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भगवान श्रीकृष्ण की शकट भंजन लीला
इस कृष्ण लीला में यही रहस्य है कि नंद-यशोदा श्रीकृष्ण के पास रहते हैं तो कोई राक्षस नहीं आता है । नंदबाबा श्रीकृष्ण को छोड़कर मथुरा गये तो पूतना आई । यशोदा माता श्रीकृष्ण को बैलगाड़ी के नीचे सुलाकर गोपियों के स्वागत में लगती हैं और लाला को भूल जाती हैं तो शकटासुर आता है । कहने का अर्थ यही है कि जब-जब नंद-यशोदा श्रीकृष्ण से दूर हुए हैं, तब-तब राक्षस (विपत्ति) आए हैं ।
रोम रोम से श्रीकृष्ण नाम
भगवान के नाम में विलक्षण शक्ति है । जिस प्रकार किसी व्यक्ति का नाम लेने पर वही आता है; ठीक उसी तरह ‘श्रीकृष्ण’ नाम का उच्चारण करने पर वह तीर की तरह लक्ष्यभेद करता हुआ सीधे भगवान के हृदय पर प्रभाव करता है; जिसके फलस्वरूप मनुष्य श्रीकृष्ण कृपा का भाजन बनता है । जहाँ कहीं और कभी भी शुद्ध हृदय से ‘कृष्ण’ नाम का उच्चारण होता है; वहाँ-वहाँ स्वयं कृष्ण अपने को व्यक्त करते हैं ।
भगवान श्रीराधाकृष्ण की बिछुआ लीला
श्रीकृष्ण ने अपनी प्रिया श्रीराधा का चरण-स्पर्श किया । यह देख कर श्रीराधा की सभी सखियां ‘बलिहारी है बलिहार की’—इस तरह का उद् घोष करने लगीं । सारा वातावरण सखियों के परिहास से रसमय हो गया । श्रीकृष्ण ने भी लजाते हुए श्रीराधा के पैर की अंगुली में बिछुआ धारण करा दिया ।