Tag: jagannath
भगवान जगन्नाथ जी का स्नान यात्रा महोत्सव
पुरुषोत्तम क्षेत्र (पुरी) में काष्ठ का शरीर धारण कर निवास करने वाले भगवान जगन्नाथ जी कलिकाल के साक्षात् परब्रह्म परमात्मा हैं; लेकिन वे सुबह से लेकर रात तक और ऋतुओं के अनुसार एक आदर्श गृहस्थ की तरह अनेक लीलाएं करते हैं । वे खाते-पीते हैं, गरमी में जलविहार करते हैं, स्नान करते हैं, उन्हें ज्वर भी आता है, औषधियों के साथ काढ़ा पीते हैं ।
भगवान जगन्नाथजी का नवकलेवर महोत्सव
जिस साल आषाढ़ महीने में अधिक मास (पुरुषोत्तम मास) या मल मास होता है अर्थात् जिस साल आषाढ़ के दो महीने होते हैं, उस वर्ष भगवान जगन्नाथ का ‘नव कलेवर समारोह’ मनाया जाता है । प्राय: बारह वर्ष के अंतराल में दो आषाढ़ पड़ते हैं; तब भगवान जगन्नाथ नव कलेवर धारण करते हैं ।
भक्त माधवदास जिनके सेवक बने भगवान जगन्नाथ
भगवान में प्रेम वह मादक मदिरा है, जिसने भी इसे चढ़ा लिया वह मस्त हो गया । उस मतवाले की बराबरी कोई नहीं कर सकता । संसार के शहंशाह भी उसके गुलाम हैं । त्रिलोकी का राज्य उसके लिए तिनके के समान है । वह तो सदा अपनी मस्ती में ही मस्त रहता है । भगवान के प्रेमी-भक्त को वे सारे पदार्थ और व्यक्ति बाधक लगने लगते हैं, जो भगवान से जुड़े नहीं हैं ।
भगवान जगन्नाथजी का रथयात्रा उत्सव क्यों मनाया जाता है ?
भगवान जगन्नाथजी मानव-धर्म, मानव-संस्कृति और विराट विश्व-चेतना के साक्षात् मूर्तिमान रूप हैं । समस्त मानव जाति को दर्शन देने, दु:खी मनुष्यों का कल्याण करने व अज्ञानी और अविश्वासी लोगों का भगवान पर विश्वास बनाये रखने के लिए भगवान वर्ष में एक बार अपने साथ बड़े भाई और बहिन सुभद्रा को लेकर रथयात्रा करते हैं ।
जगन्नाथजी का महाप्रसाद अपवित्र और जूठा क्यों नहीं माना जाता है...
एक बार महाप्रभु श्रीवल्लभाचार्यजी पुरी आये तो प्रसाद में उनकी निष्ठा की परीक्षा करने के लिए किसी ने एकादशी के दिन मन्दिर में ही महाप्रसाद दे दिया । श्रीवल्लभाचार्यजी ने महाप्रसाद हाथ में लेकर उसका स्तवन करना शुरु कर दिया और एकादशी के पूरे दिन तथा रात्रि में महाप्रसाद का स्तवन करते रहे । दूसरे दिन द्वादशी में स्तवन समाप्त करके उन्होंने प्रसाद ग्रहण किया ।
गीता के अनुसार कौन है सर्वश्रेष्ठ भक्त
मैं अपने भक्तों के कष्ट को सहन नहीं कर सकता । अपने सिवा मैं और किसी को भक्त की सेवा के योग्य नहीं समझता । इसलिए मैंने तुम्हारी सेवा की है । तुम जानते हो कि प्रारब्धकर्म भोगे बिना नष्ट नहीं होते हैं— यह मेरा नियम है और मैं यह क्यों तोडूं ।
भगवान जगन्नाथ के अद्भुत स्वरूप का रहस्य
श्रीकृष्णतेज से उत्पन्न इन्द्रनीलमणि श्रीजगन्नाथ विग्रह है। अत: वह साक्षात् वासुदेव कृष्ण हैं। नवकलेवर उत्सव में भगवान जगन्नाथ की दारु मूर्ति के अंदर कृष्णसत्ता पूजन के रूप में इन्द्रनीलमणि मूर्ति प्रतिष्ठित की जाती है।