Krishna Sucking toe thumb

श्रीकृष्ण सच्चिदानन्दघन परब्रह्म हैं। यह सारा संसार उन्हीं की आनन्दमयी लीलाओं का विलास है। श्रीकृष्ण की लीलाओं में हमें उनके ऐश्वर्य के साथ-साथ  माधुर्य के भी दर्शन होते हैं। ब्रज की लीलाओं में तो श्रीकृष्ण संसार के साथ बिलकुल बँधे-बँधे से दिखायी पड़ते हैं। उन्हीं लीलाओं में से एक लीला है बालकृष्ण द्वारा अपने पैर के अंगूठे को पीने की लीला।

विहाय पीयूषरसं मुनीश्वरा,
ममांघ्रिराजीवरसं पिबन्ति किम्।

इति स्वपादाम्बुजपानकौतुकी,
स गोपबाल: श्रियमातनोतु व:।।

अर्थात् बालकृष्ण अपने पैर के अंगूठे को पीने के पहले यह सोचते हैं कि क्या कारण है कि बड़े-बड़े ऋषि मुनि अमृतरस को छोड़कर मेरे चरणकमलों के रस का पान करते हैं। क्या यह अमृतरस से भी ज्यादा स्वादिष्ट है? इसी बात की परीक्षा करने के लिये बालकृष्ण अपने पैर के अंगूठे को पीने की लीला किया करते थे।

श्रीकृष्णावतार की यह बाललीला देखने सुनने अथवा पढ़ने में तो छोटी सी तथा सामान्य सी लगती है किन्तु इसे कोई हृदयंगम कर ले और कृष्ण के सम्मुख हो जाय तो उसका तो बेड़ा पार होकर ही रहेगा।

नन्हे श्याम की नन्ही लीला, भाव बड़ा गम्भीर रसीला।

https://www.youtube.com/watch?v=-N94_Js61pU

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