल्याण, सुरक्षा व उत्साह अभिवर्धन के लिए उस पर पुष्प वर्षा कर आसन दिया जाता है, उसके सौभाग्य को सराह कर यह भावना की जाती है कि इस पुण्यकर्म में भाग लेने पर उन पर देवता की कृपा बरस रही है ।
आचमन
ॐ केशवाय नम: । ॐ नारायणाय नम: । ॐ माधवाय नम: ।। कह कर वाणी, मन और अंत:करण की शुद्धि के लिए तीन बार आचमन किया जाता है । फिर ‘ॐ हृषीकेशाय नम:’ कह कर हाथ धो लिए जाते हैं । इस क्रिया का भाव है—मंत्रपूरित जल से तीनों को भाव स्नान कराना ।
पवित्री धारण
देवता पवित्रता प्रिय हैं । देवताओं की प्रसन्नता के लिए किए जाने वाले कार्य में मनुष्य को स्वयं देवत्व धारण करना होता है; इसलिए किसी भी धार्मिक अनुष्ठान को संपन्न करते समय मनुष्य को अपने शरीर और मन को पवित्र करने के लिए हाथ की अंगुली में कुशा की पवित्री धारण कराई जाती है ।
शिखाबंधन
शिखाबंधन अर्थात् ताला लगाना या द्वार बंद करना । ताला लगाने या द्वार बंद करने से जैसे घर की वस्तुएं सुरक्षित रहती हैं, बाहर नहीं जाती हैं, वैसे ही शिखाबंधन से मस्तिष्क की उर्ध्वगामी शक्ति सूर्य के आकर्षण से मुक्त रहती है, वह शिखा से टकरा कर पुन: वापस आ जाती है । साथ ही शिखा कृष्ण वर्ण की होने से सूर्य के अमृततत्त्व और बुद्धितत्त्व का भी आकर्षण कर लेती है ।
शरीर शुद्धि के लिए प्राणायाम
इसके बाद तीन बार प्राणायाम किया जाता है । प्राणायाम से शरीर के सभी ‘वायुचक्र’ सक्रिय हो जाते हैं, जिससे शरीर के कोने-कोने में ‘वायुसंचार’ हो जाता है। प्राणायाम शारीरिक स्वास्थ्य की वृद्धि, पाप-वासनाओं की निवृत्ति और मन की चंचलता को दूर करने का अद्भुत उपाय है । जिसका प्राण वश में है उसके मन और वीर्य भी वश में हो जाते हैं ।
प्राणायाम में सांस खींचने के साथ यह भावना करनी चाहिए कि संसार में व्याप्त प्राणशक्ति और सभी श्रेष्ठ तत्त्वों को मैं सांस द्वारा अपने अंदर खींच रहा हूँ । सांस रोकते समय यह भावना करें कि वह दिव्य शक्ति मेरे रोम-रोम में प्रवेश कर उसमें रम रही है और सांस छोड़ते समय यह भावना रहे कि मेरे अंदर जितने भी दुर्गुण थे, वह सब सांस के साथ बाहर चले गए ।
न्यास
न्यास करने का उद्देश्य है—
—शरीर के महत्वपूर्ण अंगों में पवित्रता की भावना भरना ।
—उनमें देवता की चेतना को जागृत करना ।
—इन्द्रियों को सशक्त और संयमी बनाए रखना ।
पृथ्वी पूजन
पृथ्वी हमें मां की तरह अन्न, जल, वस्त्र आदि अनेक सुविधाएं प्रदान करती है । अत: उसके ऋण से उऋण होने व उनकी सहनशीलता, उदारता व विशालता के संस्कार प्राप्त करने के लिए पृथ्वी पूजन किया जाता है ।
रक्षादीप प्रज्ज्वलित करना
किसी भी धार्मिक अनुष्ठान को सम्पन्न करते समय पहले दीप प्रज्जवलित किया जाता है और वह तब तक प्रज्ज्वलित रहना चाहिए जब तक पूजा-कर्म संपन्न न हो जाए । भगवान तेज रूप हैं । दीप जला कर उससे यही प्रार्थना की जाती है कि—
भो दीप देवरूपस्त्वं कर्मसाक्षी ह्यविघ्नकृत् ।
यावत् कर्मसमाप्ति: स्यात् त्वं सुस्थिरो भव ।।
हे दीप ! तुम ही देवता के रूप हो, पूजा-कर्म के साक्षी हो तथा सभी विघ्नों को दूर करने वाले हो; इसलिए जब तक मेरा पूजा-कर्म न हो जाए, तब तक तुम स्थिर भाव से संनिकट रहो । साथ ही मेरा जीवन दीपक के समान प्रकाशवान रहे ।
सर्वदेव नमस्कार
मानव मन का झुकाव अक्सर नकारात्मक आसुरी प्रवृत्तियों की ओर होता रहता है । हमारा मन सकारात्मक प्रवृत्तियों से ओत-प्रोत रहे; इसलिए छह देवताओं को उनकी पत्नी (शक्ति) सहित और विशेष सामाजिक दायित्वों को वहन करने वाली देवीय शक्तियों को नमस्कार किया जाता है । जैसे—
ॐ सिद्धि बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नम: । बुद्धि, विवेक के देव श्रीगणेश को पत्नियों सिद्धि-बुद्धि को नमस्कार ।
ॐ लक्ष्मीनारायणाभ्याम नम: । समृद्धि और वैभव के देव लक्ष्मीनारायण को नमस्कार ।
ॐ उमामहेश्वराभ्यां नम: । व्यवस्था और नियन्त्रण के देव उमा-महेश्वर को नमस्कार ।
ॐ वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नम: । सरस्वती और ब्रह्मा को नमस्कार ।
ॐ शचीपुरन्दराभ्यां नम: । कला और उल्लास के लिए शची और इन्द्र को नमस्कार ।
ॐ मातृ पितृ चरणकमलेभ्यो नम: । जन्म देने और पालन करने वाले देव माता-पिता को नमन ।
ॐ इष्टदेवताभ्यो नम: । जीवन को सरल व सही मार्ग पर ले जाने वाले इष्ट देव को नमन ।
ॐ कुलदेवताभ्यो नम: । अपने वंश में उत्पन्न महामानव को नमस्कार ।
ॐ ग्रामदेवताभ्यो नम: । शासन का संचालन करने वाले ग्राम देवता को ननस्कार ।
ॐ स्थान देवताभ्यां नम: । पंच व समाज सेवकों को नमस्कार ।
ॐ वास्तु-देवताभ्यो नम: । वास्तुदेवता को नमस्कार ।
ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नम: । लोकमंगल में लगे परोपकारी सभी देवताओं को नमस्कार ।
ॐ ॐ सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नम: । सद्ज्ञान देने वाले साधना रत सभी ब्राह्मणों को नमन ।
संकल्प
हर महत्वपूर्ण धार्मिक कार्य के पहले संकल्प करने का विधान है । इसका कारण है अच्छे कार्य की घोषणा मंत्रों द्वारा करने से साधक को देवताओं का सहयोग व मार्गदर्शन मिलता है । संकल्प में गोत्र का भी उल्लेख किया जाता है । गोत्र ऋषि परम्परा के होते हैं । इससे यह याद दिलाया जाता है कि हम अमुक ऋषि परम्परा के व्यक्ति हैं, उन्हीं के अनुरुप हमें कार्य करना चाहिए ।
चंदन या रोली धारण
ॐ चंदनस्य महत्पुण्यं पवित्रं पापनाशनम् ।
आपदा हरते नित्यं लक्ष्मीस्तिष्ठति सर्वदा ।।
चंदन बहुत ही पुण्यवर्धक, पवित्र, पापों का नाश करने वाला, आपदा हरने वाला और लक्ष्मी की प्राप्ति कराने वाला है । इस मंत्र के उच्चारण के साथ यजमान के माथे पर चंदन या रोली लगाने का भाव यह है कि जिस प्रकार चंदन/रोली का टीका ईश्वर के मस्तक पर लग कर उन्हें सुगन्धि व शीतलता प्रदान करता है और चदन/रोली को भगवान के मस्तक का सांनिध्य प्राप्त होता है; उसी तरह यह चंदन/रोली का टीका हमें सद् विचारों की सुगंध दे, जिससे हमारे मन-मस्तिष्क दुर्भावनाओं से अलग रहें और हमारे जीवन में भी संतोष रूपी शीतलता आए । साथ ही हमें भी भगवान का सांनिध्य प्राप्त हो सके ।
रक्षासूत्र
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल: ।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ।।
इस मंत्र के द्वारा आचार्य यजमान को रक्षासूत्र बांधता है । यह वरण सूत्र है । जिस हाथ में कलावा बंधवाएं, उसकी मुट्ठी बंधी हो और दूसरा हाथ सिर पर हो । पुरुष को ब्राह्मण से रक्षासूत्र दाहिने हाथ में बंधवाना चाहिए जबकि स्त्रियों को बांये हाथ में । इसको बंधवाने का भाव यह है कि इस धार्मिक कार्य को पूरा करने का उत्तरदायित्व मैं स्वीकार करता हूँ । एक और भाव के अनुसार हमने इस रक्षासूत्र को बांधकर अपनी व परिवार की रक्षा का भार प्रभु आपको सौंप दिया है, अब आप जैसा चाहें करे । इसके बांधने से पूरे वर्ष भर परिवार में पुत्र-पौत्रादि सब सुखी रहते हैं ।
कलश पूजन
कलश-पूजन का अर्थ है–ब्रह्माण्ड में व्याप्त देवत्व का कलश में आवाहन करके पूजन से उसे क्रियाशील करना जिससे वह दैवीय ऊर्जा आराधक को समस्त सुख, शांति, समृद्धि, व मंगलकामना प्रदान करे; इसलिए इसे ‘मंगल-कलश’ भी कहते हैं । कलश विश्व ब्रह्माण्ड का, विराट् ब्रह्म का प्रतीक है । सभी देवता कलश रूपी ब्रह्माण्ड में एक साथ समाये हुए हैं ।