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आदि शंकराचार्य जी द्वारा भगवान जगन्नाथ की रत्नवेदी पर पुनर्स्थापना
एक बार जगद्गुरु शंकराचार्य जी अपने आश्रम में अखण्ड आनंद-समाधि में लीन थे, सहसा उनका शरीर अपूर्व सिहरन से व मस्तिष्क नीले बादलों की-सी दिव्य प्रभा से भर गया । उनके नेत्रों में एक अलौकिक गोलाकार युगलनेत्र वाली छवि प्रकट हुई जिसे देख कर उनके नेत्रों से आनंदाश्रु बहने लगे ।
मंगलाचरण क्यों किया जाता है ?
प्राय: ग्रंथों की रचना करते समय उनकी सफलतापूर्वक समाप्ति के लिए आरम्भ में कोई श्लोक, पद्य या मंत्र लिखा जाता है । इसी तरह किसी शुभ कार्य को शुरु करते समय मंगल कामना के लिए जो श्लोक, पद्य या मंत्र कहा जाता है, उसे ‘मंगलाचरण’ कहते हैं ।
भगवान श्रीकृष्ण द्वारा युधिष्ठिर को आत्म-तत्त्व का उपदेश
प्रलयकाल में समस्त जगत का संहार करके उसे अपने उदर में स्थापित कर दिव्य योग का आश्रय ले मैं एकार्णव के जल में शयन करता हूँ । एक हजार युगों तक रहने वाली ब्रह्मा की रात पूर्ण होने तक महार्णव में शयन करके उसके बाद जड़-चेतन प्राणियों की सृष्टि करता हूँ । किंतु मेरी माया से मोहित होने के कारण जीव मुझे नहीं जान पाते हैं । कहीं भी कोई भी ऐसी वस्तु नहीं है, जिसमें मेरा निवास न हो । भूत, भविष्य जो कुछ है, वह सब मैं ही हूँ । सभी मुझसे ही उत्पन्न होते हैं; फिर भी मेरी माया से मोहित होने के कारण मुझे नहीं जान पाते हैं ।