भगवान शंकर ने ली श्रीराम की मर्यादा की परीक्षा
श्रीराम ने कहा—‘यद्यपि आपके पास जो चीजें हैं (विष का भोजन, विषधर सर्प, गजचर्म, बूढ़ा बैल, भूत-प्रेत पिशाच) वे हमारे किसी काम की नहीं हैं, इसलिए आप अपने चरणों की भक्ति दें और मेरी सभा में कथा सुनाया करें ।’
भगवान शिव के पार्थिव पूजन की सरल विधि
कलियुग में पार्थिव शिवलिंगों की पूजा करोड़ों यज्ञों का फल देने वाली है । भगवान शिव का किसी पवित्र स्थान पर किया गया पार्थिव पूजन भोग और मोक्ष दोनों देने वाला है । पार्थिव पूजन करने का अधिकार स्त्री व सभी जातियों के लोगों को है ।
मार्कण्डेयजी को अमरत्व देने वाला भगवान शिव का मृत्युंजय स्तोत्र
भगवान शंकर की कृपा से मार्कण्डेयजी ने मृत्यु पर विजय और असीम आयु पाई । भगवान शंकर ने उन्हें कल्प के अंत तक अमर रहने और पुराण के आचार्य होने का वरदान दिया । मार्कण्डेयजी ने मार्कण्डेयपुराण का उपदेश किया और बहुत से प्रलय के दृश्य देखे हैं ।
भगवान शिव के पूजन के लिए स्तुति एवं प्रार्थनाएं
आज की भागदौड़ भरी जिन्दगी में यदि भगवान शिव की पूजा के लिए समय न निकाल पाएं तो केवल मन के भावों को शब्दों में व्यक्त करके भी भगवान आशुतोष शिव को प्रसन्न किया जा सकता है । जानें, भगवान शिव की कुछ स्तुतियां ।
कर्मों की गति न्यारी : जुआरी बन गया त्रिलोक पति
यमराज सोचने लगे—‘अब यह नरक नहीं जायगा, अब तो यह इन्द्र ही होगा क्योंकि इस बार तो इसने विधिवत् पूरा इन्द्रलोक ही दान कर दिया है ।’ उसी पुण्य के प्रभाव से वही जुआरी अगले जन्म में महान भक्त प्रह्लाद का पौत्र राजा बलि हुआ ।
भगवान शिव ने ‘राम-नाम’ कण्ठ में क्यों धारण किया है ?
शिवजी ने देवता, दैत्य और ऋषि-मुनियों—प्रत्येक को दस-दस अक्षर दे दिए । तीस अक्षर बंट गए और दो अक्षर शेष रह गए । तब भगवान शिव ने देवता, दैत्य और ऋषियों से कहा कि मैं ये दो अक्षर किसी को भी नहीं दूंगा । इन्हें में अपने कण्ठ में रखूंगा । ये दो अक्षर ‘रा’ और ‘म’ अर्थात् ‘राम-नाम’ हैं ।
गंगास्नान करने पर भी क्यों नहीं मिटते पाप ?
कभी-कभी हमारे मन में शंका होती है कि हमने अनेक बार गंगाजी में स्नान कर लिया और वर्षों से गंगाजल का सेवन भी कर रहे हैं फिर भी हमारे दु:ख, चिन्ता, तनाव, भय, क्लेश और मन के संताप क्यों नहीं मिटे ? हमारे जीवन में शान्ति क्यों नहीं है ? भक्ति कथा
अक्षय फल देने वाली तिथि है सोमवती अमावस्या
यदि अमावस्या भगवान शिव को अति प्रिय सोमवार के दिन हो तो उसे ‘सोमवती अमावस्या’ या ‘सोमोती मावस’ कहते हैं । इस दिन किए गए छोटे-छोटे पुण्य-कार्यों से भगवान शिव की असीम कृपा प्राप्त होती है और मनुष्य का भाग्योदय होकर दु:ख के बादल सुख की वर्षा में बदल जाते हैं ।
केदारनाथ जहां आज भी इन्द्र नित्य शिवपूजन के लिए आते हैं
इन्द्र ने कहा—‘भगवन् ! मैं प्रतिदिन स्वर्ग से यहां आकर आपकी पूजा करुंगा और इस कुण्ड का जल भी पीऊंगा । आपने महिष के रूप में यहां आकर ‘के दारयामि’ कहा है, इसलिए आप केदार नाम से प्रसिद्ध होंगे ।’
भगवान शिव मस्तक पर चन्द्रमा और गले में मुण्डमाला क्यों धारण...
भगवान शिव के चन्द्रकला व मुण्डमाला धारण करने का गूढ़ रहस्य है । चन्द्रकला धारण करने का कारण है कि उनके ललाट की ऊष्मा, जो त्रिलोकी को भस्म करने में सक्षम हैं, उन्हें पीड़ित न करे । शिव का मुण्डमाल मरणशील प्राणी को सदैव मृत्यु का स्मरण कराता है जिससे वह दुष्कर्मों से दूर रहे।