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गिलहरी पर भगवान राम की कृपा
गिलहरी के निष्काम सेवा-भाव से प्रभु श्रीराम प्रसन्न हो गए । उन्होंने गिलहरी को बांये हस्त पर बैठा रखा था । एक छोटे-से प्राणी को उन्होंने वह आसन दे रखा था जिसकी कल्पना त्रिभुवन में कोई कर भी नहीं सकता । श्रीराम जी ने अपने दाहिने हाथ की तीन अंगुलियों से गिलहरी की पीठ थपथपा दी ।
राम जी की चरण-पादुकाएं
वन में राम जी के तपस्वी जीवन की तुलना में भरत जी का तपस्वी जीवन अधिक श्रेष्ठ है; क्योंकि वन में रह कर तप करना बहुत कठिन नहीं है । राजमहल में रह कर तप करने वाला सच्चा ब्रह्मनिष्ठ साधु है । सब प्रकार की अनुकूलता हो, विषयभोग के साधन हों फिर मन विषयों में न लगे; यही सच्ची साधुता है, सच्चा वैराग्य है । भिखारी को खाने को न मिले और फिर वह उपवास करे तो उसका कोई विशेष अर्थ नहीं है । सब कुछ होने पर भी मन किसी विषय में न जाए, यही सच्चा वैराग्य है ।
वात्सल्यमूर्ति हनुमान और उनके पुत्र मकरध्वज
हनुमानजी जब सूक्ष्म रूप धारण कर पाताललोक के द्वार के अंदर प्रवेश करने जा रहे थे तो उस वानर ने गर्जते हुए कहा—‘तुम कौन हो? सूक्ष्म रूप धारण कर तुम चोरी से द्वार के अंदर प्रवेश नहीं कर सकते । मेरा नाम मकरध्वज है और मैं परम पराक्रमी बजरंगबली हनुमान का पुत्र हूँ ।’ हनुमानजी ने आश्चर्यचकित होकर कहा—‘हनुमान का पुत्र ? हनुमान तो बाल ब्रह्मचारी हैं । तुम उनके पुत्र कहां से आए ?’
महर्षि वाल्मीकि और उनका आदिकाव्य ‘वाल्मीकीय रामायण’
सरस्वतीजी कवित्व की शक्ति हैं । सरस्वतीजी की प्रेरणा से ही उनके मुख की वह वाणी, जो उन्होंने क्रौंची को सान्त्वना देने के लिए कही थी, छन्दमय (कविता) बन गयी । यह श्लोक देवी सरस्वती के कृपा प्रसाद से ही महर्षि वाल्मीकि के मुख से निकला था । वेदों की बात तो अलग है; परन्तु अब तक लोक में छन्द में बद्ध रचना का प्रारम्भ नहीं हुआ था । पहली बार वाल्मीकिजी के मुख से छन्द में बद्ध पद्य (कविता) फूट पड़ी थी ।