Durga devi maa on lion killing a rakshas jai devi ma

कलिकाल में मां दुर्गा तत्काल फल देने वाली होने से अधिकांश हिन्दूओं के घरों में पूजी जाती हैं । ‘दुर्गा सप्तशती’ मां दुर्गा की आराधना लिए सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ है; किन्तु दुर्गा सप्तशती का पाठ संस्कृत में होने से अधिकांश लोगों के लिए इसे पढ़ना और समझना कठिन होता है । ‘दुर्गा सप्तशती’ का जिह्वा पर होना तो आशीर्वादमय है ही, उसका हृदय में उतरना अधिक कल्याणकारी है ।

यहां ‘दुर्गा सप्तशती’ का अर्गला स्तोत्र सरल भाषा में काव्य रूप में (पद्यानुवाद) दिया जा रहा है; जिससे देवी के भक्तजन नवरात्रि में और नित्य इसका पाठ कर अभीष्ट फल को प्राप्त कर सकें । अर्गला स्तोत्र के पाठ से मनुष्य का जीवन निर्द्वन्द्व (कलह, क्लेश, शत्रु विहीन) हो जाता है और वह जीवन में समस्त सुखों को प्राप्त करता है ।

देवी दुर्गा की काव्यमय अर्गला स्तुति

॥ ॐ नमश्चण्डिकायै ॥

‘रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि’

अर्गला स्तोत्र की देवता महालक्ष्मी हैं और ऋषि विष्णु हैं । अर्गला स्तोत्र में महालक्ष्मी से प्रसन्नता की याचना है । अर्गला स्तोत्र का भक्तिपूर्वक पाठ मनुष्य के समस्त शोक दूर कर उसकी समस्त मनोकामना पूरी कर देता है ।

जय जय जयन्ती मंगला, श्रीभद्रकाली कपालिनी ।
दुर्गा क्षमा स्वाहा शिवा, धात्री स्वधा जग पालिनी ।। १ ।।

जय जयति चामुण्डे भवानी, प्राण पीड़ा हारिणी ।
जय काल रजनी सर्वगति, जय जय जगत भय टारिणी ।। २ ।।

जय देवि ! मधु कैटभ विदारनि, विश्वपति वर रंजिनी ।
कर कृपा यश जय रूप दो, हे मातु ! रिपु दल गंजिनी ।। ३ ।।

जय जननि ! महिषासुर विनाशनि, सुखद जय भय भंजनी ।
कर कृपा यश जय रूप दो, हे मातु ! रिपु दल गंजिनी ।। ४ ।।

जय रक्त बीज निकंदनी, जय चण्ड-मुण्ड विभंजनी ।
कर कृपा यश जय रूप दो, हे मातु ! रिपु दल गंजिनी ।। ५ ।।

जय देवि ! शुम्भ निशुम्भ मर्दनि, धूम्राक्ष दैत्य विखण्डिनी ।
कर कृपा यश जय रूप दो, हे मातु ! रिपु दल गंजिनी ।। ६ ।।

सौभाग्य सकल प्रदायिनी, जग बन्दिनी, पद कंजिनी ।
कर कृपा यश जय रूप दो, हे मातु ! रिपु दल गंजिनी ।। ७ ।।

जय जय अचिन्त्य चरित्रिणी, जय दुष्ट दल बल खण्डिनी ।
कर कृपा यश जय रूप दो, हे मातु ! रिपु दल गंजिनी ।। ८ ।।

दु:ख दमनि देवि सु चण्डिके, जय जननि ! जन मन रंजिनी ।
कर कृपा यश जय रूप दो, हे मातु ! रिपु दल गंजिनी ।। ९ ।।

जय देवि ! व्याधि विनाशिनी, जय भक्त आनन्द कंदिनी ।
कर कृपा यश जय रूप दो, हे मातु ! रिपु दल गंजिनी ।। १० ।।

जो भक्त नित सुमिरें तुम्हें, हे चण्डिके ! बल बण्डिनी ।
कर कृपा यश जय रूप दो, हे मातु ! रिपु दल गंजिनी ।। ११ ।।

सौभाग्य दो, आरोग्य दो, दो सुख, सकल दु:ख भंजिनी ।
कर कृपा यश जय रूप दो, हे मातु ! रिपु दल गंजिनी ।। १२ ।।

दो अधिक बल, बल दायिनी, हे देवि ! शत्रु निकंदिनी ।
कर कृपा यश जय रूप दो, हे मातु ! रिपु दल गंजिनी ।। १३ ।।

हे देवि ! कल्याणी शुभे, कल्याण कर आनन्दिनी ।
कर कृपा यश जय रूप दो, हे मातु ! रिपु दल गंजिनी ।। १४ ।।

सुर-असुर वन्दित अम्बिके ! हे चण्डिके ! तडितांगिनी ।
कर कृपा यश जय रूप दो, हे मातु ! रिपु दल गंजिनी ।। १५ ।।

हे देवि ! विद्या दान दो, दो धन सुयश चन्द्राननी ।
कर कृपा यश जय रूप दो, हे मातु ! रिपु दल गंजिनी ।। १६ ।।

हे चण्डिके ! रिपु दण्डिनी, मद दलनि दैत्य प्रचण्डिनी ।
कर कृपा यश जय रूप दो, हे मातु ! रिपु दल गंजिनी ।। १७ ।।

हे चार भुजा वर धारिणी, परमेश्वरी अज बन्दिनी ।
कर कृपा यश जय रूप दो, हे मातु ! रिपु दल गंजिनी ।। १८ ।।

हे कृष्ण पूजित अम्बिके ! आनन्दिनी सुख कन्दिनी ।
कर कृपा यश जय रूप दो, हे मातु ! रिपु दल गंजिनी ।। १९ ।।

हे हिमसुता पति पूजिते, गज गामिनी मुख चन्दिनी ।
कर कृपा यश जय रूप दो, हे मातु ! रिपु दल गंजिनी ।। २० ।।

इन्द्राणि पति सद्भाव पूजित, ईश्वरी निर्द्वन्दिनी ।
कर कृपा यश जय रूप दो, हे मातु ! रिपु दल गंजिनी ।। २१ ।।

हे चण्डिके ! भुज दण्डिनी, हे दैत्य दल-बल खण्डिनी ।
कर कृपा यश जय रूप दो, हे मातु ! रिपु दल गंजिनी ।। २२ ।।

हे भक्त मन आनन्दिनी, जन विपिन कुंज मलिन्दिनी ।
कर कृपा यश जय रूप दो, हे मातु ! रिपु दल गंजिनी ।। २३ ।।

हे मन समान सु गामिनी, मुख चन्दिनी दृग खंजिनी ।
कर कृपा यश जय रूप दो, हे मातु ! रिपु दल गंजिनी ।। २४ ।।

एकाग्र मन से पाठ यह, जो भक्तजन नित-प्रति कहें ।
वे सकल द्वन्द नशाय, हो निर्द्वन्द अति जग सुख लहें ।। २५ ।।

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साभार : श्रीश्रीकात्यायनी पीठ, केशवाश्रम, वृन्दावन

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