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भगवान शिव के पंचमुख स्वरूप का क्या है रहस्य ?

जगत के कल्याण की कामना से भगवान सदाशिव के विभिन्न कल्पों में अनेक अवतार हुए जिनमें उनके सद्योजात, वामदेव, तत्पुरुष, अघोर और ईशान अवतार प्रमुख हैं । ये ही भगवान शिव की पांच विशिष्ट मूर्तियां हैं ।

दु:ख, दुर्भाग्य व दरिद्रता नाशक भगवान शिव का प्रदोष स्तोत्र

दरिद्रता और ऋण के भार से दु:खी व संसार की पीड़ा से व्यथित मनुष्यों के लिए प्रदोष पूजा व व्रत पार लगाने वाली नौका के समान है । स्कन्दपुराण के अनुसार जो लोग प्रदोष काल में भक्तिपूर्वक भगवान शिव की पूजा करते हैं, उन्हें धन-धान्य, स्त्री-पुत्र व सुख-सौभाग्य की प्राप्ति और उनकी हर प्रकार की उन्नति होती है ।

शिवलिंग पर बने त्रिपुण्ड्र की तीन आड़ी रेखाओं का क्या है...

शैव परम्परा का तिलक है त्रिपुण्ड्र । यह कितना बड़ा होना चाहिए ? कैसे लगाना चाहिए ? त्रिपुण्ड्र की तीनों रेखाओं का क्या रहस्य है ?

भगवान को पवित्रा क्यों धारण कराया जाता है ?

श्रावण शुक्ल एकादशी पवित्रा और पुत्रदा एकादशी के नाम से जानी जाती है । इस दिन भगवान को पवित्रा या पवित्रक अर्पण किया जाता है । वर्ष में एक बार किया गया पवित्रारोपण पूरे वर्ष भर की हुई श्रीहरि की पूजा का फल देने वाला है ।

मार्कण्डेयजी को अमरत्व देने वाला भगवान शिव का मृत्युंजय स्तोत्र

भगवान शंकर की कृपा से मार्कण्डेयजी ने मृत्यु पर विजय और असीम आयु पाई । भगवान शंकर ने उन्हें कल्प के अंत तक अमर रहने और पुराण के आचार्य होने का वरदान दिया । मार्कण्डेयजी ने मार्कण्डेयपुराण का उपदेश किया और बहुत से प्रलय के दृश्य देखे हैं ।

भगवान शिव ने ‘राम-नाम’ कण्ठ में क्यों धारण किया है ?

शिवजी ने देवता, दैत्य और ऋषि-मुनियों—प्रत्येक को दस-दस अक्षर दे दिए । तीस अक्षर बंट गए और दो अक्षर शेष रह गए । तब भगवान शिव ने देवता, दैत्य और ऋषियों से कहा कि मैं ये दो अक्षर किसी को भी नहीं दूंगा । इन्हें में अपने कण्ठ में रखूंगा । ये दो अक्षर ‘रा’ और ‘म’ अर्थात् ‘राम-नाम’ हैं ।

भगवान शिव मस्तक पर चन्द्रमा और गले में मुण्डमाला क्यों धारण...

भगवान शिव के चन्द्रकला व मुण्डमाला धारण करने का गूढ़ रहस्य है । चन्द्रकला धारण करने का कारण है कि उनके ललाट की ऊष्मा, जो त्रिलोकी को भस्म करने में सक्षम हैं, उन्हें पीड़ित न करे । शिव का मुण्डमाल मरणशील प्राणी को सदैव मृत्यु का स्मरण कराता है जिससे वह दुष्कर्मों से दूर रहे।

पार्वती को क्यों करना पड़ा शिव को दान

पार्वतीजी सोचने लगीं–‘मैंने यह कैसी मूर्खता की, पुत्र के लिए एक वर्ष तक पुण्यक व्रत करने में इतना कष्ट भोगा पर फल क्या मिला? पुत्र तो मिला ही नहीं, पति को भी खो बैठी। अब पति के बिना पुत्र कैसे होगा?’

देवताओं की गणेश आराधना

हर समस्या का हल है गणपति के पास

भगवान शंकर, शुक्राचार्य और मृतसंजीवनी विद्या

दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य, भृगुपुत्र कवि का शुक्राचार्य नाम क्यों पड़ा?, शुक्राचार्य द्वारा कहे गए भगवान शंकर के १०८ नाम, भगवान शंकर द्वारा शुक्राचार्य को मृतसंजीवनी विद्या देना, शुक्रेश्वर शिवलिंग