गौरी मे प्रीयतां नित्यं अघनाशाय मंगला।
सौभाग्यायास्तु ललिता भवानी सर्वसिद्धये।। (उत्तरपर्व २७।१९)
अर्थ–‘गौरी नित्य मुझ पर प्रसन्न रहें, मंगला मेरे पापों का विनाश करें। ललिता मुझे सौभाग्य प्रदान करें और भवानी मुझे सब सिद्धियां प्रदान करें।’
देवाधिदेव भगवान शंकर की अर्धांगिनी शिवप्रिया पार्वती तीनों लोकों की सौभाग्यरूपा हैं। दक्ष प्रजापति ने सौभाग्यरस का पान किया था; उसके अंश से एक कन्या का जन्म हुआ। सभी लोकों में उस कन्या का सौन्दर्य अत्यधिक था, इसी से इनका नाम ‘सती’ हुआ। रूप में अतिशय माधुर्य और लालित्य होने के कारण ये ‘ललिता’, पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने से ‘पार्वती’ व अत्यन्त गौरवर्ण होने से ‘गौरी’ कहलाईं। त्रैलोक्यसुन्दरी इस कन्या का विवाह भगवान शंकर के साथ हुआ।
श्रावणमास में केवल भगवान शिव की पूजा ही नहीं वरन् शिव की अर्द्धांगिनी माता पार्वती की पूजा भी परम फलदायक होती है। शिववामांगी पार्वती सभी स्त्रियों की स्वामिनी हैं। संसार में स्त्रियां विभिन्न कामनाओं की पूर्ति के लिए, शीघ्र विवाह के लिए, सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए व अमंगलों के नाश के लिए शिवप्रिया की ही शरण ग्रहण करती हैं; क्योंकि उनकी पतिभक्ति की कोई समता नहीं है। दाम्पत्यप्रेम का स्रोत भगवान शिव और पार्वती में ही निहित है। सीताजी व रुक्मिणीजी ने भी मनचाहा पति प्राप्त करने के लिए गौरीपूजा की थी।
शिवप्रिया पार्वतीजी की जया और विजया नाम की दो सखियां थीं। एक बार मुनि-कन्याओं ने उन दोनों से पूछा कि आप दोनों तो शिवा के साथ सदा निवास करती हैं, आप यह बताएं कि किन उपचारों और मन्त्रों से पूजा करने से वे प्रसन्न होती हैं। पुराणों में बताया गया मां पार्वती की पूजा का सुन्दर विधान यहां दिया जा रहा है–
सौभाग्य देने वाला शिवप्रिया पार्वती की पूजा का विधान
माता पार्वती की पूजा के लिए स्नान के बाद सुन्दर वस्त्र व सौभाग्यचिह्न धारण करने चाहिए। पूजा से पहले ध्यान करें–
‘विश्व जिनका शरीर है, जो विश्व के मुख, पाद और हस्त स्वरूप तथा मंगलदायक हैं, जिनके मुख पर प्रसन्नता झलकती रहती है, उन पार्वती और परमेश्वर की मैं वन्दना करता हूँ।’
पूजा करते समय ‘गौरी मे प्रीयताम्’ इस मन्त्र को बोलते रहें। शिवप्रिया पार्वती को पंचामृत अथवा केवल दूध से या चंदनमिश्रित जल से स्नान कराएं। कपूर-केसर मिश्रित चंदन व रोली लगाएं व अक्षत चढ़ाएं। मां गौरी की मांग में सिंदूर लगाए क्योंकि पार्वतीजी को सिंदूर बहुत पसन्द है। करवीर का पुष्प पार्वतीजी को बहुत पसन्द है। जपाकुसुम, गुलाब, कनेर, सुगन्धित श्वेतपुष्प, मालती, कमल आदि तरह-तरह के पुष्पों से व बिल्वपत्र से व धूप-दीप से उनकी अर्चना करें। मां को घी से बनी वस्तुओं का नैवेद्य (लड्डू, बर्फी, पुए आदि) व ऋतुफल निवेदित करें। इस प्रकार भक्तिपूर्वक अपनी शक्ति के अनुसार शिवप्रिया पार्वती की पूजा करें। नृत्य से भगवान शंकर, गीत से शिवप्रिया पार्वती और भक्ति से सभी देवता प्रसन्न होते हैं।
शिवप्रिया पार्वती की चरण से लेकर मस्तक तक विशेष अंग-पूजा
स्त्रियों को सौभाग्य देने वाला, दाम्पत्य-जीवन में आने वाली बाधाओं और विवाह आदि की समस्याओं को दूर करने वाला मां गौरी की अंग-पूजा का विधान अत्यन्त फलदायी है। इसके लिए साबुत गुलाब, जपाकुसुम, कनेर, कमल के या अन्य सुन्दर सुगन्धित पुष्प या अखंड बिल्वपत्र ले लें। हरेक मन्त्र के साथ वह पुष्प मां के उस अंग से छुआकर चरणों में चढ़ा दें। मां पार्वती की नखशिख पूजा का विधान इस प्रकार है–
☘️ ‘वरदायै नम:’ कहकर दोनों चरणों की पूजा करें।
☘️ ‘श्रियै नम:’ कहकर दोनों टखनों की पूजा करें।
☘️ ‘अशोकायै नम:’ कहकर दोनों पिंडलियों की पूजा करें।
☘️ ‘भवान्यै नम:’ कहकर दोनों घुटनों की पूजा करें।
☘️ ‘कामदेव्यै नम:’ कहकर कमर की पूजा करें।
☘️ ‘पद्मोद्भवायै नम:’ कहकर पेट की पूजा करें।
☘️ ‘कामश्रियै नम:’ कहकर वक्ष:स्थल की पूजा करें।
☘️ ‘रम्भायै नम:’ कहकर हृदय की पूजा करें।
☘️ ‘सौभाग्यवासिन्यै नम:’ कहकर हाथों की पूजा करें।
☘️ ‘शशिमुखश्रियै नम:’ कहकर मुख की पूजा करें।
☘️ ‘कान्त्यै नम:’ कहकर केशों की पूजा करें।
☘️ ‘पार्वत्यै नम:’ कहकर नासिका की पूजा करें।
☘️ ‘सुनेत्रायै नम:’ कहकर दोनों नेत्रों की पूजा करें।
☘️ ‘कात्यायन्यै नम:’ कहकर उनके मस्तक की पूजा करें।
इसके बाद ‘ललितायै नम:’, ‘गौर्यै नम:’ या ‘उमामहेश्वरौ प्रीयेताम्’ कहकर मां के चरणों में बारम्बार प्रणाम करें। अंत में ‘भवानी प्रीयताम्’ कहकर क्षमा मांगे।
मां पार्वती के आठ नाम देते हैं सौभाग्य का वरदान
१. पार्वती,
२. ललिता,
३. गौरी,
४. गान्धारी,
५. शांकरी,
६. शिवा,
७. उमा
८. सती
ये आठ नाम अत्यन्त सौभाग्यदायक हैं। पूजा के समय या सुबह-सुबह इनका उच्चारण किया जाए तो शिवप्रिया पार्वती रूप, सौभाग्य, दाम्पत्य-सुख, संतान, धन व ऐश्वर्य आदि की सभी कामनाएं पूरी कर देती हैं व उमामहेश्वर की पूजा करने वालों को कभी शोक नहीं होता है।
सौभाग्य व आरोग्य प्राप्ति का मन्त्र
यदि इस मन्त्र का अपनी सुविधानुसार ११, २१, या १०८ बार (एक माला का) जप कर लिया जाए तो मनुष्य सुख-सौभाग्य व आरोग्य प्राप्त करता है–
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।
अर्थात्–मां मुझे सौभाग्य और आरोग्य दो। परम सुख दो, रूप दो, जय दो, यश दो और मेरे काम-क्रोध्र आदि शत्रुओं का नाश करो।।
दाम्पत्य जीवन की बाधाओं को दूर करने के लिए मन्त्र
यथा न देवि देवेशस्त्वां परित्यज्य गच्छति।
तथा मां सम्परित्यज्य पतिर्नान्यत्र गच्छतु।। (उत्तरपर्व २६।३०)
अर्थ–’देवि! जिस प्रकार देवाधिदेव भगवान महादेव आपको छोड़कर अन्य कहीं नहीं जाते, उसी प्रकार मेरे पति मुझे छोड़कर कहीं न जाएं।’
इस प्रकार भगवान शिव व शिवप्रिया पार्वतीजी की पूजा करने से पति-पत्नी बहुत समय तक सांसारिक सुखों को भोग कर अंत में शिवलोक को प्राप्त करते हैं।
भगवान शिव अपने भक्तों से बहुत ही जल्दी प्रसन्न हो जाते है। जानिए अपनी राशिनुसार कैसे करें भगवान भोले नाथ की भक्ति जिससे उनकी कृपा से सभी मनवाँछित फल प्राप्त हो।
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