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भगवान का भोग ग्रहण करना
भगवान के पूजन में विधि, मंत्र और सामग्री उतनी महत्वपूर्ण नहीं है, जितना की भाव । भक्त को जो कुछ भी सरलता से प्राप्त हो जाए, वही भक्तिपूर्वक सच्चे हृदय से अर्पण कर देने से भगवान संतुष्ट हो जाते हैं । चाहे कितनी भी उत्तम-से-उत्तम वस्तु भगवान को अर्पण की जाए, भाव बिना वे उसे स्वीकार नहीं करते हैं ।
एक यशोदा कलियुग की
मां लीलावती और उसके बालकृष्ण दोनों ही लाड़ लड़ाते हुए एक-दूसरे की इच्छा पूरी करने लगे । लीलावती ने सदा-सदा के लिए अपने बालकृष्ण को पा लिया और बालकृष्ण ने भी उसका दुग्धपान कर उसे कलियुग में दूसरी यशोदा मां का दर्जा दे दिया ।