श्री नाथ जी

कृष्ण कृष्ण रसना रटत सोई धन्य कलि में।
ताके पद पंकज की रेणुका की बलि मैं।
सोई सुकृत, सोई पुनीत सोही गुणवन्ता।
जाके मन रहत निशदिन कृष्ण नाम चिंता।
योग, यज्ञ, तीरथ, व्रत, सकल कृष्ण नाम माँही।
कृष्ण नाम लै लै भव सागर पार जाहीं।
सब सुख को सार श्रीकृष्ण ना बिसरिये।
कृष्ण नाम लै लै भव सागरि ते तरिये।
श्रीगोवर्धनधरण धीर, परम मंगलकारी।
उद्धरे जन ‘सूरदास’ तिन की बलिहारी।।

जिस प्रकार ‘हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे’ नाम महामन्त्र के कीर्तन का प्रचार श्रीचैतन्य महाप्रभु के आदेश के अनुसार बंगदेश में शुरू हुआ और आज वह सारे संसार को पवित्र कर  रहा है, उसी प्रकार ‘श्रीकृष्ण: शरणं मम’ अष्टाक्षर महामन्त्र ‘पुष्टि सम्प्रदाय’ में नाममन्त्र संज्ञा से सुप्रसिद्ध है। यह अखण्डभूमण्डलाचार्यवर्य श्रीवल्लभाचार्यजी द्वारा प्रकटित है। इस नाममन्त्र के संकीर्तन और जप से वैष्णवों को परम आनन्द और शान्ति का अनुभव होता है।’
महाप्रभु जी

‘अष्टाक्षरार्थ-निरूपण’ नामक ग्रन्थ में इस महामन्त्र की कैसी दिव्य महिमा कही गयी है–

य: स्मरेत्तु सदा मन्त्रं ‘श्रीकृष्ण: शरणं मम’।
अष्टाक्षरं जपेन्नित्यं यमो दृष्ट्वा हि शंकते।।

“जो प्राणी सदैव ‘श्रीकृष्ण: शरणं मम’ इस प्रकार स्मरण करता है, जप-कीर्तन करता है, उसको देखकर यम निश्चय शंकित होते हैं।” जिस प्रकार भगवान मनुष्य की भावना के अनुसार उसके मनोरथ पूर्ण करने में समर्थ हैं, उसी प्रकार इस अष्टाक्षर महामन्त्र (जो कि भगवान का अक्षरात्मक भगवद्विग्रह है) का प्रत्येक अक्षर समस्त मनोरथों को पूर्ण करने में समर्थ है। श्रीमद्भगवद्गीता के विभूतियोग में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है–‘यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि’ अर्थात् ‘समस्त यज्ञों में जपयज्ञ मैं हूँ’। जप से सब प्रकार के क्लेशों की निवृत्ति होती है और समाधि सिद्ध होती है।

श्रीमद्वल्लभ मतानुयायी नाममन्त्र अथवा नामदीक्षा के रूप में ‘श्रीकृष्ण: शरणं मम’— इसी को जानते हैं। इस महामन्त्र के प्रत्येक अक्षर की महिमा इस प्रकार है–

श्री–सौभाग्य देता है, धन और राजसुख देता है।
कृ–यह पाप का शोषण करता है।
ष्ण:–आधिभौतिक, आध्यात्मिक और आधिदैविक– तीनों प्रकार के दु:खों का हरण करता है।
–जन्म-मरण का दु:ख दूर करता है।
–प्रभु सम्बन्धी ज्ञान देता है।
णं–प्रभु में दृढ़भक्ति कराता है।
–भगवत्-सेवा के उपदेशक गुरुदेव में प्रीति कराता है।
–प्रभु में सायुज्य कराता है, जन्म मरण के चक्र से मुक्ति दिलाता है।

इस नाम मन्त्र की महिमा–इस मन्त्र के उच्चारण से सिद्धि सदैव घर में रहती है। समस्त प्रकार के आनन्दों की उपलब्धि होती है। सारे विघ्न, बीमारियां, ग्रहपीड़ा दूर हो जाते हैं। साथ ही दुर्लभ भगवत्प्रेम की प्राप्ति होती है। आक्रमण, अपमान-सहन आदि के निवारण का भी उत्तम साधन यह नाममन्त्र है। इस प्रकार यह कलियुग का महामन्त्र है।

कुछ नियम–जपमाला करते समय शारीरिक शुद्धि तथा मानसिक एकाग्रता आवश्यक है। जब समय मिले तब जप किया जा सकता है परन्तु माला करते समय बीच में वार्तालाप न करें। अशौच के दिनों में मानसिक जप करें, माला पर नहीं।
इस प्रकार कलिकाल में भवसागर से पार होने का यह सहज और सरल उपाय है। श्रीमद्वल्लभाचार्यजी लिखते है–
‘भगवान के स्वधाम पधार जाने पर उनके नाम का उच्चारण करने मात्र से ही जीव मुक्त हो जाता है–भव बंधन से छूट जाता है।’

4 COMMENTS

  1. पूर्ण पुरश्चरण कितने लाख जप और कितने हजार या लाख हवन से सपूर्ण होगा?

    • ‘श्रीकृष्ण शरणं मम’ श्रीमद्वल्लभाचार्यजी के मुख से निकला शरणागति मन्त्र है। इसके पुरश्चरण व हवन का कोई विधान नहीं है। अपने इष्ट की शरणागति तो जन्म-जन्मान्तर की होती है अत: भगवान के शरणागत होकर नित्य इसका जप करते रहना चाहिए।
      लेकिन श्रीवल्लभ सम्प्रदाय में यह माना जाता है कि यह मन्त्र तभी फलित होता है जब यह किसी आचार्य के मुख से दीक्षा लेकर जपा जाय।

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