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‘राम’ नाम लिखे तुलसीपत्र की महिमा
सबका पालनहार एक ‘राम’ ही है । संसारी प्राणी तो दान ही दे सकते हैं; परन्तु मनुष्य की जन्म-जन्म की भूख-प्यास नहीं मिटा सकते हैं । वह तो उस दाता के देने से ही मिटेगी । इसलिए मांगना है तो मनुष्य को भगवान से ही मांगना चाहिए, अन्य किसी से मांगने पर संसार के अभाव मिटने वाले नहीं हैं । लेकिन मनुष्य सोचता है कि मैं कमाता हूँ, मैं ही सारे परिवार का पेट भरता हूँ । यह सोचना गलत है । इसलिए देने वाले के नेत्र सदैव नीचे और लेने वाले के ऊपर होते हैं ।
राम हैं वैद्य और राम-नाम है रामबाण औषधि
त्रेता में केवल एक रावण था, लेकिन कलियुग में अनगिनत बीमारियां रूपी रावण हैं । उन रावणों पर विजय पाने के लिए राम की शक्ति की आवश्यकता है और वह शक्ति ‘रामनाम’ में निहित है क्योंकि त्रेता में स्वधामगमन से पहले श्रीराम ने अपनी सारी शक्तियां अपने नाम में संन्निहित कर दी थीं ।