निष्पाप, निष्कलंक, पवित्र और स्वच्छ, उज्जवल चरित्र ही शील है जिसके बारे में कबीर ने कहा है—
सीलवन्त सबतें बड़ो, सबै रतन की खान ।
तीन लोक की सम्पदा, रही सील में आन ।।
मर्यादा, शील और चरित्र की स्थापना के लिए परब्रह्म परमात्मा ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के रूप में अवतरित होकर नर-लीला की और जानकीजी के अतिरिक्त संसार की समस्त नारियों के प्रति मातृभाव रख कर जगत में एक सुन्दर आदर्श की स्थापना की । भगवान श्रीराम सीताजी से कहते हैं—
एकपत्नीव्रती रामो श्रुतिमर्यादापालक: ।
जनकजां तु परित्यज्य सर्वा: कौसल्यासमा: ।।
अर्थात्—मैं एकपत्नीव्रती हूँ, मेरे लिए तुम्हें छोड़कर अन्य सारी नारियां माता कौसल्या के समान है ।
श्रीराम के इसी गुण के कारण गोस्वामी तुलसीदासजी ने सत्य कहा है—‘बैरिउ राम बड़ाई करहीं’ अर्थात् शत्रु पक्ष की स्त्रियां भी जिनकी बड़ाई करती थीं । इसी सत्य को दर्शाती एक भक्ति कथा यहां दी जा रही है—
‘बैरिउ राम बड़ाई करहीं’ : भक्ति कथा
लंकाधिपति रावण के मरने के बाद महारानी मन्दोदरी अन्य रानियों के साथ रणभूमि में रुदन और विलाप कर रही थीं । लक्ष्मणजी के समझाने पर विभीषण का शोक दूर हुआ और उन्होंने समझा-बुझाकर महारानी मन्दोदरी व अन्य रानियों को राजमहल में भेज दिया । महारानी राजमहल में तो आ गईं, पर पति की मृत्यु से वे व्याकुल हो गईं । अपने पराक्रमी पति की मृत्यु पर उनके हृदय में एक जिज्ञासा उभरने लगी और वह धीरे-धीरे बढ़ने लगी ।
महारानी मन्दोदरी बहुत विदुषी थीं, वे श्रीराम की भगवत्ता से परिचित थीं । उन्होंने अपने-आप को समझाने का प्रयास किया—
‘श्रीराम साक्षात् परब्रह्म हैं, वे सम्पूर्ण ब्रह्माण्डों के स्वामी हैं । जगत के नियन्ता हैं, उन जगन्नाथ के सामने उसके पति दशानन की बिसात ही क्या है ? विश्वविजेता महाराज रावण का दो वनवासी मानवों और रीछ व वानरों की सेना द्वारा इस प्रकार मारा जाना बहुत अस्वाभाविक है । अवश्य ही मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम में कुछ विशिष्ट गुण हैं, जो मेरे पति लंकेश्वर रावण में नहीं थे । मैं मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम की मर्यादा की परीक्षा करुंगी और इसके लिए मैं उनका दर्शन करने उनके पास शिविर में जाऊंगी ।’
जब मन्दोदरी ने ली श्रीराम की मर्यादा की परीक्षा
महारानी मन्दोदरी ने अपने-आप को सोलह श्रृंगार से सज्जित किया । वे उस समय अलौकिक सुन्दरी दिखाई दे रही थीं । उन्होंने विभीषण को बुला कर कहा—‘मैं मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का दर्शन करना चाहती हूँ; आप इसके लिए अति शीघ्र सारी व्यवस्था करें ।’
महारानी मन्दोदरी के कहते ही विभीषण ने राजकीय साजसज्जा से सजी एक स्वर्ण-पालकी की व्यवस्था कर दी । महारानी मन्दोदरी श्रीराम की मर्यादा की परीक्षा का दृढ़ निश्चय करके पालकी में बैठ कर चल दीं । उनके आगे-पीछे दायें-बायें सैकड़ों अंगरक्षक चल रहे थे । विभीषण ने महारानी मन्दोदरी के श्रीराम के दर्शनों के लिए आने की सूचना सुग्रीव को दे दी । सुग्रीव के आदेश से रीछ और वानरों की सेना मार्ग के दोनों ओर पंक्तिबद्ध होकर खड़ी हो गई ।
जैसे ही महारानी मन्दोदरी के आने का समाचार प्रभु श्रीराम-लक्ष्मण को मिला, दोनों भाइयों के नेत्र जमीन में गड़ गए । उसी समय महारानी मन्दोदरी ने पालकी से उतर कर दोनों भाइयों को शीश झुकाकर नमन किया ।
कपिराज सुग्रीव ने प्रभु श्रीराम से कहा—‘असुरों के विश्वकर्मा मय दानव की पुत्री, महाराज दशानन रावण की महारानी, सदैव तीसरी अवस्था से युक्त, देवताओं और उनके स्वामी इन्द्र को भी पराजित करने वाले वीर इन्द्रजित को उत्पन्न करने वाली, मेघनाद की माता आपको हाथ जोड़ कर प्रणाम कर रही है ।’
कपिश्वर सुग्रीव की बात सुन कर श्रीराम ने मुख नीचा किए हुए ही कहा—‘महारानी मन्दोदरी की क्या आज्ञा है ?’
प्रभु श्रीराम की मीठी वाणी ने मन्दोदरी पर भी जादू कर दिया—
तुलसी मीठे वचन तें, सुख उपजत चहुँ ओर ।
बसीकरन इक मंत्र है, परिहरु वचन कठोर ।।
प्रभु श्रीराम का मर्यादित व्यवहार और अमृतमयी वाणी सुनकर महारीनी मन्दोदरी की सभी जिज्ञासाओं का समाधान हो गया और वह जयघोष करती हुईं बोल उठी—‘मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम और लक्ष्मण की सदा जय हो, जय हो ।’
धन्या राम त्वया माता धन्यो राम त्वया पिता ।
धन्यो राम त्वया वंश: परदारान्न पश्यसि ।। (हनुमान्नाटक १४।५९)
अर्थात्—‘श्रीराम ! आपकी जननी माता कौसल्या धन्य है, जिन्होंने आप जैसे सदाचारी, शीलवान, मर्यादापालक पुत्र को जन्म दिया । आपके जन्मदाता पिता धन्यवाद के पात्र हैं, जिन्होंने आप जैसे कीर्तिमान, बलवान, गुणवान पुत्र को उत्पन्न करने का सौंभाग्य प्राप्त किया । आपका सूर्यवंश कुल धन्य है जिसमें आप जैसे मर्यादापुरुषोत्तम महावीर पैदा हुए हैं, जो कभी भी परायी स्त्रियों की ओर आंख उठाकर देखते तक नहीं हैं ।’
महारानी मन्दोदरी के ज्ञान-चक्षु खुल गए । उन्हें समझ आ गया कि उनके प्रियतम पति लंकाधिपति रावण में चरित्र-बल नहीं था, इसी कारण वे अपने भाई, पुत्र तथा पौत्रों सहित मारे गए । सदाचारी विभीषण ने राजसभा में लंकेश को कितना समझाया था—
जो आपन चाहे कल्याना ।
सुजसु सुमति सुभ गति सुख नाना ।।
सो परनारि लिलार गोसाई ।
तजउ चउथि के चंद कि नाई ।। (राचमा ५।३८।५-६)
महाराज रावण ने विभीषण की बात न सुनकर उनको लंका से निकाल दिया । उसी चारित्रिक दोष के परिणामस्वरूप आज वे रणभूमि में सदा के लिए चिरनिद्रा में चले गए हैं ।’
किसी कवि ने सही कहा है—
ऊंचे गिरि से जो गिरै मरै एक ही बार ।
जो चरित्र गिरि से गिरै बिगड़े जनम हजार ।।
महारानी मन्दोदरी प्रभु श्रीराम के चरणकमलों में नमन कर और उन्हें आशीर्वाद देकर विभीषण के साथ लंका लौट गईं ।
गोस्वामी तुलसीदासजी ने प्रभु श्रीराम के लिए श्रीरामचरितमानस में सही कहा गया है—‘जननी सम जानहिं परनारी ।’
जो मनुष्य मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को प्राप्त करना चाहता है, उसे यह बात ध्यान रखनी चाहिए—
जहाँ राम तहँ काम नहिं, जहाँ काम नहिं राम ।
तुलसी कबहुँ कि रहि सकैं रबि रजनी इक ठाम ।।
Radhey Radhey…🙏🙏🌷
Amazing, beautifully articulated 🤩!
Jai Shree Ram
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