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श्रीगणेश के सिर पर हाथी का ही मस्तक क्यों लगाया गया...
भगवान शंकर पार्वती जी को श्रीगणेश के स्वरूप में नर-गज संयोजन का उद्देश्य बताते हुए कहते हैं—हाथी और मनुष्य की आयु समान (१२० वर्ष) निश्चित की गई है । उसी को समझाने के लिए तुम्हारे पुत्र ने यह रूप धारण किया है । अत: मानव को भी यह आयु प्राप्त करने का यत्न करना चाहिए । संसार में हाथी की पूजा करने वाला मनुष्य धन्य माना जाता है और जिसे हाथी स्वयं अपनी सूंड से सिर पर चढ़ाये, उसकी धन्यता का तो कहना ही क्या ? श्रीगणेश की आराधना से भी मनुष्य सब प्रकार की धन्यता प्राप्त कर लेता है ।
भगवान श्रीकृष्ण के चरण-कमल
भगवान के चरण-चिह्नों का परिचय एवं पुष्टिमार्ग के आराध्य श्रीनाथजी के चरण-कमल
भगवान के चरण-कमल बड़े ही दुर्लभ हैं और सेवा के लिए उनकी प्राप्ति होना और भी कठिन है। लक्ष्मीजी भगवान के चरण-कमलों को ही भजती हैं अत: नवधा भक्ति में ‘पाद सेवन’ भक्ति लक्ष्मीजी को सिद्ध है।
भगवान श्रीकृष्ण द्वारा पूतना को सद्गति प्रदान करना
पूतना के पूर्वजन्म की कथा, एवं पूतना-वध की कथा | आखिर पूतना के आते ही भगवान ने अपने नेत्र बंद क्यों किए?
पूतना जन्म से राक्षसी थी, कर्म था शिशुओं की हत्या करना और आहार था बालकों का रक्त। वह श्रीकृष्ण के पास कपटवेश बनाकर मारने गयी थी; किन्तु कैसे भी गई; किसी भी भाव से गई; नन्हें बालकृष्ण के मुख में उसने अपना स्तन दिया इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण ने उसे माता की गति दी। उसका कपटी राक्षसी शरीर दिव्य गंध से पूर्ण हो गया। श्रीकृष्ण जिसे छू लेते हैं उसका लौकिक शरीर फिर अलौकिक, दिव्य, चिन्मय बन जाता है। श्रीकृष्ण की मार में भी प्यार है।
माता यशोदा का श्रीकृष्ण-प्रेम
माता यशोदा के सौभाग्य का वर्णन कौन कर सकता है, जिनके स्तनों को साक्षात् ब्रह्माण्डनायक ने पान किया है। भगवान ने अपने भक्तों की इच्छा के अनुरूप अनेक रूप धारण किए हैं, परन्तु उनको ऊखल से बांधने का या छड़ी लेकर ताड़ना देने का सौभाग्य केवल महाभाग्यशाली माता यशोदा को ही प्राप्त हुआ है। ऐसा सुख, ऐसा वात्सल्य-आनन्द संसार में किसी को प्राप्त न हुआ है, न होगा। श्रीशुकदेवजी तो श्रीयशोदाजी को वात्सल्य-साम्राज्य के सिंहासन पर बिठाकर उनको दण्डवत् करते हुए कहते हैं--’देवी ! तुम्हारे जैसा कोई नहीं है। तुम्हारी गोद में तो सम्पूर्ण फलों-का-फल नन्हा-सा शिशु बनकर बैठा है।’
गणेश चतुर्थी पर विशेष
गाइये गनपति जगबंदन, संकर-सुवन भवानी-नंदन।
सिद्धि-सदन गज-बदन विनायक, कृपा-सिन्धु सुन्दर सब लायक।
मोदक प्रिय मुद-मंगल दाता, विद्या-बारिधि बुद्धि-बिधाता।।
धन्य धन्य गणेशजी! सारा संसार तुम्हारी वन्दना...
श्रीराधा (राधाष्टमी स्पेशल)
जयति श्री राधिके सकल सुखसाधिके,
तरूनिमनि-नित्य नवतन किसोरी ।
आज राधाष्टमी के पावन अवसर पर मैं अपना दूसरा ब्लॉग भी श्रीराधाजी को समर्पित करती हूँ ।...