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भगवान श्रीकृष्ण का पांचजन्य शंख

भगवान श्रीकृष्ण अपने चार हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण करते हैं । उनके शंख का नाम ‘पांचजन्य’ है, जिसे उन्होंने महाभारत युद्ध के आरम्भ में कुरुक्षेत्र के मैदान में बजाया था । श्रीकृष्ण और अर्जुन ने जब भीष्म पितामह सहित कौरव सेना के द्वारा बजाये हुए शंखों और रणवाद्यों की ध्वनि सुनी, तब इन्होंने भी युद्ध आरम्भ की घोषणा के लिए अपने-अपने शंख बजाए ।

भगवान श्रीकृष्ण द्वारा युधिष्ठिर को आत्म-तत्त्व का उपदेश

प्रलयकाल में समस्त जगत का संहार करके उसे अपने उदर में स्थापित कर दिव्य योग का आश्रय ले मैं एकार्णव के जल में शयन करता हूँ । एक हजार युगों तक रहने वाली ब्रह्मा की रात पूर्ण होने तक महार्णव में शयन करके उसके बाद जड़-चेतन प्राणियों की सृष्टि करता हूँ । किंतु मेरी माया से मोहित होने के कारण जीव मुझे नहीं जान पाते हैं । कहीं भी कोई भी ऐसी वस्तु नहीं है, जिसमें मेरा निवास न हो । भूत, भविष्य जो कुछ है, वह सब मैं ही हूँ । सभी मुझसे ही उत्पन्न होते हैं; फिर भी मेरी माया से मोहित होने के कारण मुझे नहीं जान पाते हैं ।

श्रीकृष्ण पर्यावरण संरक्षण के सबसे बड़े रोल मॉडल

श्रीकृष्ण ने अपने आदर्श जीवन में जो कुछ किया है, उसकी कहीं तुलना नहीं है । इसलिए सच्चे कृष्णभक्त कहलाने का हक हमें तभी है जब हम उनकी तरह अपने पर्यावरण की रक्षा के लिए ज्यादा-से ज्यादा पेड़ लगाएं, नदियों को कचरा-मुक्त रखें, पोलीथिन व प्लास्टिक प्रयोग ना करने की शपथ लें ।

जब भगवान श्रीकृष्ण ने सुदामा को दिखाया अपना मायाजाल

भगवान की माया क्या है ? संतों ने माया को ‘नर्तकी’ कहा है । इस नर्तकी माया के जाल से बचना है तो ‘नर्तकी’ का उल्टा कर दो । जो शब्द बनेगा वह है ‘कीर्तन’ अर्थात् जो भगवान का कीर्तन व नाम-स्मरण करता है, उसे माया रुलाती नहीं है ।

क्या संतों को भगवान के दर्शन होते हैं ?

मैं उसके पीछे-पीछे गिरिराज तक दौड़ता हूँ । गिरिराज पर्वत पर आकर मुझे लगता है कि वह मेरे पीछे खड़ा है तो मैं उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे दौड़ पड़ता हूँ और वह मुझे कुसुम सरोवर तक ले आता है । इस तरह कई दिनों से मैं उसे पकड़ने के लिए कुसुम सरोवर से गिरिराज पर्वत और गिरिराज से कुसुम सरोवर तक की दौड़ लगा रहा हूँ ।’

भगवान श्रीकृष्ण की अद्भुत अतिथि-सेवा

कृष्णावतार में जरा व्याध ने प्रभास क्षेत्र में मृग के संदेह में जो बाण मारा वह भगवान श्रीकृष्ण के चरण में लगा और भगवान नित्यलीला में प्रविष्ट हो गए । व्याध ने श्रीकृष्ण के तलवे में ही क्यों बाण मारा? इसके पीछे है दुर्वासा ऋषि द्वारा श्रीकृष्ण को दिए गए वरदान की कथा |

सांवले सलोने सुंदर श्याम

श्रीराधा की शोभा बढ़ाने के लिए श्रीकृष्ण ने धारण किया श्याम रंग।

जैसा भाव वैसे भगवान

वैष्णव वह है जो अपने दोषों को देखे, दूसरों के नहीं

भगवान श्रीकृष्ण की वंशी के हैं रूप अनेक

गौचारण और रास के समय श्रीकृष्ण धारण करते हैं अलग प्रकार की बाँसुरी

कान्हा मोरि गागर फोरि गयौ रे

भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोपी की गोरस से भरी मटकी फोड़ने की लीला और उसका भाव वर्णन