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तुलसी दल की महिमा
नारदजी ने कहा—‘एक समाधान है—श्रीकृष्ण के बराबर अन्य किसी वस्तु का दान कर दिया जाए ।’
फिर क्या था, सभी रानियों ने पल भर में ही श्रीकृष्ण को तराजू के एक पलड़े पर बिठा दिया और दूसरे पलड़े पर अनन्त रत्न, स्वर्ण-आभूषण आदि बहुमूल्य पदार्थ रख दिए । किन्तु भगवान को कौन किस वस्तु से तौल सकता है ?
तुलसीदास चंदन घिसें, तिलक देत रघुबीर
तुलसीदासजी को जब होश आया तो बिन-पानी की मछली की तरह भगवान की विरह-वेदना में तड़फड़ाने लगे । सारा दिन बीत गया, पर उन्हें पता ही नहीं चला । रात्रि में आकर हनुमानजी ने उन्हें दर्शन दिए और उनकी दशा सुधारी ।
अपने इष्टदेव का निर्णय कैसे करें?
गोस्वामीजी के मन में श्रीराम और श्रीकृष्ण में कोई भेद नहीं था, परन्तु पुजारी के कटाक्ष के कारण गोस्वामीजी ने हाथ जोड़कर श्रीठाकुरजी से प्रार्थना करते हुए कहा—‘यह मस्तक आपके सामने तभी नवेगा जब आप हाथ में धनुष बाण ले लोगे ।’