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भगवान विष्णु के वक्ष:स्थल पर स्थित भृगु-रेखा

भगवान विष्णु के हृदय पर भृगु-चिह्न रेखा को भृगु-लांछन चिह्न क्यों कहते है ?

उत्तम भक्ति किसे कहते हैं ?

एक ही भगवान कई रूपों में हमारे सामने आते हैं। भूख लगने पर अन्नरूप में, प्यास लगने पर जलरूप में, रोग में औषधिरूप से, गर्मी में छायारूप में तो सर्दी में वस्त्ररूप में परमात्मा ही हमें प्राप्त होते हैं । परमात्मा ने जहां श्रीराम, कृष्ण आदि सुन्दर रूप धारण किए तो वहीं वराह (सूअर), कच्छप, मीन आदि रूप धारण कर भी लीला की । भगवान कभी पुष्प या सुन्दरता के रूप में आते हैं तो कहीं मांस-हड्डियां पड़ी हों, दुर्गन्ध आ रही हो, वह भी भगवान का ही रूप है । मृत्यु के रूप में भी भगवान ही आते है ।

विराट् पुरुष या आदि पुरुष

ब्रह्मा से लेकर तृणपर्यन्त समस्त चराचर जगत--जो प्राकृतिक सृष्टि है, वह सब नश्वर है । तीनों लोकों के ऊपर जो गोलोक धाम है, वह नित्य है । गोलोक में अन्दर अत्यन्त मनोहर ज्योति है; वह ज्योति ही परात्पर ब्रह्म है । वे परमब्रह्म अपनी इच्छाशक्ति से सम्पन्न होने के कारण साकार और निराकार दोनों रूपों में अवस्थित रहते हैं । ब्रह्माजी की आयु जिनके एक निमेष (पलक झपकने) के बराबर है, उन परिपूर्णतम ब्रह्म को ‘कृष्ण’ नाम से पुकारा जाता है ।