गायत्री वेदजननी गायत्री पापनाशिनी।
गायत्र्या: परमं नास्ति दिवि चेह च पावनम्।। (शंखस्मृति)
अर्थात्–‘गायत्री वेदों की जननी है। गायत्री पापों का नाश करने वाली है। गायत्री से अन्य कोई पवित्र करने वाला मन्त्र स्वर्ग और पृथिवी पर नहीं है।’
सृष्टिकर्ता ब्रह्मा से लेकर आधुनिक काल तक ऋषि-मुनियों, साधु-महात्माओं और अपना कल्याण चाहने वाले मनुष्यों ने गायत्री मन्त्र का आश्रय लिया है। यह मन्त्र यजुर्वेद व सामवेद में आया है लेकिन सभी वेदों में किसी-न-किसी संदर्भ में इसका बार-बार उल्लेख है। स्वामी करपात्रीजी के शब्दों में गायत्री मन्त्र का जो अभिप्राय है वही वेदों का अर्थ है।
गायत्री का शाब्दिक अर्थ है–’गायत् त्रायते’ अर्थात् गाने वाले का त्राण करने वाली। गायत्री मन्त्र गायत्री छन्द में रचा गया अत्यन्त प्रसिद्ध मन्त्र है। इसके देवता सविता हैं और ऋषि विश्वामित्र हैं। मन्त्र है–
ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्।।
ॐ व भू: भुव: स्व: का अर्थ
गायत्री मन्त्र से पहले ॐ लगाने का विधान है। इसे प्रणव कहा जाता है। प्रणव परब्रह्म परमात्मा का नाम है। ‘ओम’ के अ+उ+म् इन तीन अक्षरों को ब्रह्मा, विष्णु और शिव का रूप माना गया है। गायत्री मन्त्र से पहले ॐ के बाद भू: भुव: स्व: लगाकर ही मन्त्र का जप करना चाहिए। ये गायत्री मन्त्र के बीज हैं। बीजमन्त्र का जप करने से ही साधना सफल होती है। अत: ॐ और बीजमन्त्रों सहित गायत्री मन्त्र इस प्रकार है–
ॐ भू: भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्।।
अर्थ–‘पृथ्वीलोक, भुवर्लोक और स्वर्लोक में व्याप्त उस श्रेष्ठ परमात्मा (सूर्यदेव) का हम ध्यान करते हैं, जो हमारी बुद्धि को श्रेष्ठ कर्मों की ओर प्रेरित करे।’
प्रात:काल गायत्री मन्त्र का जप खड़े होकर तब तक करें जब तक सूर्य भगवान के दर्शन न हो जाएं। संध्याकाल में गायत्री का जप बैठकर तब तक करें जब तक तारे न दीख जाएं। गायत्री मन्त्र का एक हजार बार जाप सबसे उत्तम माना गया है।
गायत्री मन्त्र के चौबीस अक्षर
गायत्री मन्त्र में चौबीस अक्षर हैं। ऋषियों ने इन अक्षरों में बीजरूप में विद्यमान उन शक्तियों को पहचाना जिन्हें चौबीस अवतार, चौबीस ऋषि, चौबीस शक्तियां तथा चौबीस सिद्धियां कहा जाता है। गायन्त्री मन्त्र के चौबीस अक्षरों के चौबीस देवता हैं। उनकी चौबीस चैतन्य शक्तियां हैं। गायत्री मन्त्र के चौबीस अक्षर २४ शक्ति बीज हैं। गायत्री मन्त्र की उपासना करने से उन २४ शक्तियों का लाभ और सिद्धियां मिलती हैं। उन शक्तियों के द्वारा क्या-क्या लाभ मिल सकते हैं, उनका वर्णन इस प्रकार हैं–
१. तत्–देवता–गणेश, सफलता शक्ति। फल–कठिन कामों में सफलता, विघ्नों का नाश, बुद्धि की वृद्धि।
२. स–देवता–नरसिंह, पराक्रम शक्ति। फल–पुरुषार्थ, पराक्रम, वीरता, शत्रुनाश, आतंक-आक्रमण से रक्षा।
३. वि–देवता–विष्णु, पालन शक्ति। फल–प्राणियों का पालन, आश्रितों की रक्षा, योग्यताओं की वृद्धि।
४. तु:–देवता–शिव, कल्याण शक्ति। फल–अनिष्ट का विनाश, कल्याण की वृद्धि, निश्चयता, आत्मपरायणता।
५. व–देवता–श्रीकृष्ण, योग शक्ति। फल–क्रियाशीलता, कर्मयोग, सौन्दर्य, सरसता, अनासक्ति, आत्मनिष्ठा।
६. रे–देवता–राधा, प्रेम शक्ति। फल–प्रेम-दृष्टि, द्वेषभाव की समाप्ति।
७. णि–देवता–लक्ष्मी, धन शक्ति। फल–धन, पद, यश और भोग्य पदार्थों की प्राप्ति।
८. यं–देवता–अग्नि, तेज शक्ति। फल–उष्णता, प्रकाश, शक्ति और सामर्थ्य की वृद्धि, प्रतिभाशाली और तेजस्वी होना।
९. भ–देवता–इन्द्र, रक्षा शक्ति। फल–रोग, हिंसक चोर, शत्रु, भूत-प्रेतादि के आक्रमणों से रक्षा।
१०. र्गो–देवता–सरस्वती, बुद्धि शक्ति। फल–मेधा की वृद्धि, बुद्धि में पवित्रता, दूरदर्शिता, चतुराई, विवेकशीलता।
११. दे–देवता–दुर्गा, दमन शक्ति। फल–विघ्नों पर विजय, दुष्टों का दमन, शत्रुओं का संहार।
१२. व–देवता–हनुमान, निष्ठा शक्ति। फल–कर्तव्यपरायणता, निष्ठावान, विश्वासी, निर्भयता एवं ब्रह्मचर्य-निष्ठा।
१३. स्य–देवता–पृथिवी, धारण शक्ति। फल–गम्भीरता, क्षमाशीलता, भार वहन करने की क्षमता, सहिष्णुता, दृढ़ता, धैर्य।
१४. धी–देवता–सूर्य, प्राण शक्ति। फल–आरोग्य-वृद्धि, दीर्घ जीवन, विकास, वृद्धि, उष्णता, विचारों का शोधन।
१५. म–देवता–श्रीराम, मर्यादा शक्ति। फल–तितिक्षा, कष्ट में विचलित न होना, मर्यादापालन, मैत्री, सौम्यता, संयम।
१६. हि–देवता–श्रीसीता, तप शक्ति। फल–निर्विकारता, पवित्रता, शील, मधुरता, नम्रता, सात्विकता।
१७. धि–देवता–चन्द्र, शान्ति शक्ति। फल–उद्विग्नता का नाश, काम, क्रोध, लोभ, मोह, चिन्ता का निवारण, निराशा के स्थान पर आशा का संचार।
१८. यो–देवता–यम, काल शक्ति। फल–मृत्यु से निर्भयता, समय का सदुपयोग, स्फूर्ति, जागरुकता।
१९. यो–देवता–ब्रह्मा, उत्पादक शक्ति। फल–संतानवृद्धि, उत्पादन शक्ति की वृद्धि।
२०. न:–देवता–वरुण, रस शक्ति। फल–भावुकता, सरलता, कला से प्रेम, दूसरों के लिए दयाभावना, कोमलता, प्रसन्नता, आर्द्रता, माधुर्य, सौन्दर्य।
२१. प्र–देवता–नारायण, आदर्श शक्ति। फल–महत्वकांक्षा-वृद्धि, दिव्य गुण-स्वभाव, उज्जवल चरित्र, पथ-प्रदर्शक कार्यशैली।
२२. चो–देवता–हयग्रीव, साहस शक्ति। फल–उत्साह, वीरता, निर्भयता, शूरता, विपदाओं से जूझने की शक्ति, पुरुषार्थ।
२३. द–देवता–हंस, विवेक शक्ति। फल–उज्जवल कीर्ति, आत्म-सन्तोष, दूरदर्शिता, सत्संगति, सत्-असत् का निर्णय लेने की क्षमता, उत्तम आहार-विहार।
२४. यात्–देवता–तुलसी, सेवा शक्ति। फल–लोकसेवा में रुचि, सत्यनिष्ठा, पातिव्रत्यनिष्ठा, आत्म-शान्ति, परदु:ख-निवारण।
तारक मन्त्र है गायत्री मन्त्र
गायत्री मन्त्र छोटा सा है, पर इतने थोड़े से अक्षरों में ही अनन्त ज्ञान का समुद्र भरा पड़ा है। महर्षि व्यास कहते है–जिस प्रकार पुष्पों का सार शहद, दूध का सार घृत है, उसी प्रकार समस्त वेदों का सार गायत्री मन्त्र है।
अथर्ववेद में वेदमाता गायत्री की स्तुति की गयी है, जिसमें उसे आयु, प्राण, शक्ति, पशु, कीर्ति, धन और ब्रह्मतेज प्रदान करने वाली कहा गया है।
गांधीजी के शब्दों में–‘गायत्री मन्त्र का निरन्तर जप रोगियों को अच्छा करने और आत्मा की उन्नति करने के लिए उपयोगी है। गायत्री मन्त्र का स्थिर चित्त और शान्त हृदय से किया हुआ जप आपत्तिकाल के संकटों को दूर करने का प्रभाव रखता है।’
रवीन्द्रनाथ टैगोर के शब्दों में–‘भारतवर्ष को जगाने वाला जो मन्त्र है, वह इतना सरल है कि एक श्वांस में उसका उच्चारण किया जा सकता है। वह है–गायत्री मन्त्र। उस पुनीत मन्त्र का अभ्यास करने में किसी प्रकार के तार्किक ऊहापोह, किसी प्रकार के मतभेद अथवा किसी प्रकार के बखेड़े की गुंजायश नहीं है।’
स्वामी रामकृष्ण परमहंस कहते हैं–‘इस छोटी-सी गायत्री की साधना करके देखो। गायत्री का जप करने से बड़ी-बड़ी सिद्धियां मिल जाती हैं। यह मन्त्र छोटा है पर इसकी शक्ति बड़ी भारी है।’
स्वामी विवेकानन्द का कथन है–‘परमात्मा से मांगने योग्य वस्तु सद्बुद्धि (अच्छी बुद्धि) है। गायत्री सद्बुद्धि का मन्त्र है। इसलिए इसे मन्त्रों का मुकुटमणि कहा है।’
स्वामी शिवानन्दजी कहते हैं–‘ब्रह्ममुहुर्त में गायत्री मन्त्र का जप करने से चित्त शुद्ध होता है और हृदय में निर्मलता आती है। शरीर निरोग रहता है, स्वभाव में नम्रता आती है, बुद्धि सूक्ष्म होने से दूरदर्शिता बढ़ती है और स्मरणशक्ति का विकास होता है। कठिन स्थितियों में गायत्री मन्त्र द्वारा दैवी सहायता मिलती है।’
गायत्री मन्त्र का दूसरा नाम ‘तारक मन्त्र’ भी है। तारक अर्थात् तैराकर पार निकाल देने वाला।
चाहते यदि अपना कल्याण,
करो मां गायत्री का ध्यान।
करेंगी दूर सभी दु:ख व्याधि,
हरण कर कठिन पाप अभिशाप।।
मुदित हो देंगी ज्ञान सुबुद्धि।
कीर्ति वैभव सुख अडिग प्रताप।।
वेद मां की है शक्ति महान।
सहज ही हर लेती अज्ञान।।