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जीव और ब्रह्म का मिलन : महारास

ब्रह्माजी ने मान लिया कि यह स्त्री-पुरुष का मिलन नहीं है; यह तो अंश और अंशी का मिलन है। श्रीकृष्ण गोपीरूप हो गए हैं और गोपियां श्रीकृष्णमय हो गयीं। कृष्णरूप (ब्रह्मरूप) हो जाने के बाद गोपी (जीव) का अस्तित्व कहां रहा? ब्रह्म से जीव का मिलन हुआ। जैसे नन्हा-सा शिशु निर्विकार-भाव से अपनी परछाई के साथ खेलता है, वैसे ही रमारमण भगवान श्रीकृष्ण ने व्रजसुन्दरियों के साथ विहार किया। न कोई जड शरीर था और न प्राकृत अंग-संग। भगवान श्रीकृष्ण की इस चिदानन्द रसमयी दिव्य क्रीडा का नाम ही रास है।

कान्हा मोरि गागर फोरि गयौ रे

भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोपी की गोरस से भरी मटकी फोड़ने की लीला और उसका भाव वर्णन

भाव, भक्ति एवं भजनपूरित एक वर्ष

जहाँ देखो वहाँ मौजूद मेरा कृष्ण प्यारा है, उसी का सब है जल्वा, जो जहाँ में आशकारा है। गुनह बख्शो, रसाई दो, बसा लो अपने कदमों...

श्रीबालकृष्ण की मानसी सेवा-पूजा विधि

ईश्वर के लिए हमारे मन में जो उत्तम भाव उठते लगते हैं वही पुष्प हैं। इन्हीं सब भावों को बार-बार भगवान के साथ जोड़ना, इसी को पुष्पांजलि कहते हैं। यही सब करते-करते भगवान में समा जाना--मानो आनन्द के समुद्र में डूब रहे हों। यही डूबना-उतरना भगवान की मानसी-सेवा-पूजा है।

नित्य पाठ के लिए भगवान श्रीकृष्ण का षोडशी स्तोत्र

जय जय श्रीराधारमण, मंगल करन कृपाल, लकुट मुकुट मुरली धरन मनमोहन गोपाल । हे वसुदेवकुमार देवकीनंदन प्यारे, गोकुल में नन्दलाल बाललीला विस्तारे।

श्रीराधा का रूप-माधुर्य

‘मेरी उन श्रीराधा के प्रेमराज्य में मलिन काम-भोग की लेशमात्र कल्पना भी नहीं है। रागरहित श्रृंगार है, मोहरहित पवित्र प्रेम है, निज-सुख-इच्छा से रहित ममता है, स्वादरहित सब खान-पान है, अभिमान से रहित अति मान है। मेरी वे साध्यस्वरूपा श्रीराधा नित्य तृप्त हैं और श्रीमाधव की पवित्रतम परमाराध्य हैं।’

बालब्रह्मचारी श्रीकृष्ण

अनेक प्रकार के रास रचाने व लीला करने वाले श्रीकृष्ण बालब्रह्मचारी और थोड़ी देर पहले ही पचासों थाल भोजन आत्मसात् कर जाने वाले दुर्वासा ऋषि सदा के निराहारी! यह कैसा आश्चर्य?

मधुराष्टक : श्रीकृष्ण स्तुति में इस पृथ्वी पर लिखा गया सबसे...

मधुराष्टक की मधुरता का वर्णन कर पाना संभव नहीं है, संभवतः श्रीकृष्ण स्तुति में इस पृथ्वी पर लिखा गया यह सबसे मधुर अष्टक है।

भगवान श्रीकृष्ण का अवतरण

‘हे त्रिलोकीनाथ! तू (अवतार लेकर) नीचे उतरता है, क्योंकि तेरा आनन्द हम पर ही निर्भर है। यदि हम न होते तो तुम्हें प्रेम का अनुभव कहां से होता? (तुम किसके साथ हिल-मिलकर बातें करते, खेलते, खाते-पीते?)’

5 Bhajan Janmashtmi pe sunne ke liye

Nand Gher Anand Bhayo(Original)- Hemant Chauhan-Shrinathji Bhajan-Nathdwara-2016