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कर्मण्येवाधिकारस्ते : कर्मों द्वारा भगवान का पूजन
जैसे सरोवर में कमलपत्र जलराशि से सदैव ऊपर उठे हुए उससे निर्लिप्त व अछूते रहते हैं; वैसे ही कर्मयोगी मनुष्य सभी कर्मो को परमात्मा में अर्पित करने से उनके कर्मफल व पाप-पुण्य से मुक्त रहते हैं ।
ग्रह-नक्षत्र, कर्मफल और सुख-दु:ख
जीवों के कर्मों का फल देने वाले भगवान श्रीविष्णु ही ग्रहरूप में रहते हैं । सूर्य का रामावतार, चन्द्रमा का कृष्णावतार, मंगल का नृसिंहावतार, बुध का बुद्धावतार, बृहस्पति का वामनावतार, शुक्र का परशुरामावतार, शनि का कूर्मावतार, राहु का वराहावतार और केतु का मीनावतार है ।