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भगवान श्रीकृष्ण की विश्वरूप-दर्शन लीला

भगवान श्रीकृष्ण ने अपना विश्वरूप-दर्शन कराकर अर्जुन को यह शिक्षा दी कि मैं ही सब कुछ हूँ, संसार में सब मेरा ही स्वरूप है । मेरे अतिरिक्त जो भी दिखाई देता है, वास्तव में वह भ्रम ही है । अनन्य भक्ति द्वारा ही मैं प्राप्य हूँ; इसलिए जो मेरे लिए कर्म करने वाला, मेरे परायण, मेरा भक्त, अनासक्त तथा सब प्राणियों में वैर रहित होता है; वह ही मुझे प्राप्त होता है ।

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत

स्वामी रामकृष्ण परमहंसजी ‘टाका माटी’ के खेल का अभ्यास किया करते थे । वे एक हाथ में ‘टाका’ यानी सिक्का और दूसरे में मिट्टी का ढेला लेते और ‘टाका माटी’, ‘टाका माटी’ कहते हुए उन्हें दूर फेंक देते थे । ऐसा अभ्यास वे पैसे के प्रलोभन से बचने के लिए अर्थात् पैसा और मिट्टी एक बराबर समझने के लिए करते थे ।

विश्व-रंगमंच के सूत्रधार श्रीकृष्ण

गांधारी की तेजदृष्टि से वज्र-सी देह होने पर भी क्यों मारा गया दुर्योधन?

क्यों भक्त की चोट भी सहते हैं भगवान

महाभारत-युद्ध में किसको छूते ही वैष्णवास्त्र बन गया वैजयन्तीमाला