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सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:

मानव जीवन की दो प्रधान भावनाएं हैं—स्वार्थ भावना और परहित भावना । स्वार्थ भावना मनुष्य के हृदय को संकीर्ण और निम्न स्तर का बना देती है; लेकिन परहित की भावना मनुष्य के हृदय को उज्ज्वल कर विशाल बना देती है । दूसरों के दु:ख दूर करने से स्वयं में आनन्द का आभास होता है । परमात्मा को भी ऐसे ही मनुष्य अत्यंत प्रिय होते हैं । इस प्रकार की प्रार्थना करने वाले मनुष्यों की रक्षा स्वयं भगवान करते हैं ।

द्वादश ज्योतिर्लिंग : स्तोत्र व महिमा

शिव पुराण के अनुसार भूतभावन भगवान शंकर मनुष्यों के कल्याण के लिए विभिन्न तीर्थों में लिंग रूप से वास करते हैं । जिस-जिस पुण्य-स्थलों में भक्तों ने उनकी आराधना की, उन स्थानों पर वे प्रकट होकर ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा के लिए स्थित हो गए । वैसे तो शिवलिंग असंख्य हैं, फिर भी इनमें द्वादश (१२) ज्योतिर्लिंग ही प्रधान हैं ।