भगवान के विभूतिस्वरूप मार्गशीर्ष मास (अगहन) में श्रीकृष्ण की प्रिय तिथि शुक्ल पक्ष की एकादशी को धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में श्रीमद्भगवद्गीता का जन्म हुआ । संसार में किसी भी धर्म या सम्प्रदाय के किसी भी ग्रन्थ का जन्मदिन नहीं मनाया जाता है, परन्तु श्रीमद्भगवद्गीता का जन्मदिन मनाया जाता है जिसे ‘गीता जयन्ती’ कहते हैं । इसका कारण यह है कि अन्य ग्रन्थ किसी मनुष्य द्वारा लिखे या संकलित किए गए हैं जबकि गीता का जन्म स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के मुख से हुआ है, इसलिए गीता भगवान का वांग्मय स्वरूप है ।
सभी उपनिषदों का सार श्रीमद्भगवद्गीता गौ स्वरूप है, इस दूध देने वाली गाय को दुहने वाले हैं श्रीकृष्ण और चूंकि गीता का ज्ञान सर्वप्रथम अर्जुन को मिला, इसलिए अर्जुन बछड़ा है । पहले बछड़ा ही गाय के थन में मुंह लगाता है, तब गाय पेन्हाती है और उसके थनों में दूध उतरता है; फिर शेष दूध को समस्त मानव जाति के उपभोग के लिए छोड़ दिया जाता है । गीता का ज्ञान ही वह गाय का दुग्धामृत है जिसे भगवान ने पहले अर्जुन को देकर फिर समस्त मानव जाति के कल्याण के लिए संसार को दिया ।
मनुष्य को इन्द्र का राज्य मिल जाए, कुबेर का धन मिल जाए, ब्रह्माजी का पद मिल जाए, तो भी उसका दु:ख नहीं मिट सकता है परन्तु यदि वह गीता में कही हुई बात मान ले तो उसका दु:ख टिक ही नहीं सकेगा, सदा के लिए मिट जाएगा । संसार के घोर अंधकार में गीता एक अक्षय दीप के समान है जो हमें जीवन जीने की कला सिखाती है, मनुष्य के कर्तव्य बताती है ।
गीता के उपदेश के समय अर्जुन की जो दशा थी, वही किंकर्तव्यविमूढ़ (क्या करें, क्या न करें) दशा आज कलियुगी मनुष्य की है । इस ऊहापोह से निकलने में गीता मनुष्य की सच्ची पथ-प्रदर्शक हो सकती है ।
गीता-जयन्ती के महापर्व पर आत्म-कल्याण के लिए क्या करना चाहिए ?
भगवान वेदव्यासजी ने महाभारत (भीष्मपर्व, ४३।१) में कहा है—
गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यै: शास्त्रसंग्रहै: ।
या स्वयंपद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनि:सृता ।।
अर्थात्—गीता का ही भली प्रकार से श्रवण, कीर्तन, पठन-पाठन, मनन और धारण करना चाहिए; अन्य शास्त्रों के संग्रह की क्या आवश्यकता है ? क्योंकि वह स्वयं पद्मनाभ भगवान के साक्षात् मुखकमल से निकली हुई है ।’
▪️ इस दिन मनुष्य को गीता के वक्ता भगवान श्रीकृष्ण का, उसके श्रोता भक्तश्रेष्ठ अर्जुन का और उसे महाभारत में ग्रथित करने वाले भगवान व्यासदेव का पूजन करना चाहिए । साथ ही गीता ग्रन्थ का भी पूजन करें क्योंकि यह भगवान का साक्षात् वांग्मय रूप है ।
▪️ इस दिन गीता का पारायण व्यक्तिगत रूप से या सामूहिक रूप से करना चाहिए क्योंकि गीता का अभ्यास करने वाला स्वयं तरन-तारन बन जाता है ।
गीता (१८।२०) में भगवान कहते हैं—‘जो कोई गीता का अध्ययन भी करेगा उसके द्वारा मैं ज्ञानयज्ञ से पूजित होऊंगा । जो मनुष्य श्रद्धा से इसका श्रवण करेगा वह भी समस्त पापों से मुक्त होकर श्रेष्ठ लोक को प्राप्त होगा ।’ जब गीता के अध्ययन का इतना माहात्म्य है, तब जो मनुष्य इसके उपदेशों के अनुसार अपना जीवन बना लेता है और इसका रहस्य भक्तों को बतलाता है, उनमें इसका प्रचार करता है, उसकी तो बात ही क्या है ! उसके लिए तो भगवान कहते हैं कि वह मुझको अतिशय प्रिय है, प्राणों से भी प्यारा है ।
▪️ गीता के प्रचार के लिए गीता की प्रतियां लोगों में वितरित करें ।
▪️ गीता को समझने के लिए गीता के विद्वानों द्वारा व्याख्यानों का आयोजन किया जाना चाहिए ।
▪️ मन्दिर आदि में गीता-कथा का आयोजन करना चाहिए ।
जरुरत है जीवन को बदलने की
श्रीमद्भगवद्गीता में कुल अठारह (18) अध्याय हैं, इनमें जीवन का इतना सत्य, इतना ज्ञान और इतने ऊंचे सात्विक उपदेश भरे हैं, जिनका यदि मनुष्य पालन करे तो वह उसे निकृष्टतम स्थान से उठाकर देवताओं के स्थान पर बैठा देने की शक्ति रखते हैं । इसलिए गीता का श्रद्धापूर्वक पाठ करना, उसका अर्थ समझना और उसी के आदेशों के अनुसार जीवन बनाना अत्यन्त आवश्यक है ।
गीता का उपदेश है कि संसार में जड़-चेतन जितने भी प्राणी हैं, सबमें भगवान का वास है, अत: सबके साथ समता का बर्ताव करें । गीता जयन्ती पर यही संकल्प करें कि भगवान की आज्ञा मानकर किसी के साथ न वैर रखेंगे और न ही द्वेष; ‘वासुदेव: सर्वम्’ मानकर सबके कल्याण में लगे रहेंगे, करुणा को अपनाएंगे, अपने स्वधर्म का पालन करेंगे, अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए सभी कर्म भगवान को अर्पण कर देंगे ।
ईश्वरार्पण करके तन-मन से कीजै सब कर्म ।
दीजै छोड़ फलाशा हरि पर, यही भक्ति का मर्म ।।
गीता (१८।६२) में भगवान ने कहा है—
तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत ।
तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम् ।।
अर्थात्—हे अर्जुन ! तू सब प्रकार से उस परमेश्वर की ही शरण में जा । उसकी कृपा से ही तू परम शान्ति और सनातन परम धाम को प्राप्त होगा । इसलिए मनुष्य को हर प्रकार से उन्हीं की शरण ग्रहण करनी चाहिए और उन्हीं का स्मरण करते रहना चाहिए ।
वास्तव में गीता के अध्ययन, मनन व पालन के समान संसार में कोई भी यज्ञ, दान, तप, तीर्थ, व्रत, उपवास कुछ भी नहीं है ।