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भगवान शंकर द्वारा पार्वती जी के पातिव्रत्य की परीक्षा
जिस प्रकार एक कुम्हार आंवे में से घड़े को निकाल कर उसे चारों तरफ से ठोक-बजा कर देखता है कि घड़ा पूरी तरह पक कर तैयार है या नहीं; उसी प्रकार परमात्मा किसी भी प्राणी को अपनाने से पहले उसकी परीक्षा कर देखते हैं कि यह जीव ‘मेरे द्वारा अपनाए जाने के लायक’ हुआ है या नहीं ? ऐसी परीक्षा जीव को ही नहीं वरन् भगवान की सहधर्मिणियों को भी देनी पड़ती है ।
हरितालिका तीज : व्रत-पूजन विधि व मंत्र
हरितालिका तीज व्रत भाद्रप्रद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है । पार्वती जी ने कठोर तप के द्वारा इस दिन भगवान शिव को प्राप्त किया था । कुंवारी लड़कियों द्वारा इस व्रत को करने से उन्हें मनचाहे पति की प्राप्ति होती है और विवाहित स्त्रियां इस व्रत को करती हैं तो उन्हें अखण्ड सुहाग की प्राप्ति होती है । यह कठिन व्रत बहुत ही त्याग और निष्ठा के साथ किया जाता है । इस व्रत में मुख्य रूप से शिव-पार्वती और गणेश जी का पूजन किया जाता है ।
पार्वती को क्यों करना पड़ा शिव को दान
पार्वतीजी सोचने लगीं–‘मैंने यह कैसी मूर्खता की, पुत्र के लिए एक वर्ष तक पुण्यक व्रत करने में इतना कष्ट भोगा पर फल क्या मिला? पुत्र तो मिला ही नहीं, पति को भी खो बैठी। अब पति के बिना पुत्र कैसे होगा?’
हरियाली अमावस्या : पार्वतीजी की परीक्षा का दिन
ऐसा माना जाता है कि हरियाली अमावस्या के दिन पार्वतीजी के तप की परीक्षा लेने के लिए शंकरजी ने सप्त ऋषियों को पार्वतीजी के पास भेजा था ।
सुख और सौभाग्य देती है शिवप्रिया पार्वती की पूजा
देवी के आठ नाम देते हैं सौभाग्य का वरदान, सौभाग्य व आरोग्य प्राप्ति का मन्त्र, दाम्पत्य जीवन की बाधाओं को दूर करने के लिए मन्त्र
भगवान शिव और पार्वती के परिहास में छिपा जगत का कल्याण
’पार्वती! तुम अपने पिता हिमाचल की तरह पत्थर-दिल प्रतीत होती हो। तुम्हारी चाल में भी पहाड़ी मार्गों की तरह कुटिलता है। ये सब गुण तुम्हारे शरीर में हिमाचल से ही आए प्रतीत होते हैं।’ शिवजी के इन वचनों ने पार्वतीजी की क्रोधाग्नि में घी का काम किया। उनके होंठ फड़कने लगे, शरीर कांपने लगा।
देवाधिदेव भगवान शिव और जगदम्बा पार्वती का विवाहोत्सव
पर्वतराज हिमालय ने सब प्रकार की लौकिक-वैदिक विधियों को सम्पन्न करके हाथ में जल और कुश लेकर कन्यादान का संकल्प किया। पर्वतराज हिमालय ने हंसकर शिवजी से कहा--’शम्भो! आप अपने गोत्र का परिचय दें। प्रवर, कुल, नाम, वेद और शाखा का प्रतिपादन करें।’ नाम पूछे जाने पर वर का नाम ‘शिव’ बताया गया, पर इनके पिता का नाम पूछने पर सब चुप हो गए। कुछ समय सोचने के बाद ब्रह्माजी ने कहा कि इनका पिता मैं ‘ब्रह्मा’ हूँ और पितामह का नाम पूछने पर ब्रह्माजी ने ‘विष्णु’ बताया। इसके बाद प्रपितामह का नाम पूछने पर सारी सभा अत्यन्त मौन रही। अंत में मौन भंग करते हुए शिवजी स्वयं बोले कि सबके प्रपितामह तो हम ही हैं।
अलबेले भगवान शिव और उनका अनोखा घर-संसार
जिनका ऐसा अद्भुत वेष हो और गृह पालन की सामग्री--बूढ़ा बैल, खटिये का पाया, फरसा, चर्म, भस्म, सर्प, कपाल--इतनी कम हो, तो भभूतिया बाबा शंकर के घर बड़ी मुसीबत रहती है जगज्जननी को। गृहस्वामी के पांच मुख, बच्चे गजानन और षडानन, सवारी के लिए बुड्ढा बैल, खाने के लिए भांग-धतूरा, रहने के लिए सूनी दिशाएं, खेलने के लिए श्मशान और आभूषणों के लिए फुफकारते सर्प। ऐसी स्थिति में यदि मां अन्नपूर्णा न होतीं तो भोलेबाबा की गृहस्थी चलती कैसे?