प्रात: उठ श्रद्धा सहित, करें नमन आदित्य।
नव प्रकाश नव चेतना, पावें जग में नित्य।। (स्वामी नर्मदानन्दजी सरस्वती)
प्रत्यक्ष देवता सूर्यनारायण
भगवान सूर्य परमात्मा नारायण के साक्षात् प्रतीक हैं। श्रीहरि ही सूर्य के रूप में विराजमान हैं; इसलिए वे सूर्यनारायण कहलाते हैं। भगवान सूर्य प्रत्यक्ष देवता है; नित्य दर्शन देते हैं एवं नित्य पूजा ग्रहण करते हैं। अत: अन्य नित्य कर्मों की भांति सूर्य-उपासना भी हमारे जीवन का अंग है।
सृष्टिकाल में सर्वप्रथम सूर्य की उत्पत्ति हुई और फिर सूर्य से ही समस्त लोक उत्पन्न हुए। इसीलिए सूर्य को सविता कहा जाता है जिसका अर्थ है उत्पन्न करने वाला। चन्द्र, वरुण, वायु, अग्नि आदि सब देवता सूर्यदेव से ही प्रादुर्भूत हुए हैं और उनकी आज्ञा के अनुसार अपने-अपने कर्मों को कर रहे हैं।
सृष्टि के आरम्भ में भगवान ने सबसे पहले सूर्य को कर्मयोग का उपदेश दिया था। तब से सूर्यदेव अपने नियत कर्म का किसी भी दिन या अवस्था में त्याग न कर विलक्षण कर्मयोग कर रहे हैं।
सूर्य ग्रहों के राजा व दिशाओं के स्वामी हैं। आकाश में देखे जाने वाले चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र तथा तारागणों में सूर्यनारायण का ही प्रकाश है; वे सूर्य की आकर्षणशक्ति से ही टिके हुए हैं।
सूर्य समस्त जगत के नेत्र हैं। महाभारत में युधिष्ठिर कहते है–’भगवन्! यदि आपका उदय न हो तो यह सारा जगत अन्धा हो जाए।’
सूर्य के आधार पर ही सम्पूर्ण सृष्टि-चक्र चल रहा है। सूर्य अपनी किरणों से समुद्र और नदियों के जल का आकर्षण कर उसे वर्षा के रूप में पृथ्वी पर बरसाते हैं। वर्षा से अन्न की उत्पत्ति होती है। मनुष्यों का जीवन अन्न से ही चलता है। सूर्यकिरणें ही सभी पदार्थों में रस तथा शक्ति प्रदान करती हैं।
समय की गति सूर्य द्वारा नियमित होती है। सूर्यदेव जब उदय होते हैं तब उसे प्रात:काल कहते हैं। जब सूर्य आकाश के शिखर पर होते हैं तो उसे मध्याह्नकाल और जब सूर्य अस्ताचलगामी होते हैं तो उसे सायंकाल कहते हैं। ये तीनों काल ही सन्ध्या-उपासना के काल हैं।
सूर्य अनन्त काल के विभाजक हैं। सूर्य ही दिन-रात के काल का विभाजन करते हैं। यदि सूर्यभगवान न हों तो क्षण, मुहुर्त, दिन, रात्रि, पक्ष, मास, अयन, वर्ष तथा युग आदि का कालविभाजन हो ही नहीं। ऋतुओं का विभाग न हो तो फिर फल-फूल, खेती, ओषधियां आदि कैसे उत्पन्न हो सकती हैं और इनके बिना प्राणियों का जीवन भी कैसे रह सकता है? इसलिए विश्व के मूल कारण भगवान सूर्यनारायण ही हैं।
सूर्य अपने अखण्ड प्रकाश से ब्रह्माण्ड को आलोकित करते हैं; देवताओं और सम्पूर्ण जगत का तेज इन्हीं का है। सूर्य उष्मा के पुंज हैं। संसार में उष्मा न होने पर जल नहीं रह सकता, केवल बर्फ ही रहेगी।
नित्य सूर्योपासना से लाभ
धन-धान्य व समृद्धि की प्राप्ति
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं–‘हे अर्जुन! जो मनुष्य प्रात:, मध्याह्न और सायंकाल में सूर्य की अर्घ्यादि से पूजा और स्मरण करता है, वह जन्म-जन्मान्तर में कभी दरिद्र नहीं होता, सदा धन-धान्य से समृद्ध रहता है।’
सूर्योपासना करना (सूर्य को अर्घ्य देना) प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है। धन की प्राप्ति की इच्छा रखने वालों को लाल फूलों के साथ सूर्यदेव को जल देने का विधान है। मोक्ष की आकांक्षा रखने वालों के लिए संध्याकालीन सूर्य की उपासना उत्तम बताई गई। तीनों पुरुषार्थों–धर्म, अर्थ और मोक्ष–को पाने के लिए ही प्राचीनकाल में तीनों समय सूर्य की पूजा की जाती थी।
ऋग्वेद (१०।३७।४) में भी सूर्यदेव से दारिद्रय, रोग व क्लेश मिटाने की प्रार्थना की गयी है–‘हे सूर्यदेव! आप अपनी जिस ज्योति से अंधेरे को दूर करते और विश्व को प्रकाशित करते हैं, उसी ज्योति से हमारे पापों को दूर करें, रोगों को और क्लेशों को नष्ट करें तथा दारिद्रय को भी मिटायें।’
षष्ठी और सप्तमी तिथि को सूर्य की पूजा करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
सूर्यपूजा से परमगति की प्राप्ति
सूर्य का एक नाम ‘मोक्षद्वार’ है जिसका अर्थ है कि सूर्यपूजा से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। ऐसा माना जाता है कि मृत्यु के बाद सूर्यदेव प्राणी को अपने लोक में से होकर भगवान के परमधाम में ले जाते हैं। भगवान के परमधाम का रास्ता सूर्यलोक में से होकर ही गया है। जो लोग प्रतिदिन भगवान सूर्य की आराधना करते हैं उन्हें सूर्यदेव की कृपा से अवश्य परमगति प्राप्त होती है।
आरोग्य की प्राप्ति
शास्त्र कहते हैं कि ‘आरोग्यं भास्करादिच्छेत्’ अर्थात् आरोग्य की कामना भगवान सूर्य से करनी चाहिए। सूर्य की उपासना से मनुष्य का तेज, बल, आयु एवं नेत्रों की ज्योति की वृद्धि होती है, आधि-व्याधि नहीं सताती हैं; मनुष्य दीर्घायु होता है। सूर्य समस्त नेत्र-रोग को दूर करने वाले देवता हैं। भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अभिशप्त उनके पुत्र साम्ब ने अपने कोढ़ के रोग को सूर्य की उपासना से दूर किया था।
प्रज्ञा, मेधा व ज्ञान की प्राप्ति
सूर्यनारायण का पूजन करने वाला पुरुष बुद्धि, मेधा तथा सभी समृद्धियों से सम्पन्न हो जाता है। पातंजलयोगसूत्र में कहा गया है कि सूर्योपासना से मनुष्य को ज्ञान प्राप्त होता है। सर्वसिद्धिदायक गायत्री-मन्त्र का सम्बन्ध सूर्य-शक्ति से है। सूर्य को अर्घ्य देते समय गायत्री-मन्त्र का जप किया जाता है। गायत्री-मन्त्र में हम कहते हैं–’धियो यो न: प्रचोदयात्’ अर्थात् हमारी बुद्धि सत्कर्म में लगे।
कर्तव्यपरायणता
सूर्यपूजा से मनुष्य में कर्तव्यपरायणता आती है।। सूर्य के उदय होते ही सभी प्राणी अपने-अपने कर्मों में लग जाते हैं। सूर्यदेव थके व सोये हुए समस्त जगत को पुन: जागरूक करते हैं।
इच्छाओं की पूर्ति
सूर्य की पूजा से इच्छाओं की पूर्ति होती है। ऋषि याज्ञवल्क्य ने सूर्यदेव की उपासना कर ‘शुक्लयजुर्वेद’ को प्रकाशित किया। सूर्यदेव की कृपा से द्रौपदी ने ‘अक्षय पात्र’ प्राप्त किया था। अगस्त्य ऋषि ने युद्धक्षेत्र में श्रान्त (चिंतित) हुए श्रीरामजी को सूर्य के आदित्यहृदय स्तोत्र का उपदेश दिया था, जिसके पाठ से श्रीराम ने लंका पर विजय प्राप्त की। सूर्य के अनुग्रह से सत्राजित ने स्यमन्तकमणि प्राप्त की थी।
यदि भक्तिभाव से नित्य सूर्यपूजा की जाए तो इन्द्र से भी अधिक वैभव की प्राप्ति होती है, सभी ग्रह उस मनुष्य पर सौम्य दृष्टि रखते हैं। मनुष्य अत्यन्त तेजस्वी हो जाता है, उसके शत्रु नष्ट हो जाते हैं।
सूर्य का एक नाम है ‘प्रजाद्वार’ है जिसका अर्थ है सूर्योपासना से संतान की प्राप्ति होती है।
जिन्हें राज्यसुख, भोग, अतुल कान्ति, यश-कीर्ति, श्री, सौन्दर्य, विद्या, धर्म और मुक्ति की अभिलाषा हो, उन्हें सूर्यनारायण की पूजा-आराधना करनी चाहिए। सूर्यपूजा से मनुष्य की सभी आपत्तियां दूर हो जाती हैं। मनुष्य को सूर्यपूजा करके ही भोजन करना चाहिए।