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निर्जला एकादशी : विशेष पूजा विधि एवं कथा
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी ‘निर्जला एकादशी’ के नाम से जानी जाती है । अन्य महीनों की एकादशी को फलाहार किया जाता है; परंतु जैसा कि इस एकादशी के नाम से स्पष्ट है, इसमें फल तो क्या जल भी ग्रहण नहीं किया जाता है । इसलिए गर्मी के मौसम में यह एकादशी बड़े तप व कष्ट से की जाती है । यही कारण है कि इसका सभी एकादशियों से अधिक महत्व है ।
एकादशी व्रत की विधि व नियम
पुण्य का फल सुख और पाप का फल दु:ख होता है । मनुष्य को सुख चाहिए लेकिन कष्टरहित । यह कैसे संभव है ? सुख दिखता है, पुण्य दिखता नहीं, दु:ख दिखता है किन्तु पाप दिखता नहीं । यदि मानव को कष्ट रहित जीवन चाहिए तो व्रत-नियम का पालन अनिवार्य है । व्रत-नियम के पालन से श्रीहरि को प्रसन्नता होती है, और श्रीहरि की प्रसन्नता से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है ।
भगवान विष्णु द्वारा नामदेवजी के एकादशी-व्रत की परीक्षा
यदि मनुष्य को श्रीहरि की प्रसन्नता व सांनिध्य चाहिए तो व्रत के नियम का पालन करना अनिवार्य है । एकादशी-व्रत के नियमानुसार इस दिन अन्न खाना निषिद्ध है, विशेष रूप से चावल (चावल से बना पोहा, लाई आदि) नहीं खाना चाहिए । एकादशी को व्रत करके रात्रि में जागरण व कीर्तन करने का विधान है; जिससे व्रती के सभी पाप भस्म होकर विष्णुलोक की प्राप्ति होती है ।
एकादशी व्रत को सभी व्रतों का राजा क्यों कहते हैं ?
जैसे देवताओं में भगवान विष्णु, प्रकाश-तत्त्वों में सूर्य, नदियों में गंगा प्रमुख हैं वैसे ही व्रतों में सर्वश्रेष्ठ व्रत एकादशी-व्रत को माना गया है । इस तिथि को जो कुछ दान किया जाता है, भजन-पूजन किया जाता है, वह सब भगवान माधव के पूजित होने पर पूर्णता को प्राप्त होता है ।