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वाल्मीकीय रामायण की ‘राम गीता’

जो रात बीत जाती है, वह लौट कर फिर नहीं आती, जैसे यमुना जल से भरे हुए समुद्र की ओर जाती ही है, उधर से लौटती नहीं । दिन-रात लगातार बीत रहे हैं और इस संसार में सभी प्राणियों की आयु का तीव्र गति से नाश कर रहे हैं; ठीक वैसे ही, जैसे सूर्य की किरणें ग्रीष्म ऋतु में जल को तेजी से सोखती रहती हैं । तुम अपने ही लिए चिन्ता करो, दूसरों के लिए क्यों बार-बार शोक करते हो ?

भगवान श्रीकृष्ण और श्वपच भक्त वाल्मीकि

एक बार राजा युधिष्ठिर ने यज्ञ किया जिसमें चारों दिशाओं से ऋषि-मुनि पधारे । भगवान श्रीकृष्ण ने एक शंख स्थापित करते हुए कहा कि यज्ञ के विधिवत् पूर्ण हो जाने पर यह शंख बिना बजाये ही बजेगा । यदि नहीं बजे तो समझिये कि यज्ञ में अभी कोई त्रुटि है और यज्ञ पूरा नहीं हुआ है । पूर्णाहुति, तर्पण, ब्राह्मणभोज, दान-दक्षिणा—सभी कार्य संपन्न हो गए, परंतु शंख नहीं बजा । सभी लोग चिंतित होकर शंख न बजने का कारण जानने के लिए भगवान श्रीकृष्ण के पास आए ।

महर्षि वाल्मीकि और उनका आदिकाव्य ‘वाल्मीकीय रामायण’

सरस्वतीजी कवित्व की शक्ति हैं । सरस्वतीजी की प्रेरणा से ही उनके मुख की वह वाणी, जो उन्होंने क्रौंची को सान्त्वना देने के लिए कही थी, छन्दमय (कविता) बन गयी । यह श्लोक देवी सरस्वती के कृपा प्रसाद से ही महर्षि वाल्मीकि के मुख से निकला था । वेदों की बात तो अलग है; परन्तु अब तक लोक में छन्द में बद्ध रचना का प्रारम्भ नहीं हुआ था । पहली बार वाल्मीकिजी के मुख से छन्द में बद्ध पद्य (कविता) फूट पड़ी थी ।