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जलधारा, पुष्पों व धान्यों से शिवपूजा का फल
भगवान शिव ने अपने कण्ठ में कालकूट विष को धारण कर रखा है। उस विषाग्नि को शान्त करने के लिए उनके मस्तक पर गंगा और चन्द्रकला दो फायरब्रिगेड का कार्य करते हैं। उसी विषाग्नि की तीव्रता को शान्त करने के लिए भगवान शिव का शीतल वस्तुओं से अभिषेक किया जाता है। जैसे--कच्चा दूध, गंगाजल, पंचामृत, गुलाबजल, इक्षुरस (गन्ने का रस), चंदन मिश्रित जल, कुश-पुष्पयुक्त जल, सुवर्ण एवं रत्नयुक्त जल (रत्नोदक) व नारियल का जल आदि।
शिवपूजन और बिल्वपत्र
विष्णुप्रिया लक्ष्मीजी के वक्ष:स्थल से प्रादुर्भूत हुआ बिल्ववृक्ष, बिल्वपत्र से ही शिवपूजन की पूर्णता,
मनोकामनापूर्ति, संकटनाश व सुख-सम्पत्ति के लिए इस मन्त्र के साथ चढ़ाएं बेलपत्र :
भालचन्द्र मद भरे चक्ष, शिव कैलास निवास, भूतनाथ जय उमापति पूरी मो अभिलाष।
शिव समान दाता नहीं, विपति विदारन हार, लज्जा मेरी राखियो सुख सम्पत्ति दातार।।
दरिद्रता और दु:ख का नाश करने वाला दारिद्रयदहन शिव स्तोत्र
दारिद्रयदहन का अर्थ है दरिद्रता का नाश। दरिद्रता केवल भौतिक ही नहीं, मानसिक भी होती है। आज के कलिकाल में अधिकांश मनुष्य मानसिक दरिद्रता जैसी नकारात्मक भावनाओं--काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद-अहंकार, स्वार्थ, ईर्ष्या-द्वेष, भय आदि से पीड़ित हैं। भगवान शिव की उपासना मनुष्य को भौतिक सुख-समृद्धि के साथ ज्ञान प्रदानकर मन से भी अमीर बना देती है अर्थात् स्वस्थ मन प्रदान करती है क्योंकि भगवान शिव के मस्तक पर चन्द्रमा है और चन्द्रमा मन का कारक है। ‘स्वस्थ मन तो स्वस्थ तन’--यही समस्त सुखों का आधार और दुखों के नाश का उपाय है।
भगवान शिव के १०८ नामों का स्तोत्र : शिवाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम्
शिवाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम् व पाठ का फल
भगवान शिव के विभिन्न नाम और उनसे सम्बन्धित कथाएं (Part-II)
मंगलमूर्ति महादेव अद्भुत, अक्षत, अविनाशी, अप्रमेय, अजन्मा, निर्मल, मायारहित, मंगल के निकेतन हैं। भगवान शिव के अनन्त नाम और उनकी महिमा कहां तक कही जाय? अनन्त का अंत कैसे जाना जाए?
भगवान शिव के विभिन्न नाम और उनसे सम्बन्धित कथाएं (Part I)
शिव ही समस्त प्राणियों के अन्तिम विश्राम के स्थान हैं। संसार के क्लेशों, पाप-तापों से व्याकुल जीव के विश्राम के लिए भगवान सर्वसंहार करके प्रलय करते हैं। यह संहार भी भगवान की कृपा है। महाप्रलय में भगवान सबको अपने स्वरूप में लीनकर परम शान्ति प्रदान करते हैं। इसीलिए भगवान का नाम केवल ‘शिव’ ही नहीं ‘सदाशिव’ है।
देवाधिदेव भगवान शिव और जगदम्बा पार्वती का विवाहोत्सव
पर्वतराज हिमालय ने सब प्रकार की लौकिक-वैदिक विधियों को सम्पन्न करके हाथ में जल और कुश लेकर कन्यादान का संकल्प किया। पर्वतराज हिमालय ने हंसकर शिवजी से कहा--’शम्भो! आप अपने गोत्र का परिचय दें। प्रवर, कुल, नाम, वेद और शाखा का प्रतिपादन करें।’ नाम पूछे जाने पर वर का नाम ‘शिव’ बताया गया, पर इनके पिता का नाम पूछने पर सब चुप हो गए। कुछ समय सोचने के बाद ब्रह्माजी ने कहा कि इनका पिता मैं ‘ब्रह्मा’ हूँ और पितामह का नाम पूछने पर ब्रह्माजी ने ‘विष्णु’ बताया। इसके बाद प्रपितामह का नाम पूछने पर सारी सभा अत्यन्त मौन रही। अंत में मौन भंग करते हुए शिवजी स्वयं बोले कि सबके प्रपितामह तो हम ही हैं।
भगवान कृष्ण के बालरूप के दर्शन के लिए शंकरजी की जोगी...
भगवान शिव के इष्ट हैं विष्णु। जब विष्णुजी ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया तो अपने इष्ट के बाल रूप के दर्शन और उनकी लीला को देखने के लिए शिवजी ने जोगी रूप बनाया।