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वाल्मीकीय रामायण की ‘राम गीता’
जो रात बीत जाती है, वह लौट कर फिर नहीं आती, जैसे यमुना जल से भरे हुए समुद्र की ओर जाती ही है, उधर से लौटती नहीं । दिन-रात लगातार बीत रहे हैं और इस संसार में सभी प्राणियों की आयु का तीव्र गति से नाश कर रहे हैं; ठीक वैसे ही, जैसे सूर्य की किरणें ग्रीष्म ऋतु में जल को तेजी से सोखती रहती हैं । तुम अपने ही लिए चिन्ता करो, दूसरों के लिए क्यों बार-बार शोक करते हो ?
राम जी की चरण-पादुकाएं
वन में राम जी के तपस्वी जीवन की तुलना में भरत जी का तपस्वी जीवन अधिक श्रेष्ठ है; क्योंकि वन में रह कर तप करना बहुत कठिन नहीं है । राजमहल में रह कर तप करने वाला सच्चा ब्रह्मनिष्ठ साधु है । सब प्रकार की अनुकूलता हो, विषयभोग के साधन हों फिर मन विषयों में न लगे; यही सच्ची साधुता है, सच्चा वैराग्य है । भिखारी को खाने को न मिले और फिर वह उपवास करे तो उसका कोई विशेष अर्थ नहीं है । सब कुछ होने पर भी मन किसी विषय में न जाए, यही सच्चा वैराग्य है ।